छठ की छटा बताती है कि छठ अब ग्लोबल हो गया है. छठ के माध्यम से अपनी संस्कृति और विरासत का पूरी दुनिया में शानदार विस्तार हो रहा है. बिहार के गांव-गांव से निकलकर छठ का व्रत न सिर्फ हिन्दुस्तान के दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और मद्रास जैसे मेट्रोज में अपितु अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और खाड़ी देशों तक जा पहुंचा है. मतलब हमने अपनी पैतृक जमीन भले छोड़ दी है, हमारी धड़कनों के साथ हमारी परंपराएं और संस्कृतियां जीवित हैं, सुशोभित हैं. पूरी दुनिया देख रही है, लोक पर्व छठ अब वैश्विक पहचान बना चुका है. नदी, पोखरा, बीच, स्विमिंग पूल में अनुमति नहीं मिले तो लोग टब में भी खड़े होकर छठ का व्रत करते हैं. यही आस्था और विश्वास है कि सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूरी दुनिया में पॉपुलर हो रहा है.
छठी मइया लोक-आस्था की देवी हैं
मुझे ऐसा लगता है कि छठी मइया को भोजपुरी गीत बहुत पसंद हैं. वे हर अरज गीत में ही सुनती हैं, घर से घाट तक जाने के रास्ते में, घाट पर पूजा करते समय, कोशी भरते वक्त या फिर सुबह अर्घ्य देने तक, हर जगह तिले-तिले गीत. गायक भी अब यह बात समझ चुके हैं. इसलिए दनादन गीत बन रहे हैं. शायद किसी और पर्व के लिए इतने गीत नहीं बनते, जितने छठ के लिए बनते हैं. यानी छठी मइया की भाषा गद्य नहीं, पद्य है … और वह भी लोकभाषा में. बिहार की भाषाओं - भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका और बज्जिका में. है न ? तो यह तो कन्फर्म हो गया कि छठी मइया लोक की हैं, लोक-आस्था की देवी हैं. इसलिए वह लोकभाषा में बतियाती हैं, गा-गा कर बतियाती हैं. क्योंकि लोक की भाषा में भी एक लय, एक लहरा, एक राग होता है और भाषा सरल-सहज होती है, जटिल या संस्कृतनिष्ठ नहीं.
जब भाषा संस्कृतनिष्ठ नहीं है तो इस पूजा में पंडित की जरूरत भी नहीं पड़ती. अर्घ्य कोई छोटा बच्चा भी दे सकता है. बाकी सारे मंत्र तो महिलाएँ खुद अपने गीतों में गा-गाकर ही पढ़ लेती हैं. जैसा कि मैंने कहा, छठी मइया संस्कृत के कठिन मंत्रों से ज़्यादा भोजपुरी के भक्ति-गीत पसंद करती हैं, क्योंकि वे आम आदमी की देवी हैं, लोक की देवी. यह लोक की पूजा है. इसमें अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, जात-पांत का कोई भेद नहीं. सब एक ही घाट पर, बराबरी से बैठते हैं. यह सस्ती पूजा है, पंडित जी की फीस नहीं देनी पड़ती, न ही महंगे फलों-फूलों की जरूरत होती है. अनाज और मौसमी फलों से ही सब काम चल जाता है.
प्रकृति प्रेमी छठी मइया
अन्य देवी-देवताओं को जहां लड्डू-पेड़ा चढ़ते हैं, वहीं छठी मइया को दूध, फल, घी, गन्ना, नींबू, कच्ची हल्दी, अमरूद, आँवला, सिंघाड़ा, सुथनी जैसे प्राकृतिक पदार्थ अर्पित किए जाते हैं. बाकी देवी-देवता घर या मंदिर में पूजे जाते हैं, लेकिन छठी मइया नदी, पोखरा, झील, बीच, आइसलैंड, पैडलिंग पूल, स्विमिंग पूल, यहां तक कि कहीं-कहीं बाथटब में भी पूजी जाती हैं.
