नई दिल्ली: बीजेपी और उसके नेताओं के लिए सार्वजनिक जीवन में शुचिता का पाठ पढ़ाना कोई नई बात नहीं है, बीजेपी और उसके बड़े नेता दो दशकों से ये पाठ दोहराते आए हैं। लेकिन विडंबना ये है कि बीजेपी के कई नेता कई बार इस पाठ का अनुसरण नहीं करते नज़र आए।
हाल के अरुण जेटली मसले में बीजेपी के इस पाठ पर फिर से सवाल उठ रहे हैं और विचारधारा को सियासी रूप देने वाले पुराने नेता जो आज मार्गदर्शक की स्थिति में हैं, वो आज के बीजेपी नेतृत्व को लगातार संकेत दे रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी तो मोदी की सरकार बनने से बहुत पहले ही कह चुके हैं कि उनको इस पार्टी के तौर तरीके नहीं समझ आते।
अब ये एक तरीके से सियासत और विचारधारा के बीच का प्रश्न बन गया है। अंतिम जवाब क्या होगा ये तो अभी कहना संभव नहीं है लेकिन बीजेपी साफ तौर पर किसी भी दूसरी पार्टी की तरह नज़र आ रही है। बेहतर होगा इस पार्टी के लिए कि वो बचाव की मुद्रा से हटे और समय रहते कमजोर कड़ियों को दुरुस्त करे। आज के युग में जनता के मन में धारणाएं बहुत तेजी से बदलती हैं और यही बीजेपी के लिए सबसे बड़ा ख़तरा हो सकता है।
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