यदि हमें किसी ऐसे व्यक्ति को चुनना हो, जिनके जीवन और संगठनात्मक क्षमता ने आसेतु हिमाचल औसत भारतीय के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डाला हो, तो वह निस्संदेह डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार होंगे. साल 1889 में हिंदू नववर्ष (1 अप्रैल) के दिन नागपुर में जन्मे हेडगेवार बाद में एक आधुनिक, शक्तिशाली भारत के निर्माता बने, जो हिंदू सभ्यता की विरासत पर बिना किसी संकोच के गर्व करता है.उनकी कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है,जिन्होंने समर्पित युवाओं की नई पीढ़ी के साथ समाज को बदलने में सफलता प्राप्त की, जिनका प्रभाव आज भारत के हर कोने में देखा जा सकता है- तवांग से लेह और ओखा से अंडमान तक.
स्थापना के कितने दिन बाद रखा गया था आरएसएस का नाम
उन्होंने 1925 में विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की, लेकिन इसका नाम एक साल बाद रखा गया. उस दिन की पहली घोषणा एक साधारण एक पंक्ति थी- 'मैं आज संगठन स्थापना की घोषणा करता हूं.' राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम एक साल बाद गहन विचार-विमर्श और कई सुझावों के बाद रखा गया, जिनमें भारत उद्धारक मंडल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शामिल थे.
मुख्य उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना था जो कभी भी आंतरिक झगड़ों का शिकार न हो और ऐसी एकजुटता स्थापित करे कि भविष्य में कोई हमें अधीन न कर सके. इससे पहले, हेडगेवार कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे और उन्होंने पार्टी के प्रसिद्ध नागपुर अधिवेशन के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और स्वतंत्रता के लिए जोशीले भाषण देने के कारण एक साल के कठोर कारावास की सजा पाई. वे अनुशीलन समिति और इसके नेता पुलिन बिहारी बोस के साथ अपने संबंधों के कारण ब्रिटिश सरकार के निशाने पर रहे. फिर भी, उन्होंने कभी प्रचार की तलाश नहीं की और उनके द्वारा गढ़े गए लोगों की तुलना में,जो बाद में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुए,वे अपेक्षाकृत कम जाने गए.

आरएसएस के स्थापना के समय संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार ने इसका कोई नाम नहीं रखा था, केवल इतना कहा था- मैं आज संगठन स्थापना की घोषणा करता हूं.
यह विनम्रतापूर्वक कहा जाता है कि नरेंद्र भाई मोदी को प्रभावित करने वाले व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि डॉ. हेडगेवार थे. यह बात उन लाखों अन्य स्वयंसेवकों के लिए भी सत्य है, जो अपने-अपने क्षेत्रों में चमके. आप हमारे राष्ट्रीय जीवन का कोई भी क्षेत्र लें, आपको डॉ. हेडगेवार से प्रेरित व्यक्ति मिलेगा.
भारत के लिए समर्पित स्वयंसेवक
चिकित्सा सहायता से लेकर स्कूलों, कॉलेजों और प्रौद्योगिकी संस्थानों तक, श्रमिक संगठनों से लेकर छात्र संगठनों और जनजातीय सेवा परियोजनाओं तक, डॉ. हेडगेवार का दृष्टिकोण उन हजारों युवा आत्माओं द्वारा लागू किया जा रहा है, जिन्होंने सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी प्रत्येक नागरिक के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया है.
यह विश्वास करना कठिन है कि केवल एक संगठन, वनवासी कल्याण आश्रम, जो जनजातीय बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है, 30 हजार सेवा परियोजनाएं चला रहा है,इनमें छात्रावास, स्कूल, चिकित्सा केंद्र, महिलाओं की स्वावलंबन परियोजनाएं, बालिका छात्रावास आदि शामिल हैं. संघ परिवारों में सबसे अधिक अंतरजातीय विवाह होते हैं और जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने की मूक क्रांति संघ कार्यकर्ताओं द्वारा जातिवादी व्यवहार के खिलाफ सक्रियता के साथ हो रही है. जब मैंने उत्तराखंड के जौनसार बावर के दूरस्थ गांवों में दलितों को मंदिर प्रवेश के लिए ले गया, तो तथाकथित उच्च जाति के लोगों ने चुप्पी साध ली, जबकि एकमात्र सांत्वना आरएसएस के राष्ट्रीय महासचिव सुरेश उपाख्य भय्याजी जोशी से मिली, जिन्होंने कहा कि 'आप स्वयंसेवक के नाते सामाजिक न्याय के लिए लड़ रहे हैं.'