कितनी एडजस्टेबल और एक्सेप्टेबल हैं छठी मइया! इतनी कि अब तो वे ग्लोबल देवी बन चुकी हैं, आरा से अमेरिका तक पहुंच गई हैं. बरवा तर के पोखरवा से लेकर सिलिकॉन वैली की क्वेरी झील तक, हर जगह पूजी जा रही हैं. लेकिन वह अंग्रेज नहीं बनी हैं, अपने मूल रूप में हैं. अमेरिका के घाट पर भी ठेकुआ, नरियर, केरा, सूप, कलसूप, डलिया, दउरी-दउरा, दिया-दियरी, सेनुर-पियरी सब वैसे ही दिखाई देते हैं, जैसे बिहार की धरती पर. ऐसा लगता है मानो अमेरिका में बिहार समा गया हो. …और सूरज भगवान तो सबके एक ही हैं, जहां भी अर्घ्य दीजिए. धरती बांट दी गई है, इंसान बांट दिए गए हैं, लेकिन ब्रह्मांड एक है, परमात्मा एक है. छठी मइया यही सिखाती हैं, बड़का-छोटका, अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच का भेद मिटाकर सबको एक ही घाट पर बराबरी से बैठा देती हैं और कहती हैं, ''देखो, ये बांट-बखरा कहां से आ गया? किसलिए लड़ रहे हो?'' …लेकिन लोग तो गाने में लगे रहते हैं, गीत का मर्म कहां समझते हैं? छठी मइया के यहां तो डूबते और उगते सूरज में भी कोई भेद नहीं, दोनों की पूजा होती है. इस भावना को समझना और जीवन में उतार लेना ही असली छठ पूजा है.
'छठ' को यूनेस्को की धरहरों की सूची में शामिल कराने की पहल
भारत सरकार ने छठ महापर्व को यूनेस्को की Intangible Cultural Heritage of Humanity की प्रतिनिधि सूची में शामिल करने के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू की है. संगीत नाटक अकादमी के इस महत्वपूर्ण पहल के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है, जिसमें इस लेखक को भी शामिल किया गया है. भारत की पहले से ही 15 सांस्कृतिक धरोहरें यूनेस्को की सूची में शामिल हैं, जिनमें वैदिक चैंटिंग, कुटियट्टम, रामलीला, छाऊ नृत्य, योग, कुंभ मेला और कोलकाता की दुर्गा पूजा शामिल हैं.
इसके अलावा मॉरीशस के 'गीत-गवाई' को भी यूनेस्को के हेरिटेज में शामिल किया गया है. 'गीत-गवाई' भोजपुरी भाषा में की जाती हैं. जाहिर है यूनेस्को में भोजपुरी का प्रवेश हो चुका है. छठ के यूनेस्को में शामिल होने से वहां भोजपुरी और समृद्ध होगी.
छठ: सात समंदर पार
मैंने घाट-घाट का छठ देखा है, क्योंकिं मैंने घाट-घाट का पानी पीया है. 2003 में पहली बार पूर्वी अफ्रीका गया. युगांडा की राजधानी कंपाला में रहता था. इंजीनियर था वहां, लेकिन कला-साहित्य और संस्कृति की भूख की वजह से 2005 में भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ युगांडा (बीएयू) की स्थापना की. दीपावली तो धूमधाम से मनाते हीं हैं लोग. छठ व्रत अपने-अपने घरों में करते थे या इक्का-दुक्का लोग साथ में करते थे. धीरे-धीरे कई स्थानों पर सामूहिकता में करने लगे. वहां आज भी भारतीयों के घरों में अफ्रिकन लड़कियां बहुतायत में काम करती हैं. धीरे-धीरे छठ घाट पर वह भी शामिल होने लगीं. छठ गीतों पर वह भी झूमने लगीं. अफ्रीका के मित्र बताते हैं कि आजकल युगांडा के विक्टोरिया लेक, तंजानिया के Mwezi beach और नाइजीरिया के लोगोस के बनाना आइसलैंड पर लोग छठ मनाते हैं.

यूके के बर्मिंघम में छठ की पूजा करतीं डॉक्टर अंजना.
साल 2006 में मैं युनाइटेड किंगडम चला गया. वहां पर भी भोजपुरी समाज, लंदन की स्थापना की. तब वहां सुदूर गांव लिटिल हादम में मिनरल वाटर की एक कंपनी में प्लांट मैनेजर था. गांव में तो छठ नहीं होता था लेकिन यूके के दोनों बड़े शहरों लंदन और बर्मिंघम में छठ होता था और आज तो और सामूहिक रूप में होने लगा है. बिहारी कनेक्ट लंदन के चेयरपर्सन उदेश्वर सिंह बताते हैं कि लंदन में उनकी पूरी टीम छठ व्रतियों का सहयोग करती हैं.
