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This Article is From Apr 09, 2016

केशव मौर्या पर दांव कहीं न बन जाए बीजेपी के गले की फांस...

Nelanshu Shukla
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 09, 2016 02:29 am IST
    • Published On अप्रैल 09, 2016 02:15 am IST
    • Last Updated On अप्रैल 09, 2016 02:29 am IST
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष चुनाव हैं और भारतीय जनता पार्टी ने यूपी बीजेपी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी का हटाकर फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्या को कमान सौंपी है। मोदी लहर में यूपी से जीते 71 बीजेपी सांसदों की लिस्ट में उनका भी नाम है। हालांकि वह विधायक भी रह चुके हैं, लेकिन आज प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले तक शायद ही उन्हें कोई जानता होगा। सवाल यह उठता है कि बीजेपी ने एक ऐसे चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष क्‍यों बनाया, जिससे जनता ही नहीं, बल्कि बीजेपी के कार्यकर्ता भी आज से पहले अपरिचित थे? क्या बीजेपी का यह दांव यूपी में उसके लिए घातक साबित होगा और पार्टी ने क्‍यों केशव मौर्या को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया?   

केशव मौर्या के बारे में बताएं तो वह बीते चुनाव में फूलपुर से सांसद बनने से पहले कई सालों तक विश्व हिन्दू परिषद के संगठन मंत्री रहे। केशव मौर्या संघ से भी कई वर्षों तक जुड़े रहे हैं और राम मंदिर व गौ रक्षक आंदोलनों में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है, लेकिन क्या यह सब कारण उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए काफी थे। केशव 47 साल के हैं और ओबीसी वर्ग के कोइरी समाज से आते हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी को यूपी में ओबीसी वर्ग और खासकर कोइरी समाज का ज़बरदस्त समर्थन मिला। पार्टी का कहना है कि जिस तरह नरेंद्र मोदी ने चाय बेचकर और संघर्ष करके पीएम बनने का सफर तय किया, उसी तरह केशव भी बचपन में अपने पिता के साथ चाय बेचते थे। चाय बेचने का मुद्दा पीएम मोदी ने बीते लोकसभा चुनाव से पहले की अपनी रैलियों में कई बार उठाया और जिसका उनको जमकर फ़ायदा भी मिला। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष को इसका कितना फ़ायदा होगा।

पार्टी को लगता है कि पिछड़े वर्ग के नेता को अध्यक्ष बनाकर वह अपने वोट बैंक को और मज़बूत करेगी। उत्तर प्रदेश में लगभग 35 फीसदी आबादी ओबीसी वर्ग की है। केशव प्रसाद मौर्य की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति भाजपा का बहुत सोचा-समझा दांव है। पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पिछड़े और दलित वोट बैंक को साथ लाने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रही है। इसके अलावा यूपी में बीजेपी के पास शायद ही कोई चेहरा था, जिसे वो अध्यक्ष बनातीं। यूपी से बीजेपी के दो बड़े चेहरे हैं एक राजनाथ सिंह और दूसरे कल्याण सिंह। दोनों ही मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं, लेकिन राजनाथ सिंह अब देश के गृह मंत्री हैं और कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल। इसके अलावा पार्टी ने गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को यूपी में हुए उप चुनाव का प्रभारी बनाकर उन पर दांव खेला था, लेकिन पार्टी को उप चुनाव में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी।

गुड गवर्नेंस का दंभ भरने वाली बीजेपी ने केशव मौर्या को प्रदेश की कमान देकर अपने मुद्दे से विपरीत काम किया है। केशव प्रसाद मौर्या के खिलाफ इलाहाबाद व कौशांबी जिले में हत्या, बलवा, दंगा भड़काने सहित लगभग एक दर्ज़न मामले दर्ज़ हैं और कहा यह भी जाता है कि केशव एक कट्टरवादी हिन्दू नेता हैं, जिन्होंने कई बार सांप्रदायिक भाषण दिए हैं और दंगा भड़काने का काम किया है। इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि केशव मौर्या कहीं से भी साफ़ छवि के नेता नहीं हैं और उनके जरिए पार्टी चुनाव से पहले यूपी में ध्रुवीकरण की राजनीति करना चाहती है।

ध्रुवीकरण और जातिवाद ही चुनाव में पार्टी का अहम मुद्दा होगा। ध्रुवीकरण, धर्म और जाति की राजनीति के जरिए भाजपा की यूपी में  2014 के लोकसभा चुनाव में ज़बरदस्त आंधी चली थी पर दिल्ली और बिहार के चुनाव में उन्हें मुंह की खानी पड़ी। अगर केशव मौर्या के ज़रिए पार्टी बिहार की तरह यूपी में ध्रुवीकरण और जातिवाद का मुद्दा लेकर अपना चुनाव अभियान आगे बढ़ाती है तो बिहार जैसा परिणाम यूपी में भी देखना पड़ सकता है और अगर ऐसा हुआ तो पार्टी व खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह बड़ा झटका होगा।

नीलांशु शुक्ला NDTV 24x7 में ओबी कन्ट्रोलर हैं...

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