नोटबंदी : गेंहू के साथ पिस रहा घुन, लाइनों में लगे लोगों के सब्र को सलाम

नोटबंदी : गेंहू के साथ पिस रहा घुन, लाइनों में लगे लोगों के सब्र को सलाम

दिल्ली में चांदनी चौक क्षेत्र में भीड़ का नजारा.

शुक्रवार की सुबह मेरे पास खबर आई कि चांदनी चौक इलाके में छापेमारी चल रही है. मैं चांदनी चौक के दरीबा इलाके में पहुंचा जहां एक दुकान के बाहर कुछ भीड़ लगी थी. मैंने दुकान की तरफ देखा तो वहां करीब चार पुलिस वाले दुकान के बाहर बैठे हुए थे. दुकान का शटर नीचे से एक हाथ खुला हुआ था. क्या इसी दुकान में इनकम टैक्स की रेड हो रही है? यह बात जानने के लिए मैंने आसपास खड़े ज्वेलर्स और ड्यूटी पर बैठे पुलिस वालों से पूछा तो सबने बता दिया.

अब मैं कुछ देर वहां रुककर अपनी रिपोर्ट के लिए तथ्य जुटाने और माहौल भांपने में लग गया. मुझे माहौल गुरुवार के मुकाबले शुक्रवार को कुछ बदला-बदला सा लगा. कल तक व्यापारी पीएम मोदी की नोटबंदी की नीति से परेशान तो हो रहे थे लेकिन न तो उनसे नाराज थे और न ही आलोचना कर रहे थे. लेकिन आज व्यापारी खासे नाराज नजर आ रहे थे. व्यापारी कह रहे थे 'मोदीजी ने नास करवा दिया हमारा और खुद जाकर जापान में बैठ गए.'

लेकिन जैसे ही उन्होंने देखा मैं टीवी वाला हूं और मेरे हाथ में माइक और साथ में कैमरा भी है वे चुप हो गए. जैसे ही मैंने पूछा आप क्या यहीं के ज्वेलर हैं? वे घबरा गए और पलक झपकते ही वहां से चले गए. मैंने कुछ और लोगों से बात की तो ज्यादातर लोग या तो बचते नज़र आए या एक संतुलित सी बात बोलते नज़र आए.

अब बाजार खुलने का समय हो गया था लेकिन एक भी दूकान नहीं खुली थी. मैंने कैमरा पर रिपोर्टिंग शुरू की. वहां खड़े लोगों ने कैमरे पर कहा कि ज़्यादातर ट्रेडर्स ईमानदार हैं केवल 1% की वजह से 99% को परेशान किया जा रहा है जिसके चलते व्यापारी दहशत में हैं और इसीलिए दुकानें सब बंद हैं.

ऑफ कैमरा और ऑन कैमरा के इस अंतर को समझते हुए मैंने अपनी लाइव रिपोर्ट में भी शामिल किया क्योंकि मुझे अब अहसास होने लगा था कि इनकम टैक्स के छापों से अब व्यापारी वर्ग में वह नाराजगी दिखने लगी है जो कल तक नहीं दिख रही थी. खैर नाराजगी हो तो भी क्या फर्क पड़ता है? जिसने गलत किया होगा वो भुगतेगा ही. यह सोचकर मैं आगे बढ़ गया.

दरीबा कलां से अब मैं देश के सबसे बड़े सराफा बाजार कूंचा महाजनी पहुंचा. आयकर के छापों के चलते वह बाजार गुरुवार को बंद हुआ था और अब शुक्रवार को भी बंद ही था. मैं कूंचा महाजनी की गली में घुसा तो दुकान तो सब बंद थीं लेकिन लोग वहां इधर से उधर घूमते, बैठे, बातें करते नज़र आ रहे थे.

जब मैं उनसे पूछता कि आप क्या व्यापारी हैं या ज्वैलर हैं तो वे यह कहकर कि 'नहीं हम तो यहां आए हुए थे' इधर उधर देखने लगते. लेकिन मैं जानता था कि यह लोग कोई बाहर से आए हुए नहीं  बल्कि यहीं के ट्रेडर,कमीशन एजेंट, कर्मचारी या मजदूर हैं. मैंने कुछ समय और बिताया तो वहां मौजूद लोग कहने लगे कि 'भाईसाहब शादी का पीक सीजन है इस समय यहां इतना काम होता था कि हम दिन में खाना तक नहीं खा पाते थे और ऐसे समय में सरकार ने यह काम कर दिया.'

