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छठ के बाद भी गूंज रहा है यह छठ गीत, ‘पलायन के दर्द, सुनs ए छठी मइया '

छठ पूजा के बाद बिहार विधानसभा चुनावी माहौल गरमा गया है और साथ ही दो बड़े मुद्दों बेरोजगारी और पलायन को उछाला जा रहा है.

छठ के बाद भी गूंज रहा है यह छठ गीत, ‘पलायन के दर्द, सुनs ए छठी मइया '
छठ के बाद भी गूंज रहा है यह छठ गीत
नई दिल्ली:

छठ पूजा के बाद बिहार विधानसभा चुनावी माहौल गरमा गया है और साथ ही दो बड़े मुद्दों बेरोजगारी और पलायन को उछाला जा रहा है, यही वजह है कि छठ के बाद भी मनोज भावुक का छठ गीत ‘पलायन के दर्द, सुनs ए छठी मइया' गूंज रहा है. दरअसल, यह गीत नहीं, प्रवासी बिहारियों का दर्द है, उनकी बेचैनी और छटपटाहट है. इस गीत में गीतकार मनोज भावुक ने सवाल उठाया है –

“कब ले पलायन के दुख लोग झेले,

कब ले सुतल रहिहें एमपी-एमएलए?”

गाँवे में कब मिली रोजी-रोजगार हो?

का जाने, कब जागी यूपी-बिहार हो ?

गाँवहू खुले करखनवा हो, सुनs ए छठी मइया

असहूँ ना अइले सजनवा हो, सुनs ए छठी मइया

हालांकि भावुक का कहना है, “यह गीत किसी पार्टी के खिलाफ नहीं, बल्कि पलायन की समस्या पर संवेदना है. पलायन तो आजादी के बहुत पहले से जारी है, कभी गिरमिटिया बन के, कभी बिदेसिया-परदेसिया बन के .. भिखारी ठाकुर का नाटक बिदेसिया क्या है ? पलायन और प्रवास की पीड़ा ही तो है. आप शौक से कहीं जाइये, कोई बात नहीं. लेकिन मजबूरी में घर छोड़ना ? बहुत दर्दनाक होता है। मेरा एक दोहा है -

पड़ल हवेली गांव में भावुक बा सुनसान

लइका खोजे शहर में छोटी मुकी मकान

अब समय है कि लोग अपने गांव में ही रोजगार पाएं.”

गीत में प्रवासी मजदूरों के साथ गांव में अकेली रह गई ब्याहता और बूढ़े माता-पिता के दर्द को भी मार्मिकता से चित्रित किया गया है. सोशल मीडिया पर श्रोताओं द्वारा गीत की खूब सराहना की जा रही है. गीत को युवा संगीतकार विनीत शाह ने संगीतबद्ध किया है और बॉलीवुड की सुप्रसिद्ध गायिका प्रियंका सिंह ने अपनी मधुर आवाज़ में गाया है. यह गीत प्रियंका सिंह के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर जारी किया गया है.

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