अजय सिंह की कलम से : फोटोग्राफरों के लिये मक्का बना बनारस


क्या पत्थर या पाषाण से भी जुड़ा कोई दार्शनिक पहलू हो सकता है? या क्या कोई पत्थर भी बोल सकता है? ये सवाल जब आप उत्तर वाहिनी मां गंगा के किनारे बने काशी के घाटों पर आते हैं तो बरबस आपके मन में आ सकता है।

यहां ऐसा क्या है कि मां गंगा भी इन घाटों से ऐसी बहती हैं मानो विलास कर रही है। इस सवाल का जवाब बनारस के अस्सी घाट से शुरू करते हुए आप का सफ़र जब तुलसी घाट, चेत सिंह घाट, आदि केशव घाट, दशाश्वमेघ घाट, मणिकर्णिका घाट तक पहुंचता है तो आप महसूस करेंगे कि आप बहुत कुछ पा चुके हैं और पत्थर से बने ये घाट यहां की जीवन्तता के बारे में आपको बता भी चुके हैं।

अस्सी घाट से राजा घाट तक लगभग 4 मील के विस्तार में फैले 84 घाट बलुआ पत्‍थरों से अर्धचन्द्राकार आकार में कुछ इस तरीके से बनाए गए हैं मानो आप किसी अर्धचन्द्राकार मुक्त आकाशीय मंच पर जीवन की सत्यता देख रहे होंI हमारी ये सोच तब और परिपक्व हो जाती है जब आप गंगा के किनारे ग्वालियर के पेशवा से लगायत राजस्थान और बंगाल के रईसों के घाट एक कतार में देखते हैं।

शायद सर्वधारा और सर्व समाहित की हमारी सोच इन घाटों पर बनी इन ऊंची ऊंची इमारतों में सहेज कर रखी गई है और शायद इसी सोच ने उत्तर वाहिनी मां गंगा के किनारे बने इन घाटों के मंच और गंगा की लहरों के बीच शांत वातावरण में समय-समय पर कभी तुलसी के मानस को शब्द दिये, कभी कबीर और रैदास को जीवन की सत्यता का बोध कराया, तो कभी पंडित कंठे महराज, किशन महराज के तबले की ताल बन कर बही, तो कभी बिस्म्मिला की शहनाई बन पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध किया। यही सोच गुदई महराज, सितारा देवी, गिरजा देवी जैसे दर्जनों संगीत मर्मज्ञों की गले की तान और घुंघरुओं की झंकार बन कर इन घाटों को हमेशा झंकृत करतीं है।

अपने महापुरुषों के इन्ही झंकार को सहेजे घाटों की बोलती इन तस्वीरों का क्रेज आज दुनिया भर के फोटोग्राफरों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। लिहाजा बनारस में इन दिनों फोटो टूरिज्म तेजी से बढ़ा है और दुनिया भर के फोटोग्राफर कैमरे की निगाहों से बनारस को देखने आ रहे हैं।

इतना ही नहीं दुनिया में होने वाली स्ट्रीट फोटोग्राफी की प्रतियोगिता में बनारस के ही फोटोग्राफर, स्ट्रीट फोटोग्राफर कैटेगरी में दूसरे नम्बर पर चुने गए। बनारस के घाटों की  किसी भी एंगल से खींची हुई तस्वीरें घाटों की ज़िन्दगी को बयां करती नज़र आती हैं। इन्ही बोलती तस्वीरों को अपने कैमरे में क़ैद करने के लिये दुनिया भर के फोटोग्राफरों के क़दम बनारस के इन घाटों पर चहलक़दमी करते दिख जाएंगे।

इन्हीं में से एक इंग्लैंड से आई करेन और डेज़ी है जो इन दिनों बनारस के हर पहलू को हमेशा के लिये कैमरे में क़ैद कर रही हैं। करेन और डेज़ी कहती हैं कि फोटोग्राफी के लिहाज से ये दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह है। जहां लाइट बहुत अच्छी है, एक दम सॉफ्ट, ये बहुत पुरानी नगरी है और यहां के लोग बहुत अच्छे हैं। बनारस का ये अनूठापन सिर्फ उसके घाटों में नहीं बल्कि उसकी गलियों में भी है। जहां दीवारों पर बनी मसबरी कला के चित्र और घरों की पुरानी बनावट इन फोटोग्राफरों को उनके मन पसन्द सब्जेक्ट उपलब्ध कराते हैं। यही वजह है कि इन विदेशी छायाकारों के क़दम इन गलियों में भी पड़ते हैं और वो यहां की जीवन्तता को अपने कैमरे में क़ैद करने के लिये बेताब नज़र आते हैं।

पहले टूरिस्ट यहां सिर्फ घूमने आता था, अब एक नई चीज आई है। हर टूरिस्ट यहां अब फोटोग्राफर की तरह आता है और हर फोटोग्राफर अब यहां आकर हाथ माजना चाहता है क्योंकि इससे ज़्यादा खूबसूरत उन्हें दुनिया में कहीं नहीं मिलता।

बनारस में ये फोटोग्राफी टूरिज्‍म नए ज़माने की देन है। क्योंकि वाट्सऐप, फेसबुक, सोशल मीडिया पर यहां की तस्वीरें यहां के स्ट्रीट फोटोग्राफर विनय और मनीष जैसे फोटोग्राफरों के जरिये दुनिया में पहुंचने लगीं। जब इसकी शोहरत हुई तो बाक़ायदा एक फोटो वॉकर ग्रुप बन गया। जिसमें मनीष को तो अपने घाटों की अलग-अलग ज़िन्दगी के रंग सी भरी तस्वीरों ने दुनिया में होने वाली स्ट्रीट फोटोग्राफी प्रतियोगिता में पूरे विश्‍व में दूसरे नम्बर का स्ट्रीट फोटोग्राफर बना दिया।

इस फोटो टूरिज्‍म ने एक नई डिमांड भी पैदा की है,  वो है फोटो टूरिस्ट गाईड की। जिसे मनीष और विनय जैसे बनारस के फोटोग्राफर बिना किसी पैसे के पूरा कर रहे हैं। कहने का मतलब ये कि बनारस के ये घाट बेजान पत्थर के नहीं, ये बोलते भी हैं, लिहाजा हमने जो पहले महसूस किया वो सत्य ही है कि ज़रूर कभी इन घाटों ने तुलसी के मानस को शब्द दिये होंगे, कभी कबीर और रैदास को जीवन की सत्यता का बोध कराया होगा, तो कभी पंडित कंठे महराज, किशन महराज के तबले की थाप को नई ऊंचाई दी होगी।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

और आज यही घाट अपनी बोलती तस्वीरों से दुनिया भर के फोटोग्राफरों को न सिर्फ मंत्रमुग्ध किए हुए हैं बल्कि उन्हें अपनी तरफ खींच भी रहे हैं। और यही बनारस के घाटों की जीवन्तता भी है तभी तो नज़ीर बनारसी कहते हैं कि 'लहराते दबे पांव चली जाती है गंगा, क्या जानिए क्या गाती है गंगा, जा के मेरे पास पलट आती है गंगा, मिलते हैं जो अफ़साने वो दुहराती है गंगा।