शायद इसलिए खुद को "हरियाणा का बेटा" कहते हैं केजरीवाल

पिछले 1 दशक के राजनीतिक ट्रेंड को अगर देखा जाए तो आम आदमी पार्टी उन राज्यों पर फोकस करती रही है, जहां कांग्रेस लगभग 1 दशक से सत्ता से बाहर है और कोई मजबूत क्षेत्रीय राजनीतिक दल उन राज्यों में नहीं है.

शायद इसलिए खुद को

आम आदमी पार्टी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ा एलान किया है. AAP ने कहा कि वह हरियाणा के चुनावी मैदान में अकेले उतरेगी. उसका कहना है कि 'इंडिया' गठबंधन केवल लोकसभा के लिए ही है. AAP सांसद संदीप पाठक ने बताया कि हरियाणा में हम लोग संगठन बना रहे हैं. उन्होंने साथ ही कहा कि हम निश्चित तौर पर हरियाणा की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे.

सवाल यह है कि 2019 में केवल 46 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली AAP में इस बार अकेले चुनाव लड़ने की हिम्मत कहां से आ गई. इन सभी 46 सीटों पर AAP उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे. पिछली बार पार्टी को कुल 0.48% वोट मिला था.

कहीं यह हिम्मत पड़ोसी राज्य पंजाब में मिली शानदार जीत से तो नहीं मिली? जहां 2022 विधानसभा चुनाव में 42.01% वोटों के साथ 117 में से 92 सीटें हासिल की थी. इस चुनाव में जहां कांग्रेस को 18 सीटें मिली तो भाजपा को केवल 2 सीटों के साथ सब्र करना पड़ा. कांग्रेस को ही सत्ता से हटाकर दिल्ली के बाद दूसरे राज्य में आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई थी. ऐसे में कहीं ना कहीं पंजाब में मिली जीत भी आम आदमी पार्टी के अकेले चलने के लिए हौसले बुलंद करने के लिए काफी है.

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भौगोलिक तौर पर हरियाणा, पंजाब और दिल्ली को जोड़ता है. पंजाब और दिल्ली दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी के पास मजबूत जनाधार है. इन दोनों ही जगहों की सरकार के कार्यों को दिखाकर AAP हरियाणा में अपने जनाधार को मजबूत करना चाहती है. दिल्ली से पंजाब का रास्ता हरियाणा होकर ही जाता है. दिल्ली, हरियाणा, पंजाब कॉरिडोर पर राजनीतिक तौर पर AAP की मजबूती उसे राष्ट्रीय राजनीति में भी एक मजबूत बढ़त दिला सकती है.

2019 में हरियाणा में दूसरी पार्टियों के प्रदर्शन की बात करें तो भाजपा ने 90 सीटों में से 36.49% वोटों के साथ 40 सीटें जीती थीं. वहीं, 28.08% वोटों के साथ कांग्रेस 31 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी. तीसरे नंबर पर दुष्यंत चौटाला की जेजेपी रही, जिसने 14.84% वोटों के साथ 87 में से 10 सीटें जीती थीं. किसी भी पार्टी ने 46 सीटों का जादुई आंकड़ा नहीं छुआ था. ऐसे में चुनाव के वक्त भाजपा के खिलाफ मुखर रहे दुष्यंत ने सरकार बनाने के लिए भाजपा का साथ दिया. इसके बदले में उन्हें मनोहर लाल खट्टर की सरकार में डिप्टी सीएम का पद मिल गया.

इस बीच हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी से भी AAP को एक अच्छा मौका नजर आ सकता है. कांग्रेस में एक गुट पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा का है. दूसरा गुट रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा और  किरण चौधरी का गुट है. कुछ दिन पहले दोनों धड़ों के समर्थकों की झड़प की भी खबर आई थी. दोनों गुटों के समर्थक स्टेट ऑब्जर्वर की मौजूदगी में ही भिड़ गए थे. इस घटना के बाद कांग्रेस का कहना है कि वह हरियाणा में संगठन बनाने पर काम कर रही है. इसके साथ ही दावा किया गया है कि एक महीने में संगठन बना लिया जाएगा. लेकिन सवाल यह है कि प्रदेश में गुटबाजी को कैसे खत्म की जाएगी.

दुष्यत चौटाला से किसानों की नाराजगी भी एक वजह हो सकती है. 2019 में दुष्यंत चौटाला के मनोहर लाल खट्टर के साथ जाने से जाट समुदाय खासा नाराज माना जा रहा है. जब कृषि बिल के खिलाफ किसानों ने दिल्ली सीमा पर आकर डेरा जमा लिया था. तब भी दुष्यंत चौटाला किसानों के साथ नजर नहीं आए थे. हालांकि, उनके चाचा अभय चौटाला जरूर काफिला लेकर पहुंचे थे. वहीं, अरविंद केजरीवाल किसानों के समर्थन में खुलकर बोल रहे थे. ऐसे में किसान आंदोलन के वक्त की नाराजगी को भी हरियाणा में भुनाने की कोशिश अरविंद केजरीवाल कर सकते हैं.

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कहीं ना कहीं मनोहर लाल खट्टर सरकार के खिलाफ कथित 'सत्ता विरोधी' लहर का भी केजरीवाल फायदा उठा सकते हैं. 2014 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला था, जबकि कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं. लेकिन पांच साल बाद वह बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई (हालांकि, जेजेपी के साथ मिलकर सरकार जरूर बना ली). वहीं, कांग्रेस ने इन पांच सालों में अपने प्रदर्शन में अच्छा-खासा सुधार किया. उसका आंकड़ा 15 सीटों से 31 सीटों तक पहुंच गया.

इसके अलावा कांग्रेस के पूर्व नेता अशोक तंवर जब से AAP के साथ आए हैं, तब से पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर पार्टी को मजबूत करने में लगे हैं. अशोक तंवर को कांग्रेस में राहुल गांधी का करीबी माना जाता रहा है. उन्हें 2014 में हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष  बनाया गया था. फिर साल 2019 में उनकी जगह कुमारी शैलजा ने ले ली. इसके एक महीने बाद ही अशोक तंवर ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. बाद में अशोक तंवर ने टीएमसी ज्वाइन की. इसके बाद 2022 में वह आम आदमी पार्टी में आ गए.

पिछले 1 दशक के राजनीतिक ट्रेंड को अगर देखा जाए तो आम आदमी पार्टी उन राज्यों पर फोकस करती रही है, जहां कांग्रेस लगभग 1 दशक से सत्ता से बाहर है और कोई मजबूत क्षेत्रीय राजनीतिक दल उन राज्यों में नहीं है. AAP ने गुजरात में करीब 13 फीसदी वोट पर्सेंटेज के साथ अच्छा प्रदर्शन भी किया. गोवा में भी आप की तरफ से संगठन खड़ा करने का प्रयास किया गया था.

देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के लिए हरियाणा में इस समय कोई मजबूत क्षेत्रीय दल नहीं है. अरविंद केजरीवाल इस निर्वात में अपने लिए स्पेस देख रहे हैं. यही वो कारण हो सकता है कि केजरीवाल ने खुद को अपनी जन्मस्थली हरियाणा का बेटा बताया था.

आरिफ खान मंसूरी NDTV में डिप्टी न्यूज एडिटर हैं...

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.