तवे सी तपती धरती और थका देने वाले ऑफिस के काम के बीच अगर कोई आपसे कहे कि कुछ दिन ऐसी जगह हो आओ जहां न तो दिल्ली-मुंबई जैसा शोर हो और न ही चेहरे को झुलसा देने वाली गर्मी तो आप सहज रूप से न तो नहीं ही कर पाएंगे. और खासकर तब जब जहां आप जाने वाले हों वह जगह किसी जन्नत से कम न हो. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब दोस्तों ने करीब साल भर बाद एक बार फिर पहाड़ की गोद में जाने का मन बनाया. लेकिन सवाल यह था कि आखिर जाएं कहां, क्योंकि शिमला-मनाली या मसूरी जैसी जगह जाकर अब दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े और भीड़भाड़ वाले शहर में होने का ही एहसास होता है. लिहाजा कुछ अलग जगह तलाशनी थी. करीब तीन घंटे की रिसर्च के बाद आखिरकार हमने ऐसी जगह ढूंढ़ ही निकाली जहां प्रकृति और आपके बीच कोई न हो. और साथ ही साथ हम ट्रेकिंग जैसे एडवेंचर के साथ दफ्तर में बैठ-बैठकर अलसा चुके शरीर की क्षमताओं को भी आजमा सकें.
हिमाचल प्रदेश स्थित चंद्र नहान ने हमें जरा भी निराश नहीं किया. हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों पर स्थित इस ट्रेकिंग को पूरा करते हुए आपको अनगिनत झरनों, बर्फीले और हरभरे पहाड़ों के बीच से होकर गुजरना होगा. इस ट्रेक को पूरा करने में हमें तीन दिन का समय लगा. इस ट्रेकिंग के दौरान हम जिन रास्तों से होकर गुजरे वह किसी जन्नत से कम नहीं थे. एक तरफ खड़ी बर्फीली चोटियां तो दूसरी तरफ बाहें फैलाए आपके स्वागत में खड़े हरे भरे पहाड़. यह सफर हर मोड़ पर हमारे लिए नए-नए सरप्राइजेज लेकर आ रहा था. यह पूरा ट्रेक रोहरू तहसील के जांगलिक गांव से शुरू होता है. करीब 15 किलोमीटर के इस ट्रेक में आप कई बार थकेंगे, सोचेंगे आखिर इतनी चढ़ाई क्यों ही करनी, इससे बेहतर तो दिल्ली का एयर कंडीशनर वाला रूम ही सही था,लेकिन यकीन मानिये इन सभी अनुभवों के बीच जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे आपके दिलोदिमाग से दिल्ली और वह एयर कंडीशन वाला कमरा निकलता जाएगा. आप पहाड़ के हर अगले मोड़ पर खुद को रोमांचित महसूस करेंगे.
जांगलिक से शूरू होता है कभी न भूला देने वाला सफर
शिमला से करीब 120 किलोमीटर दूर हाटकोटी के रोहरू तहसील में बसा है जांगलिक गांव. इसी गांव से चंद्र नाहान ट्रेक की शुरुआत होती है. रोहरू से जांगलिक तक का सफर भी अपने आपमें काफी आकर्षक है. ऊंची-ऊंची चोटियों और उसके नीचे बहती नदियों के साथ-साथ हम करीब डेढ़ घंटे में जांगलिक गांव पहुंचे. आप गांव तक अपनी कार से भी पहुंच सकते हैं. हालांकि रास्ता थोड़ा खराब है. हमनें रात इसी गांव में बीताने का फैसला किया. गांव में रात गुजारने के दौरान हमें पता चला कि सुबह कुछ सोलो ट्रेकर (जो अकेले ट्रेक करते हैं) भी चंद्र नाहान के लिए जाने वाले हैं. हमने सुबह होने से पहले ऐसे ही कुछ सोलो ट्रेकर से मिलने का मन बनाया. इसी दौरान हमारी मुलाकात हिमालयन जिप्सी के प्रमुख सचिन गांगटा से हुई. हमने आगे का सफर सचिन के साथ ही जारी रखने का फैसला किया. आप भी अगर चाहें तो सचिन से संपर्क कर सकते हैं. सचिन हिमालयन जिप्सी के नाम से अपना फेसबुक पेज भी चलाते हैं. उन्हें ऐसे दुर्गम ट्रेकिंग का काफी अनुभव है. सचिन ने बताया कि अकसर ट्रेकर्स ट्रेकिंग शुरू करने से पहले एक रात जांगलिक में रुकते हैं. यहां जगत प्रकाश होम स्टे सबसे फेमस है. यहां आपको रुकने से लेकर हर तरह की सुविधा मिल जाती है. दिल्ली से जांगलिक तक के करीब 520 किलोमीटर के सफर के बाद हमनें रात में इसी गांव में रुकने का फैसला किया. जांगलिक में जख महाराज का पौराणिक मंदिर भी है.
कई पहाड़ी और जंगल को पार कर पहुंचे दयारा
अगले दिन सुबह जांगलिक से नाश्ता करने के बाद करीब आठ बजे हमने अपनी ट्रेकिंग शुरू की. जांगलिक से दयारा तक की यह ट्रेकिंग खड़ी चढ़ाई थी, इस वजह से हम कुछ किलोमीटर में ही बेहद थक चुके थे. करीब चार घंटे की चढ़ाई के बीच हमने कई पहाड़ी और जंगल को पार किया. इस दौरान रास्ते में कई झरने और आसपास खड़ी बर्फीली चोटियां आईं, जिन्होंने हमें समय-समय पर रोमांचित किया. आखिरकार करीब चार घंटे की थका देने वाली चढ़ाई के बाद हम अपने अगले पड़ाव दयारा थाच पहुंचे. हमने अगली सुबह तक हरी-भरी पहाड़ी के बीच ही आराम करने का फैसला किया.