थोड़ा गली में और जाकर माहौल टटोलने की कोशिश की तो एक व्यापारी बोला कि 'भाईसाहब जब हमने एक्साइज ड्यूटी लगाने के विरोध में दो महीने दुकान बंद रखी तब किसी को खयाल नहीं आया कि हमारे घर कैसे चल रहे होंगे हम अपने लोगों को तनख्वाह कैसे दे रहे होंगे, लेकिन कुछ व्यापारियों ने किलो के भाव महंगा सोना बेच दिया तो सब लग गए हमारे पीछे?'

असल में खबर यही थी कि लोग अपना काला धन दोगुनी कीमत पर सोना खरीदकर एडजस्ट करने में लगे हैं जिसके बाद सराफा कारोबारी और ज्वेलर्स पर छापे पड़े. और छापों की दहशत में सारा बाजार ही बंद हो गया.

अब मैं खारी बावली की तरफ बढ़ा जो कि देश का सबसे बड़ा ड्राई फ्रूट और किराना मार्केट है. इसके लिए जब मैं कूंचा महाजनी से ई-रिक्शा में बैठकर जाने लगा तो मेरे कैमरापर्सन ने याद दिलाया किहमारे पास देने के लिए खुले पैसे नहीं हैं लिहाजा मैं वहां से पैदल खारी बावली के लिए चल पड़ा.

पैदल चलते वक्त चांदनी चौक के इस पूरे बाजार की तस्वीर देखकर मैं हैरान था. मेरे दोनों तरफ लोगों की लंबी-लंबी लाइनें चली ही जा रही थीं, खत्म ही नहीं हो रही और खत्म हुई तो दूसरी शुरू हो गई. क्योंकि चांदनी चौक का इलाका ट्रेड हब है और वहां सारा काम नगद होता है इसलिए वहां कुछ कुछ दूरी पर बैंक और एटीएम हैं. एटीएम में लाइन, बैंकों में लाइन इतनी लंबी लाइनें मैंने जीवन में पहली बार देखी थीं.

मैं चलता जा रहा था और लाइन भी चलती जा रही थी. ऐसी तस्वीरें मैंने फिल्मों में देखी थीं जिसमें 70 के दशक में देश का क्या हाल था पता चलता था. सस्ते राशन के लिए लोग घंटों लंबी लाइन में लगते होंगे. अरे आज के समय में मुफ्त रिलायंस जियो के सिम कार्ड के लिए छोटी सी लाइन देखकर ही मैं आश्चर्य करने लगा था लेकिन यह लंबी-लंबी लाइनें और इसमें घंटों से खड़े लोग और गज़ब भीड़ देखकर मैंने इनके धैर्य को सलाम किया. अचानक एक बैंक एटीएम के बाहर मारपीट दिखने लगी. कोई शख्स लाइन में बीच में घुसकर अपने नंबर से पहले आगे आने की कोशिश में था कि दूसरे किसी शख्स ने उसमें दो रख दिए जवाब में इस शख्स ने भी दो रख दिए. खैर मेरे कैमरे के पहुंचते ही मामला शांत हो गया.

चांदनी चौक की ज़्यादातर दुकानें बंद थीं. जो खुली भी थीं वहां दुकानदार खाली बैठे थे. खाली कैसे नहीं बैठेंगे लोग तो सारे बैंकों और एटीएम पर खड़े थे. हालत इतनी खराब थी कि कुछ दुकानदारों तो उनके काउंटर के ऊपर या यूं कहें कि गल्ले के ऊपर बैठकर अपने मोबाइल के फीचर्स का फायदा उठाकर अपना टाइम निकाल रहे थे.

अब मैं खारी बावली पहुंचा जहां ज्यादातर दुकानें बंद थीं. ऐसा लग रहा था जैसे आज रविवार छुट्टी का दिन है. कुछ दुकानें खुली थीं लेकिन ग्राहकों का कोई अता-पता नहीं था. एक दुकानदार से पूछा कि क्यों बंद हैं सब दुकानें तो उन्होंने बताया कि जब लोगों के पास पैसा ही नहीं है, हमारे पास ग्राहक नहीं, तो दुकान खोलकर क्या करेंगे? हम भी बस इसलिए बैठे हैं क्योंकि घर पर जाकर क्या करेंगे? बिना मतलब तनाव होता है.

