बिहार चुनाव : कांग्रेस से नुकसान, क्या कहता है गणित

बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की सरकार ना बन पाने पर उसका सारा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा जा रहा है. कांग्रेस को लेकर कहा जा रहा लिखा जा रहा है उसने महागठबंधन को नीचे की ओर खींचा है. इसलिए कांग्रेस के नजरिए से इस विधानसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करना जरूरी है.

बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की सरकार ना बन पाने पर उसका सारा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा जा रहा है. कांग्रेस को लेकर कहा जा रहा लिखा जा रहा है उसने महागठबंधन को नीचे की ओर खींचा है. इसलिए कांग्रेस के नजरिए से इस विधानसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करना जरूरी है. सबसे पहले कांग्रेस को इस विधानसभा चुनाव में 70 सीटें दी गई थीं और वह जीती महज 19. मगर इन 70 सीटों को देखकर पता चलता है कि कांग्रेस का प्रर्दशन इतना अच्छा क्यों नहीं रहा. इस बार यानि 2020 में कांग्रेस ने जिन 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, उन्हीं सीटों पर 2010 में बीजेपी और जेडीयू ने 65 सीटों पर विजय पाई थी. उस वक्त बीजेपी 36 सीटों पर लड़ कर 33 जीती थी और जेडीयू 34 पर लड़कर 32 जीती थी.

यदि 2019 के लोकसभा चुनाव जहां एक बार फिर बीजेपी और जेडीयू साथ लड़े थे. यदि लोकसभा में जीती एनडीए की सीटों को विधानसभा में बांटे तो 70 में 67 सीटें एनडीए के खाते में जाने चाहिए थे. यही नहीं, 2015 की बात करें जब बीजेपी और जेडीयू अलग-अलग लड़े थे तब भी इन 70 सीटों में से 24 सीटें बीजेपी के खाते में गई थी. यानि साफ है जो सीटें कांग्रेस को दी गई उसमें से अधिकतर सीटें बीजेपी की मजबूत सीटें थीं जो वे लगातार जीतते रहे हैं. यही वजह है कि आरजेडी भी इन सीटों को लड़ना नहीं चाहती थी.

उदाहरण के लिए पटना जिले की दो सीटें बांकीपुर और पटना साहिब.. यहां से कांग्रेस चुनाव लड़ीं मगर सभी जानते हैं कि ये सीटें बीजेपी के सौ फीसदी जीतने वाले की सूची में थी. दरअसल कांग्रेस को असली नुकसान सीमांचल में ओवैसी ने पहुंचाया है. 40 फीसदी से अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले सीटों पर ओवैसी ने 5 में जीत दर्ज की और करीब 10 सीटों से अधिक पर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया. ये नुकसान महागठबंधन को भारी पड़ गया, जिसका अंदाजा शायद कांग्रेस और तेजस्वी दोनों लगाने में विफल रहे. ओवैसी का बिहार की राजनिति में उदय उन सभी दलों के लिए खतरे की घंटी है जिन्होंने मुस्लिम वोटों को अपनी जागीर समझ रखा है. ओवैसी पर भले ही बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप लोग लगाते रहें मगर उन्होने यह साबित किया है कि मुस्लिम समाज अब एक नए आवाज को भी परखने में परहेज नहीं कर रहा है.

वैसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्यों वामदलों को और अधिक सीटें मिलनी चाहिए थीं. दरअसल कांग्रेस के खराब प्रर्दशन के लिए इन कमजोर सीटों के अलावा कांग्रेस के नेताओं द्वारा कांग्रेस के ही उम्मीदवारों को हराने की प्रवृत्ति भी शामिल है. गलत उम्मीदवारों को चयन जैसे जो उम्मीदवार भागलपुर के सुल्तानगंज से टिकट चाहता हो उसे पटना साहिब से चुनाव लड़ाना केवल कांग्रेस में ही हो सकता है. दूसरे मिथिलांचल में कांग्रेस के उम्मीदवारों के खिलाफ कांग्रेस के नेताओं ने बागी खड़े किए, जिससे उनका जीतना मुश्किल हो गया. मगर इसका मतलब ये नहीं है कि कांग्रेस के लिए चिंता की बात नहीं है.

खूब मंथन की जरूरत है और इसके लिए आलाकमान को भी जिम्मेवारी लेनी होगी क्योंकि इसके बाद जिन राज्यों में चुनाव होने हैं वहां कांग्रेस की हालत बिहार जितनी भी अच्छी नहीं है. क्योंकि बंगाल में बीजेपी पूरा जोर लगाएगी और उत्तरप्रदेश में चौतरफा मुकाबले में कांग्रेस सबसे नीचे पायदान से ही शुरू करनी होगी. बिहार की सीख है कि स्थानीय स्तर पर नेता तैयार करें. सही गठबंधन करें और जीतने वाली सीटें लड़ें. वरना कांग्रेस पर अपनी हार के साथ-साथ दूसरों को भी हराने की तोहमत लगती रहेगी.

(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर-पॉलिटिकल न्यूज़' हैं.)

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