गीतांजलि मल्टीलिंगुअल लिट्रेरी सर्किल, बर्मिंघम के जनरल सेक्रेटरी, कवि और पेशे से चिकित्सक डॉ० कृष्ण कन्हैया अपनी पत्नी डॉ० अंजना के साथ 28 सालों से बर्मिंघम यूके में रहते हैं और छठ करते हैं. वह बताते हैं, ''शाम-सुबह दोनों अर्घ्य हम अपने घर के पिछवाड़े में पैडलिंग पूल में साफ पानी भर कर गंगाजल छिड़क कर करते हैं. यूके में तालाब, झील या नदी में ऐसा करने की अनुमति नहीं है. पूजा की सारी चीजें हमें यहां सोहो रोड हैन्सवर्थ बर्मिंघम सिटी में मिल जाती हैं.''
बिहार झारखंड एसोसिएशन ऑफ आयरलैंड (BJAI) के प्रेसिडेंट डॉ. दीपक कुमार बताते हैं कि आयरलैंड में छठ पूजा का आयोजन St. Fechin's GAA, ड्रॉहेडा (काउंटी लौथ) में होता है. इसमें स्थानीय आयरिश प्रशासन और आयरिश समुदाय का भी सहयोग मिलता है.
अमेरिका और गिरमिटिया देशों में छठ
अमेरिका की बिजनेस वुमेन और सोशल एक्टिविस्ट संध्या सिंह पिछले 40 साल से अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में हैं. उन्होंने बताया कि यहां छठ समुद्र और खाड़ी के किनारे, नदियों के पास या किसी-किसी के स्विमिंग पूल में भी जाकर होता है. ह्यूस्टन का क्लीयर लेक (गैल्विस्टन बे) पॉपुलर स्पॉट है छठ के लिए. आरा की रहने वाली, अमेरिका की भोजपुरी गायिका स्वस्ति पाण्डेय अमेरिका के कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली के फ़्रीमौंट नगर के क्वेरी झील के सुरम्य घाट पर खांटी छठ गीत गाकर पूरे माहौल को छठमय बना देती हैं.
भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन, मॉरिशस की चेयरपर्सन डॉ. सरिता बुद्धू कहती हैं कि छठ गिरमिटिया देशों मॉरिशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम में उस तरह से नहीं मनाया जाता जैसे भारत में. लेकिन सूर्य की पूजा होती है.
भारत के मेट्रो शहरों में छठ की छटां
ये तो विदेशों की बात हुई. भारत में भी दिल्ली और मुंबई दो शहरों में बंटा हूं मैं. छठ के समय दोनों जगह एक बिहार दिखाई देता है. सरकार खुद पहल करती है घाटों के लिए और तरह-तरह के इंतजामात खुद कराती है.
यह छठ माई की कृपा कम, बिहार का प्रभाव ज्यादा है. वोट बैंक का असर ज्यादा है. बात आस्था और श्रद्धा की भी है. गैर बिहारी भी इस व्रत को अपनाने लगे हैं संतान प्राप्ति के लिए, पति की सलामती के लिए और तरक्की के लिए. छठ पर हर साल सैकड़ों गीत बनते हैं, हिंदी-भोजपुरी में अनेक फिल्में बनी हैं. रवि किशन और प्रीति झिंगयानी की एक फिल्म है 'जय छठी मां'. इसके निर्देशक हैं मुरारी सिन्हा. छठ के इतिहास को समझने के लिए इस फिल्म को देख सकते हैं.
अंत में, मै अमरीका में रहने वाली अमेरिकी गायिका क्रिस्टीन का जिक्र जरूर करना चाहूंगा जो बिलकुल भोजपुरिया अंदाज में छठ गीत गाकर चकित करती हैं. सचमुच! छठ की लोकप्रियता ऐसी है कि विदेशों में भी, विदेशी लोग भी अब इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं.
डिस्क्लेमर: लेखक मनोज भावुक भोजपुरी साहित्य-सिनेमा के जानकार और भोजपुरी भाषा के ग्लोबल प्रोमोटर हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.