दोनों समधनों के लिए करीब आना आसान नहीं रहा होगा लेकिन एक बार आ गए तो दोनों ने धर्म की सीमा भी देखी और सीमाओं से पार बच्चों की खुशी भी. मनीष की मां कहने लगीं कि एक ही बेटा था मेरा. कभी किसी मुसलमान के घर नहीं गई थी, न ही कोई मेरे घर आया था. शुरू में तो बहुत डर लगा कि पड़ोसी क्या करेंगे. रिश्तेदार क्या बोलेंगे लेकिन जब स्वीकार कर लिया तो दिक्कतें कम हो गईं. शबाना की मां ने कहा कि ये घर से ही भाग गई. मगर अब सब ठीक है. हमें कोई समस्या नहीं है. पार्वती राय ने पोते की तरफ दिखाते हुए कहा कि ये सलाम भी करता है और नमस्ते भी.
मनीष और शबाना ने धर्म नहीं बदला है. रेणु और आसिफ इकबाल ने भी धर्म नहीं बदला है. शादी के झमेले तो झेले ही, किसी और जोड़ी को कम झेलनी पड़े इसलिए एक संस्था बनाई धनक. आज इससे छह सौ ऐसे जोड़े जुड़े हैं जिन्होंने धर्म और जाति की दीवारें तोड़कर ब्याह रचाए हैं. इस संस्था से जुड़ने वालों के लिए एक शर्त है. अंतरधार्मिक शादी करने पर कोई धर्म और नाम परिवर्तन नहीं करेगा.
रेणु और आसिफ ने बताया कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी का प्रावधान तो है मगर उसमें इतनी जटिलताएं हैं कि वहां भी दलाल पहुंच गए हैं जो धर्म परिवर्तन के लिए उकसाते हैं. कोर्ट के बाहर अपराधी की तरह शादी करने वालों की तस्वीर लगाई जाती हैं. पूरा मामला भयावह हो जाता है. इन सबसे बचने के लिए कोर्ट में ही राय देने लगते हैं कि धर्म परिवर्तन कर लीजिए, आसानी से शादी हो जाएगी. सरकार भी स्पेशल मैरेज एक्ट का प्रचार नहीं करती है. उसमें सुधार नहीं लाती है जिससे ऐसी शादियां आसान हो सकें.
आसिफ इस बात को लेकर सख्त हैं कि धर्म क्यों बदलना है. रेणु से शादी करने में उन्हें भी विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन दोनों ने अपनी दुनिया बसा ही ली. न तो धर्म बदला और न ही नाम. रिश्ते में बराबरी के स्पेस को सबसे ज्यादा अहमियत दी. आसिफ ने कहा कि किसी महफिल में वे मिस्टर कुलश्रेष्ठ हो जाते हैं तो रेणु मिसेज खान हो जाती हैं.
चौदह फरवरी के दिन आते ही एक तबका आतंकित हो उठता है. रेणु के पिता ने कहा कि उन्होंने खूब विरोध किया. मगर जिन बातों को लेकर वे पहले डरे थे, समय के साथ सारे डर बेवजह साबित हुए. कुलश्रेष्ठ जी लव जेहाद और उसकी राजनीति की बात पर मुस्कुराते रहे. हंसते हुए यही कहा कि अक्सर मीडिया ही डरा देता है.
मीडिया को अंतर्जातीय और अंतरधार्मिक विवाह के पक्ष में खड़ा होना चाहिए लेकिन वह समाज में यथास्थिति को बनाए रखने के लिए ऐसे मसलों को सांप्रदायिक रंग दे देता है. वैसे एफएम रेडियो की दुनिया में वेलेंटाइन डे पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. कमी यह रही कि वहां भी ऐसी शादियों की व्यावहारिक चुनौतियों और खूबसूरती पर कोई चर्चा सुनाई नहीं दी. फूल वाले और बलून वालों ने भी वैलेंटाइन डे जमकर मनाया होगा!
रवि ने पिंकी से शादी करने में कितना जोखिम लिया. पिंकी ने कहा कि वह जाति से पासवान है. उसकी बिरादरी के लोग खिलाफ हो गए कि अपर कास्ट में कैसे शादी करेगी मगर पिंकी के पिता साथ हो गए. रवि के माता-पिता ने तो लड़की के घर जाने से ही मना कर दिया. जब रवि ने बताया कि पिंकी का एक पांव कमजोर है तो यही मुंह से निकला कि क्या लड़की लंगड़ी है.
हमारे समाज में प्रेम आसान नहीं है. इश्क में पड़ने का मतलब है जंग में घिर जाना. कितने लम्हे इन सब बातों को सुलझाने में चले जाते होंगे जिन्हें खूबसूरत यादों में बदला जा सकता था. आप भी सोचिएगा जब जाति से इतनी नफरत है तो जो लोग इसकी दीवार तोड़ रहे हैं, उनका साथ देना चाहिए या उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए.
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