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This Article is From Dec 10, 2015

अभिषेक शर्मा का ब्लॉग : सलमान ने किसी को नहीं मारा!

Abhishek Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 13:43 pm IST
    • Published On दिसंबर 10, 2015 20:35 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 13:43 pm IST
सलमान खान का बरी होना कई कहानियां कहता है। कुछ वह जो मैं लिख नहीं सकता, जो महज इंसाफ के गलियारों की गप्प हैं। कुछ वह जो मैं लिख सकता हूं, लेकिन डर लगता है कि अदालतें न जाने किस नजर से उसे अपनी तौहीन समझ लें। मैं इन सबके बीच, बचते बचाते यह पुख्ता तरीके से कह सकता हूं कि मीडिया का मन अदालत ने पहले ही बना दिया था। फैसले को लेकर कोई शॉक नहीं लगा। अदालत में जो कुछ हो रहा था वह यह बताने के लिए काफी था कि सलमान छूट रहे हैं। यह सब सिलसिलेवार हो रहा था। जज साहब एक के बाद एक सबूतों की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठा रहे थे। मीडिया में यह लगातार रिपोर्ट भी हो रहा था।

किसी फिल्मी कहानी की तरह...
ऊपरी अदालत को पूरा हक है कि निचली अदालत के फैसले को पलट दे, लेकिन इन सबके बीच कुछ छूट गया है। किसी फिल्म की कहानी जैसा लगता है एक किसी अशोक सिंह नाम के ड्राइवर का सामने आना... 13 साल चुप रहना... और एक दिन अचानक सेशन कोर्ट में कहना कि - जज साहब मैं हूं वह शख्स जिसने गाड़ी से फुटपाथ पर सोते लोगों को रौंदा था। सेशन कोर्ट सवाल पूछता रहा कि तुम इतने साल कहां थे ? पैसे के धनी सलमान के वकील और तमाम संसाधन अशोक सिंह को सामने न ला पाए! अशोक सिंह के 13 साल बाद जागे आत्मबल को निचली अदालत ने नकार दिया। नहीं माना कि 2002 की उस रात को वह गाड़ी चला रहा था। अशोक सिंह दलील देता रहा कि वह तो पुलिस के पास गया था लेकिन पुलिस ने ही नहीं माना कि वह गाड़ी चला रहा था। इस ड्राइवर का जिक्र न तो सलमान के बॉडी गॉर्ड की दलील में आया और न ही किसी और जगह।

ऊपरी अदालत ने अशोक सिंह की सारी दलीलें मान लीं, उसे तारीफ मिली है। पुलिस को फटकार पड़ी कि इसे क्यों नजरअंदाज किया? अशोक सिंह जैसा ड्राइवर इस दुनिया में हर आदमी चाहेगा! निचली अदालत में दलील देने वाले कांस्टेबल रवीन्द्र पाटिल के बयान को मान लिया गया। विशेष सरकारी वकील की यह दलील मुझे सही लगी है कि पाटिल के पास ऐसी कोई वजह नहीं थी कि सलमान के खिलाफ झूठ बोले। ऊपरी अदालत ने उसे पूरी तरह नकार दिया। जो केस में सबसे भरोसेमंद कड़ी लग रहा था उसे उखाड़ दिया।

तर्कों के खिलाफ राज्य के लिए रास्ते खुले
तो क्या अदालतें सिर्फ सबूत देखती हैं ? या मामला सबूतों की गुणवत्ता को लेकर था। इस सवाल का जवाब सिर्फ वह लोग दे सकते हैं जिनको फैसले लेने हैं। उनके चश्मे के नंबर पर निर्भर करता है कि वे किसी अशोक सिंह को, रवीन्द्र पाटिल को कितना वजन देते हैं। बहरहाल, अदालतों के फैसले सिर माथे। जज साहब रिटायर होने वाले हैं, उनके तर्कों को चुनौती देने के रास्ते राज्य के सामने खुले हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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