विज्ञापन
This Article is From Nov 06, 2014

अखिलेश शर्मा की कलम से : नरेंद्र मोदी से क्यों नहीं सीखते उनके मंत्री...?

Akhilesh Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:11 pm IST
    • Published On नवंबर 06, 2014 11:25 am IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:11 pm IST

इस बार 15 अगस्त को जब नरेंद्र मोदी लालकिले पर तिरंगा झंडा फहराने पहुंचे तो राजनीतिक विश्लेषकों ने उनके भाषण से बड़ी-बड़ी उम्मीदें बांधीं। उन्हें लगा कि जो व्यक्ति बरसों से यहां पहुंचने का सपना देख रहा था, वह अपने पहले भाषण में बड़े मुद्दे उठाएगा, देश को नए सपने दिखाएगा, नए वादे करेगा, अरबों-खरबों की योजनाओं की बात करेगा। मगर यह क्या...? मोदी तो खुले में शौच बंद करने और साफ-सफाई पर ज़ोर देते नज़र आए।

यह कोई बहस का विषय ही नहीं है कि खुले में शौच बंद करने और साफ-सफाई का मुद्दा छोटा विषय नहीं है। यह उतना ही गंभीर और महत्वपूर्ण विषय है, जितना देश में विदेशी निवेश को बढ़ावा देना या लाखों बेरोजगारों को नौकरी देना या महंगाई कम कर लोगों को राहत देना। लेकिन सवाल यह है कि इस बारे में प्रधानमंत्री को बोलने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई...? क्या यह बात नीचे से शुरू नहीं होनी चाहिए थी...?

हमारी शासन प्रणाली ब्रिटेन की वेस्टमिंस्टर पद्धति पर आधारित है। प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का प्रमुख होता है। यानि वह 'बराबर वालों में पहला' या 'फर्स्ट अमंग इक्वल्स' है। यह सही है कि समय के साथ-साथ प्रधानमंत्री की ताकत बढ़ती गई है, और वैसे यह व्यक्ति विशेष पर भी निर्भर करता है। भारत के संदर्भ में यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां सभी तरह के प्रधानमंत्री हुए हैं। कई ऐसे, जिन्होंने अपनी ताकत का भरपूर इस्तेमाल किया और कुछ ऐसे भी, जिन पर आरोप लगता रहा कि उन्होंने पद की गरिमा को घटाया।

मगर सवाल यह है कि जिस तरह मोदी आम लोगों से जुड़ी छोटी-छोटी बातों की परवाह कर उन्हें राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उठा रहे हैं, ऐसा करने में उनके मंत्रिमंडल के कुछ साथी क्यों पीछे रह जाते हैं। मोदी ने एक ऐसी ही बात दस्तावेज़ों को अटेस्ट करने को लेकर की। लाखों लोग हर रोज़ फोटोकॉपियों और हलफनामों को सत्यापित कराने के लिए राजपत्रित अधिकारियों की खोज में भटकते हैं, लेकिन अब ऐसा करना जरूरी नहीं रहा।

आपमें से कितने हैं, जिन्हें कभी रेलवे स्टेशन पर ऐसा कुली मिला हो, जो रेल मंत्रालय की तय की गई दरों के हिसाब से आपका सामान गाड़ी तक पहुंचा दे...? आप किसी बुजुर्ग को गाड़ी तक पहुंचाना चाह रहे हों और व्हील चेयर मिल जाए और कुली उचित दर पर पहुंचा सके...? क्या भारत में ऐसा हो पाना मुमकिन है कि आप बिना कुली की मदद लिए और बिना सीढ़ियां चढ़े सीधे गाड़ी तक चले जाएं...? आपकी यात्रा का अचानक कार्यक्रम बने और आप चाहे कुछ अधिक पैसे ही देकर सही, कन्फर्म बर्थ लेकर ट्रेन की यात्रा कर सकें...?

रेल भवन में बैठकर बुलेट ट्रेन की योजना बनाने वाले रेलमंत्री क्या इन विषयों पर ध्यान नहीं दे सकते...? क्या वह अपने अधिकारियों से सख्ती से वह काम नहीं करा सकते, जो उनका दायित्व है। ऐसा क्यों होता है कि त्योहार के मौके पर स्टेशनों पर भगदड़ जैसे हालात बनते हैं और रेल मंत्रालय पहले से अधिक गाड़ियों की व्यवस्था नहीं कर सकता।

हाईवे पर टोल के लिए एक अच्छी व्यवस्था शुरू की गई है। ई-टोल से लोगों की दिक्कतों का हल होगा। मगर यह अभी शुरुआती व्यवस्था है। एनएचएआई 22, 28, 32 रुपये जैसी टोल दरें क्यों रखता है, 20, 30, 35 रुपये आदि क्यों नहीं? छुट्टे पैसों को लेकर विवाद, उनके बदले चिप्स या टॉफी पकड़ाना और समय की बर्बादी क्या एक छोटा-सा कदम उठाकर नहीं रोकी जा सकती...?

हममें से कितने लोग इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए बीएसएनल की सेवाएं लेने का जोखिम उठा सकते हैं...? ऐसा नहीं है कि निजी कंपनियों की सेवाओं से लोग संतुष्ट हैं, मगर इसके अलावा विकल्प ही क्या बचा है। मोदी जिस डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं, उसे बीएसएनएल गांव-गांव तक कैसे पहुंचाएगा...?

लोगों के जीवन में बड़ी बातों के बजाए छोटी-छोटी बातों का अधिक असर होता है। लोगों की शिकायतें बड़े मुद्दों के बजाए अपने आसपास आ रही कठिनाइयों को लेकर होती हैं। इन्हीं से सरकार और नेताओं के बारे में उनकी राय बनती है। यही राय चुनावों के वक्त ईवीएम के जरिये दिखती है। ऐसा नहीं है कि नेता यह बात जानते नहीं, मगर जानते हुए भी अंजान बनकर वे किसी और का नहीं, अपना ही नुकसान कर रहे होते हैं।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
नरेंद्र मोदी, मोदी मंत्रिमंडल, केंद्रीय मंत्रिमंडल, नरेंद्र मोदी सरकार, अखिलेश शर्मा, केंद्रीय मंत्री, Narendra Modi, Narendra Modi Cabinet, Central Cabinet, Narendra Modi Government, Cabinet Ministers, Akhilesh Sharma