जब दुर्गम रास्तों और खाइयों ने ‘डराया'
दूसरे दिन की सुबह हमने दयारा में नाश्ता (पैक्ड फूड) किया और आगे का सफर शुरू किया. हमें लगा कि अभी तक की चढ़ाई के बाद अब आगे शायद ऐसे सरप्राइजेज न मिलें. लेकिन हम गलत थे. दयारा से निकलने के बाद हमारा ज्यादातर सफर पहाड़ की चोटियों के ऊपर से होकर ही गुजरा. आसपास का नजारा ऐसा था जैसे किसी नामी पेंटर ने अपने कैनवस पर पेंटिंग की हो. एक तरफ हरे भरे पहाड़ तो दूसरी तरफ बर्फ की ऊंची चोटियां और नीचे गहरी खाई. दयारा से करीब तीन घंटे की ट्रेकिंग के बाद हम दोपहर में लीथम पहुंचे. लीथम चारों तरफ से बर्फ की पहाड़ियों से घिरा हुआ इलाका है. हमनें यहां कुछ घंटे रुकने के बाद अपना टेंट लगाया और अगली सुबह चंद्र नाहान निकलने की तैयारी पूरी करने के बाद सो गए.
बर्फबारी और हल्की बारिश ने लीथम में किया स्वागत
हिमाचल का स्विटजरलैंड कहे जाने वाले लीथम में अगली सुबह हल्की बर्फबारी के बीच हुई. कुछ देर की बर्फबारी के बाद मौसम साफ हुआ और चंद्र नाहान के लिए निकल गए. लीथम से चंद्रनाहान की दूरी करीब तीन से चार किलोमीटर की है. लेकिन यह रास्ता पूरी तरह से खड़ी पहाड़ी पर ट्रेकिंग करने जैसा था. यही वजह थी की महज तीन से चार किलोमीटर की यह ट्रेकिंग पूरी करने में हमें तीन से चार घंटे का समय लग गया.
‘लेक्स' के लिए मशहूर है चंद्र नाहान
चंद्र नाहान पहाड़ी की चोटी पर स्थित सात लेक्स (झील) के लिए मशहूर है. इनमें से कुछ लेक्स तो सालों भर जमी ही होती हैं. हमन लीथम से चंद्र नाहान का रास्ता तीन से चार घंटे में पूरा किया. इसके बाद हम सभी बर्फीली पहाड़ी की चोटी पर थे. सामने बर्फ की कई फीट मोटी चादर थी. और सामने से कलकल करती निकलती नदी. हम पहाड़ी की चोटी पर थे और हमारे नीचे पूरी दुनिया थी. यह अनुभव अपने आपमें रोमाचिंत करने जैसा था. हमने ग्लेशियर के बीच यहां मौजूद चार लेक्स तक का सफर किया. लीथम पहुंचने के बाद अगर आप चाहें तो बुरान घाटी भी जा सकते हैं.
चंद्र नाहान कैसे जाएं-
आप दिल्ली से शिमला या फिर रोहरू के लिए बस ले सकते हैं. दिल्ली से वोल्वो और हिमचाल परिवहन निगम की समान्य बस ले सकते हैं. अगर आपको रोहरू तक की बस न मिले तो आप पहले शिमला पहुंचकर वहां से रोहरू तक बस से जा सकते हैं. दिल्ली से रोहरू और रोहरू से दिल्ली के लिए भी बसें चलती हैं. आगे रोहरू से जांगलिक तक का सफर आप निजी या शेयरिंग कैब से कर सकते हैं. अगर आप विमान से जाना चाहते हैं तो आप दिल्ली से चंडीगढ़ तक पहुंच सकते हैं. इसके बाद आप आगे का सफर बस से पूरा सकते हैं.
इन बातों का रखें ख्याल-
चंद्र नाहान ट्रेक के लिए जाते समय सबसे जरूरी है कि आप अपने साथ खाने की चीजें और पहनने के कपड़ों का खास तौर पर ध्यान रखें. ऐसा इसलिए क्योंकि आप साल के किसी भी महीने में चंद्र नाहान जाएं वहां आपको रात का पारा शून्य तक ही मिलेगा. ऐसे में आपके पास दो से तीन जोड़ी कपड़े और जैकेट्स होने चाहिए. साथ ही आप अपने साथ पैक्ड फूड (चावल, दाल,व अन्य) रख सकते हैं. आपको जांगलिक के बाद शायद ही कहीं कुछ खाने को मिले. इसलिए यह सभी चीजें आपको साथ लेकर जाना होगा.
अपने ट्रिप में यहां जरूर जाएं-
शिमला- रोहरू पहुंचने से पहले आप शिमला में कुछ समय या दिन बिता सकते हैं.
खड़ापत्थर – यहां रुकने के बाद आप गिरीगंगा ट्रेक व स्थानीय मंदिर देख सकते हैं.
हाटकोटी- यहां आप कैंपिंग करने के साथ-साथ पौराणिक मंदिर के दर्शन कर सकते हैं.
रोहरू- यहां आप सेब के बगान घूमने और स्थानीय देवी-देवताओं के मंदिर देखने जा सकते हैं.
(समरजीत सिंह Khabar.NDTV.com में चीफ सब एडिटर हैं)
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