आज, शायद भारत में किसी भी संगठन द्वारा संचालित सबसे बड़ा सेवा परियोजना नेटवर्क संघ कार्यकर्ताओं द्वारा कुशलतापूर्वक चलाया जा रहा है- ये वे लोग हैं जो डॉ. हेडगेवार से प्रेरित हैं. इन परियोजनाओं की संख्या एक लाख 70 हजार है- जिनमें अस्पताल, रक्त बैंक, नेत्र बैंक, दिव्यांगों, दृष्टिबाधित और थैलेसीमिया प्रभावित बच्चों की मदद के लिए विशेष केंद्र शामिल हैं. चाहे युद्ध का समय हो या प्राकृतिक आपदा, हेडगेवार के अनुयायी सबसे पहले राहत प्रदान करने के लिए पहुंचते हैं, चाहे वह चरखी दादरी विमान दुर्घटना हो, सुनामी, भुज, उत्तरकाशी भूकंप या केदारनाथ त्रासदी, आरएसएस के स्वयंसेवक प्रभावित लोगों की मदद करने और बाद में पुनर्वास कार्य में सबसे आगे थे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर भी आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार का प्रभाव देखा जा सकता है.
बीजेपी को कहां से मिलती है नैतिक
बीजेपी को अपनी नैतिक शक्ति संघ से मिलती है. इसके कई नेता स्वयंसेवक हैं. फिर भी,संघ को केवल बीजेपी के राजनीतिक प्रसार के आधार पर आंकना डॉ. हेडगेवार के भारतीय समाज पर प्रभाव को कम आंकना होगा. भारत-म्यांमा सीमा पर अंतिम गांव मोरेह की कल्पना करें- वहां स्कूल चला रहा है, स्थानीय ग्रामीणों को दवाइयां दे रहे हैं, यह डॉ. हेडगेवार के दृष्टिकोण से प्रेरित लोग हैं.
इसी तरह, सुदूर उत्तर-पूर्व में स्थानीय जनजातियों की सेवा के लिए मोकोकचुंग और चांगलांग परियोजनाएं और अंडमान में छात्रों के लिए पोर्टब्लेयर आश्रम इन लोगों द्वारा चलाए जाते हैं. संघ के पास आज देश में स्कूलों, शिक्षकों और शैक्षिक संस्थानों का सबसे बड़ा नेटवर्क है. विद्या भारती आज 25 हजार से अधिक स्कूल चलाती है, जिसमें ढाई लाख छात्र और एक लाख शिक्षक हैं, जो उत्तर-पूर्व के सबसे दूरस्थ गांव से लेकर लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तानों और राजस्थान, जम्मू और पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों तक फैले हुए हैं.
स्वतंत्रता के बाद हिंदू समाज की आवाज संसद तक पहुंचाने के लिए भारतीय जनसंघ की स्थापना के लिए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को प्रेरित करने से लेकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से लेकर कश्मीर का भाग्य बदलने,राष्ट्रीय स्तर पर सकल भारत की चिंता करने वाले संगठनों की आकाशगंगा स्थापित करने, विदेशी षड्यंत्रों के विरुद्ध भारत भारती के प्रति उद्दाम प्रतिबद्धता वाले करोड़ों लोग निर्मित करने, मनुष्य निर्माण के स्वामी विवेकानंद के स्वप्न को पूरा करने के पीछे आज जो राष्ट्रीयता भावयुक्त शक्ति दिखती है,वह डॉ. हेडगेवार की देन है.

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के पूर्वज आज के तेलंगाना के कंदकुर्ती गांव से निकलकर महाराष्ट्र के नागपुर आए थे.
