पीएम के भाषण का विश्लेषण : क्या है लोगॉस, एथॉस और पैथॉस

पीएम के भाषण का विश्लेषण : क्या है लोगॉस, एथॉस और पैथॉस

लखनऊ में रोहित वेमुला की बात करते हुए पीएम मोदी भावुक हो गए थे

रोहित की खुदकुशी को लेकर छात्रों के असंतोष का सामना करते समय प्रधानमंत्री का रुआंसा होते हुए भाषण देना चर्चा में है। यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री को उसी समय ही और बाद में भी बडी आलोचना सुननी पड़ रही है। इस मामले  में सही या गलत का हिसाब तो सभी लगा ही रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों किया? इसकी अकादमिक व्याख्या भी की जा सकती है।

प्रभावी भाषण के मनोवैज्ञानिक उपाय
प्रभावी भाषण के मुख्य उपायों पर शोध कार्य बहुत हुए हैं। मनोवैज्ञानिकों के सुझाए इन उपायों को ग्राहक अपने अपने स्वभाव और जरूरत के लिहाज से इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आज तक सुझाई गईं तमाम प्रणालियों में अरस्तू का मुकाबला कोई नहीं कर पाया है। दुनियाभर के प्रबंधन संस्थानों में प्रशिक्षणार्थियों को यह पाठ 2300 साल बाद आज भी पढ़ाया जाता है। अरस्तू के मुताबिक किसी को अपना कायल बनाने के लिए तीन बातें होनी चाहिए - लोगाॅस, एॅथाॅस और पैथाॅस। लोगाॅस यानी तर्क, एॅथाॅस यानी नैतिकता और पॅथाॅस यानी करूणा या भावुकता।

पॅथाॅस यानी करुणा तत्व का ज्यादा इस्तेमाल
मौजूदा प्रधानमंत्री के भाषण के विषयवस्तु विश्लेषण करने से यही निष्कर्ष निकलता है कि वे अपने भाषणों में पॅथाॅस का भरपूर इस्तेमाल करते आ रहे हैं। करुणा तत्व का इस्तेमाल वे कई मौकों पर कर चुके हैं। निकट का इतिहास गवाह है उनका ऐसा करना खूब असरदार भी रहा है। लेकिन इस बार कुछ गलत पड़ गया। इसका विश्लेषण यही हो सकता है कि इस बार का माहौल ज्यादा बिगड़ा हुआ था। उसमें सिर्फ करुणा से काम नहीं चल सकता था। साथ में लाॅगाॅस और एॅथाॅस की भी दरकार थी।

तीनों उपायों की संतुलित मात्रा होती है ज्यादा कारगर
अरस्तू का यह मोड्यूल एमबीए के प्रशिक्षुओं कोे काॅरपोरेट कम्युनिकेशन के पाठ में पढाया जाता है। तीन साल पहले नोएडा के एक प्रबंधन संस्थान में जब इसे पढाया जा रहा था तब उन्हें अभ्यास के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर बराक ओबामा के भाषण की काॅपी दी गई। अभ्यास के तौर पर छात्रों को यह काम दिया गया कि भाषण के हर वाक्य को छांटिए और देखकर बताइए कि कौन सा लोगाॅस है, कौन सा एथाॅस है और कौन सा वाक्य पॅथाॅस है। सामने निकलकर आया कि तीनों तत्व बराबर बराबर संख्या में थे। लिखी लिखाई स्पीच टेलीप्राम्प्टर के जरिए बोलने में ओबामा ने जैसा डंका बजाया था वह किसे याद नहीं होगा। अनुमान है कि आज की अच्छी चुनाव प्रबंधक कंपनियां इस बात का पूरा ख्याल रखती होंगी कि उनके ग्राहकों के भाषण में तीनों तत्व बराबर मात्रा में हो।

असंतुलन की चूक कहां हुई होगी
रोहित की आत्महत्या के पांच दिन बाद भी नहीं थम रहे उबाल के दौरान ही प्रधानमंत्री लखनऊ के बीआर आंबेडकर विश्वविद्यालय में भाषण देने जा रहे थे। इस मामले में चुप्पी तोड़ने का उन पर पूरा दबाव था। कोई भी अनुमान लगा सकता था कि उनके भाषण में यह विषय जरूर रखा गया होगा। लेकिन यह किसी ने भी सोच कर नहीं रखा होगा कि प्रधानमंत्री के ही आयोजन में 'मुर्दाबाद' और 'वापस जाओ' के नारे लग जाएंगे।

वैसे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के आयोजन के पहले माहौल के बारे में खुफिया एजंसियों से पता लगवाने का चलन है। अनुमान लगाया जा सकता है कि खुफिया एजेंसियों ने माहौल अच्छे न होने की रिपोर्ट दी होगी। यानी बहुत संभावना यही बनती है कि आयोजकों ने भरोसा कर लिया होगा कि प्रधानमंत्री अपनी बातों से सब संभाल लेंगे। और प्रधानमंत्री ने करुणा तत्व का इस्तेमाल करके काफी कुछ संभालने की कोशिश भी की। हालांकि औपचारिक मीडिया और सोशल मीडिया में यह पॅथाॅस वाली बात संभले नहीं संभल रही है।
 
खैर जो हुआ सो हुआ लेकिन गुंजाइश अभी भी बचती है। ऐसा नहीं है कि  रोहित मामले में प्रधानमंत्री की तरफ से अभी भी  कुछ नहीं किया जा सकता हो। सरकार के साथियों सहयोगियों की तरफ से जो भी असंवेदनशीलता या गड़बड़ी हुई हो उसके प्रतिकार के लिए कई तरीके ढूंढे जा सकते हैं लेकिन जो भी करना है जल्दी करना होगा। जनता के अर्धचेतन में ऐसी बाते जमा होती चली जाती हैं। प्रधानमंत्री के छवि प्रबंधकों को यह बात गंभीरता से लेनी पड़ेगी।

(सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं)

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