मैंने सोचा कि इन लोगों ने सालों से बाजार में खूब कमाया है और काला धन भी यहां के व्यापारियों के पास हो सकता है. बाजार में मजदूर और गाड़ी से माल दिल्ली एनसीआर में सप्लाई करने वाले लोग खाली बैठे दिखे. मनसाराम नाम के मजदूर ने बताया कि रोज़ाना 200-300 रुपये कमा लेते थे लेकिन अब दो दिन से बोनी भी नहीं हुई जैसे तैसे खाना खा रहे हैं. योगेश नाम के माल सप्लाई करने वाले ने बताया कि घर में 6 लोग हैं, यहां से रोज़ाना 600-700 रुपये काम लेता था लेकिन जब ग्राहक ही नहीं आ रहा तो दिन से खाली बैठे हैं. इनके बारे में तो मैं ही नहीं आप भी कह सकते हैं कि इनके पास न तो काला धन होगा न ही नोटबंदी की योजना इन पर हमले के लिए बनी होगी लेकिन यह पिस रहे हैं.

अब जब मैं कैमरे पर इसको रिकॉर्ड कर रहा था तो कुछ व्यापारियों ने 'मोदी हाय-हाय' के नारे लगाने शुरू कर दिए. मैंने कहा भाईसाहब अभी रुको आपसे बात करूंगा पहले इनसे शांति से बात करने दो क्योंकि शोर मचाकर हल्ला करके बात समझ नहीं आती. वे कुछ देर रुके लेकिन जैसे ही मैं कैमरे पर रिपोर्ट खत्म करने लगा उन्होंने फिर हल्ला करना शुरू कर दिया और बोलने लगे 'मीडिया बिकी हुई है सबको मोदी ने खरीद लिया है.'

मैं इन लोगों से भी जरूर बात करने वाला था लेकिन मैंने सोचा यह रिपोर्ट लंबी हो रही है अगले में इनका गुस्सा कवर करूंगा. लेकिन व्यापारी अधीर हो रहे थे. व्यापारी बोलने लगे 'मीडिया को मोदी ने खरीद लिया है', 'कोई सा भी मीडिया एक शब्द मोदी के खिलाफ नहीं दिखा रहा', हम यहां मर रहे हैं और मीडिया वाले दिखा रहे हैं कि लोगों में जश्न का माहौल', 'किसी मीडिया ने सरकार के इस कानून का विरोध किया क्या.'

इन लोगों की बात सुनकर मैंने कहा कि आप कर लीजिए विरोध, वे बोले आप हमारी बात लोगे ही नहीं. मैं उनका यह विचार कैमरे पर लेने जा रहा था लेकिन मेरे लिए यह जानना जरूरी था कि ये लोग कौन हैं जिससे पता चले कि किस वर्ग के क्या विचार हैं. मैंने आक्रामक हो रहे एक दो लोगों से पूछा क्या आप व्यापारी हैं आपकी दूकान यहीं है? वे लोग बोले वाह हम आपको बता दें और उसके बाद हमारी भी ऐसी तैसी कराओगे आप?

यह व्यापारी ही थे लेकिन मैं इनसे बात करता इतने में कुछ दूसरे व्यापारियों ने उनको शांत कराकर मुझे रोका और उनको वहां से चलता कर दिया. मैंने पूछा अरे भाईसाहब बोलने दो न उनको सबके विचार आने चाहिए. वे बोले अरे भाईसाहब ऐसी बातों का कोई फायदा है क्या? कुछ उल्टा सीधा बोल दो और फिर नतीजा भुगतो!

लेकिन मैंने गुस्सा हो रहे व्यापारियों को उनकी दुकानों पर जाकर खोज निकाला और पूछा अब बताओ भाईसाहब क्या कहना चाहते हैं आप? अब उन व्यापारी भाईसाहब ने अपने तेवर नरम किए और कहा 'भाईसाहब मैं तो केवल इतना कह रहा था कि कुछ लोगों की वजह से सब लोगों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए.'

कुल मिलाकर यह समझ आया कि कोई व्यापारी पॉइंट आउट नहीं होना चाहता इसलिए आलोचना करता कैमरा पर नहीं दिखता वरना नाराज़गी तो दिखने लगी है. परेशान वे हैं जिन्होंने कुछ गलत किया होगा और परेशान वे भी हैं जिन्होंने कुछ गलत नहीं किया है. फर्क सिर्फ इतना है कि गलत करने वाला केवल मानसिक तौर पर परेशान है जबकि गलत नहीं करने वाला आज मानसिक और शारीरिक दोनों तौर पर परेशान है.

शरद शर्मा एनडीटीवी में वरिष्‍ठ संवाददाता हैं।

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