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50 साल बाद भी शोले की राधा और बसंती हैं हमारी दुनिया का हिस्सा

हिमांशु जोशी
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 18, 2025 11:46 am IST
    • Published On अगस्त 18, 2025 11:45 am IST
    • Last Updated On अगस्त 18, 2025 11:46 am IST
50 साल बाद भी शोले की राधा और बसंती हैं हमारी दुनिया का हिस्सा

फिल्म'शोले' डाकुओं और दोस्ती की कहानी है. इस कहानी में छुपी हैं दो औरतों की अलग-अलग दुनिया, जो 70 के दशक से हमेशा के लिए हमारी दुनिया का हिस्सा बन गईं. 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई भारतीय सिनेमा की यादगार फिल्मों में से एक 'शोले' के 50 साल पूरे हो चुके हैं. इस फिल्म ने न सिर्फ डाकुओं और बदले की कहानी दिखाई, बल्कि दोस्ती की एक अटूट तस्वीर भी पेश की. जय-वीरू की जोड़ी और गब्बर के डायलॉग्स हर किसी की जुबान पर अमर हो गए, लेकिन इस फिल्म की असली गहराई तब समझ आती है जब हम इसकी मुख्य महिला किरदारों पर ध्यान देते हैं. वह किरदार हैं, राधा और बसंती के.

राधा, खामोश मगर अटूट ताकत जो आज भी टूटी नहीं

जया भादुड़ी का निभाया किरदार राधा पहली नजर में दुख सहती विधवा के रूप में सामने आता है. सफेद साड़ी और चुप रहती राधा फिल्म में अपनी एंट्री से ही दर्शकों को प्रभावित करने लगती है. राधा वो औरत है जो कम बोलती है, मगर अपने हाव- भाव से ही अपनी ताकत का परिचय देती है. ठाकुर की जान बचाने से लेकर गब्बर के साथ आखिरी जंग तक उसकी मौजूदगी फिल्म की आत्मा है.

आज भी हमारे समाज में ऐसी राधाएं मौजूद हैं. ये वो मां, बहनें और पत्नियां हैं जो बिना शोर किए कठिन परिस्थितियों में परिवार का सहारा बनती हैं. उनकी चुप्पी कोई कमजोरी नहीं होती बल्कि यह उनकी मानसिक मजबूती का परिचायक होती है.

बसंती में हंसी और हिम्मत का तूफान

हेमा मालिनी का निभाया किरदार 'बसंती' फिल्म की सबसे चुलबुली और जीवंत किरदार है. तांगा चलाने वाली यह लड़की अपनी हंसी और बेबाक अंदाज से सबका दिल जीत लेती है. गब्बर के सामने कांच पर नाचने वाला सीन आज भी याद किया जाता है. बसंती डरती है, मगर रुकती नहीं. वह अपनी शर्तों पर जीने वाली आजाद औरत की छवि है.

70 के दशक में जब औरतों की भूमिकाएं सीमित थीं, तब बसंती ने कामकाजी और स्वतंत्र महिला का चेहरा पेश किया. आज के समय में, जब महिलाएं करियर, परिवार और अपनी पहचान को साथ लेकर चल रही हैं, तो बसंती का किरदार और भी प्रासंगिक हो जाता है.

दो औरतें, दो चेहरे, अलग रास्ता

शोले में राधा और बसंती एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. एक खामोश और त्यागी, दूसरी जीवंत और बेबाक. लेकिन दोनों मिलकर दिखाती हैं कि औरतें एक ही सांचे में फिट नहीं होतीं. यही वजह है कि यह फिल्म सिर्फ डाकुओं की कहानी नहीं, बल्कि समाज का आईना भी है. 

'होली के दिन दिल खिल जाते हैं' गीत इस फिल्म की दोनों मुख्य किरदारों की कहानी का सार है, एक तरफ चुलबुली बसंती है तो एक तरफ शांत राधा. राधा हमें सिखाती है कि दुख में भी ज़िंदगी को भरपूर जी सकते हैं और बसंती दिखाती है कि एक औरत स्वतंत्रता के साथ रह सकती है.

आज भी राधा और बसंती हमारे आसपास हैं. राधा वे महिलाएं हैं जो परिवार और जिम्मेदारियों को संभालती हैं, जबकि बसंती वे हैं जो सोशल मीडिया या सड़क पर गलत के खिलाफ आवाज उठाती हैं और दुनिया के सामने खुद को साबित करती हैं. असल मायने में आज की महिलाएं दोनों रूपों को जी रही हैं और राधा, बसंती हमारे समाज में हमेशा के लिए शामिल हो गई.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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