कहां स्थित है डॉक्टर हेडगेवार का पैतृक गांव
कुछ समय पूर्व मैं तेलंगाना के कंदकुर्ती गांव में डॉ. हेडगेवार के पैतृक गांव पर एक वृत्तचित्र की शूटिंग के लिए गया था. यह गोदावरी, हरिद्रा और मंजिरी के संगम पर स्थित एक ऐतिहासिक गांव है. हेडगेवार परिवार का पैतृक घर करीब 50 फुट गुणे 28 फुट का है, जिसे स्थानीय ग्रामीणों ने वरिष्ठ संघ अधिकारी मोरो पंत पिंगले की मदद और प्रेरणा से एक स्मारक में बदल दिया है. वहां एक सुंदर सह-शिक्षा स्कूल, केशव बाल विद्या मंदिर चला रहा है,जिसमें करीब दो सौ छात्रों की सामान्य संख्या है. मुझे यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि वहां करीब 30 फीसद मुस्लिम लड़के-लड़कियां पढ़ रहे हैं. यह नहीं कि गांव में अन्य स्कूल नहीं हैं. शांत, सुकून भरे इस गांव में करीब 65 फीसद मुस्लिम और 35 फीसद हिंदू रहते हैं. यहां जितने प्राचीन मंदिर हैं, उतनी ही मस्जिदें हैं. वे एक-दूसरे के साथ सह-अस्तित्व में हैं. एक भी अप्रिय घटना नहीं हुई है. यहां के मुस्लिम अपने बच्चों को संघ के संस्थापक की स्मृति में स्थापित स्कूल में क्यों भेजना पसंद करते हैं?
मैं एक अभिभावक, जलील बेग से मिला, जो अपनी वंशावली को मुगलों से जोड़ते हैं. वे एक पत्रकार हैं, जो प्रसिद्ध उर्दू दैनिक 'मुंसिफ' के लिए लिखते हैं. उन्होंने कहा कि उनके परिवार ने इस स्कूल को पढ़ाई के लिए एक अच्छे स्थान के रूप में चुना क्योंकि यह गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सर्वोत्तम सुविधाएं प्रदान करता है. सबसे बढ़कर, इसका स्तर अच्छा है और यहां डिजिटल कक्षा भी है, जो बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा से प्रशिक्षित करती है. मैंने रफिया, स्कूल की एक प्यारी सी छात्रा को, लयबद्ध रूप से गाते सुना,'हिंद देश के निवासी, सभी हम एक हैं, रंग रूप, वेश भाषा, चाहे अनेक हैं.'
डॉ. हेडगेवार, जो कई प्रमुख नेताओं पर सबसे बड़ा प्रभाव डालने वाले व्यक्ति रहे, ने अपने पैतृक गांव के माध्यम से उन्हें सर्वश्रेष्ठ उपहार दिया है, जो 'सबका साथ,सबका विकास' की थीम को पूर्ण वैभव में दर्शाता है.

डॉक्टर हेडगेवार के पैतृक गांव में उनके नाम पर चलने वाले केशव बाल विद्या मंदिर की छात्राएं.
स्वयंसेवकों का संन्यासी वाला जीवन
जिन्होंने लाखों लोगों को एक अखिल भारतीय दृष्टिकोण दिया, उज्ज्वल युवा भारतीयों को प्रचारक-संन्यासी के रूप में एक नए विचारधारा का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया, जो भले ही भगवा वस्त्र न पहनते हों, लेकिन एक तपस्वी का जीवन जीते हैं, लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सभ्यतागत जागृति के लिए सबसे चुपके से, बिना प्रचार के मीडिया की चकाचौंध से दूर रहकर अपना सर्वस्व दे रहे हैं, यह उस भारत की कहानी है जो पहले कभी नहीं देखी गई तरह से बदल रहा है.
डॉ. हेडगेवार, जिन्होंने लाखों लोगों को राष्ट्र की भलाई के लिए जीने की प्रेरणा दी, भारत की सार्वभौमिक मूल्यों और धार्मिक परंपराओं के लिए गर्व और साहस का संचार किया, उनका अध्ययन और सराहना अधिक की जानी चाहिए. वे भारत के सबसे बड़े परिवर्तनकारी हैं, जिन्हें हमने कभी देखा नहीं है, पर उनको स्वयंसेवकों के सेवा कार्यों में अनुभव किया है.
डिसक्लेमर: लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुखपत्र माने जाने वाले 'पांचजन्य' के पूर्व संपादक और राज्य सभा के पूर्व सदस्य हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.