बीते 14 नवंबर की सुबह आसमान में कुहासा छाने के साथ ही उत्तर बिहार में गुलाबी ठंड ने दस्तक दे दी है. मौसम का पारा एकाएक लुढ़क गया और लोगों को ठंड का एहसास होने लगा. अभी से ही उत्तर बिहार में न्यूनतम तापमान 16 से 17 तो अधिकतम 26 से 29 डिग्री सेल्सियस के बीच हो गया है. अब रात में पंखा, कूलर या एसी चलाने की जरूरत तो महसूस होती ही नहीं है, लोगों को ऊलेन चादर या कंबल तानकर सोना पड़ रहा है. ठंडे पानी से लोग परहेज करने लगे हैं. वहीं गर्म-गर्म भोजन ही अच्छा लगने लगा है. अब ठंडा पानी पीना या ठंडे पानी से नहाने से लोग कतराने लगे हैं. वे इसके लिए भी गुनगुने पानी का ही इस्तेमाल शुरू कर दिए हैं. अब लोगों को तीखी लगने वाली धूप भी प्यारी लगने लगी है. सुबह-शाम लोगों के शरीर पर स्वेटर, कार्डिगन और चादर चढ़ी होती है. दिन में धूप के सेवन से लोग चूक नहीं रहे हैं. जबकि दक्षिण बिहार में भी अभी भी तेज धूप से लोग बचते नजर आ रहे हैं. वहां पंखा, एसी, कूलर का लगातार उपयोग हो रहा है.
सूती की जगह टंग गए ऊनी कपड़े
कल तक बाजार के जिस दुकान में सूती के कपड़े को शो में लगाये जाते थे या काउंटर में गर्मी के हल्के-फुल्के कपड़ों का स्टॉक रखा जा रहा था, उसकी सूरत भी बिल्कुल बदल गई है. सूती कपड़ों की जगह ऊनी कपड़ों ने ले ली है. अलग-अलग ब्रांडों के ऊलेन स्वेटर, कार्डिगन, मफलर, स्कार्फ, कोट व शॉल लोगों को लुभाने लगे हैं. इसके अलावे दुकानदारों ने इनर-वियर का भी स्टॉक करना शुरू कर दिया है. बाजार के खाली जगहों पर रूई धुनने की मधुर आवाज भी आने लगी है. जो ठंड के लिए रजाई बनने के संकेत दे रहे हैं. जूते-मोजे की दुकानों पर भी लोग पहुंचने लगे हैं. मॉन्टो कार्लो शो रूम के प्रोपराइटर शशिशेखर सम्राट ने कहा कि ठंड को देखते हुए नये डिजायनों में स्वेटर, कोट, बंडी, कंबल व शॉल का पर्याप्त स्टॉक किया गया है. लोग आने भी लगे हैं. दर्जी के यहां भी कोट बनवाने वालों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है. अफरोज टेलर्स के मो रफत परवेज ने बताया कि पांच दिनों में अब तक दर्जन भर लोगों ने कोट बनाने का ऑर्डर दिया है.
आइस्क्रीम से दूरी और नॉनवेज से करीबी
अब कोल्डड्रिंक, आइस्क्रीम, लस्सी, दही या फ्रिज में रखकर बेची जाने वाले खाद्य पदार्थों से लोग दूर होने लगे हैं. कहते हैं कि ठंड में ऐसे चीजों का उपयोग स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं. सर्दी-खांसी के अलावे कोल्ड एटैक का खतरा बन जाता है. इन चीजों की जगह अब चाय, कॉफी और गर्म दूध ने ले ली है. बाजार में चाय की दुकानों पर भी दिनभर भीड़ लगनी शुरू हो गई है. हालांकि नॉन वेजिटेरियन के टेस्ट को देखते हुए बाजार में जगह-जगह अंडे के काउंटर खुल गए हैं. जहां ब्वॉयल, आमलेट, पोच, भुर्जी, टोस्ट बिकने लगे हैं. इसी तरह रेस्टोरेंट में भी मटन, चिकन, अंडा के वेरायटी की लिस्ट लग गई है. अंडा व्यवसायी सुजीत कुमार घोष ने बताया कि वैसे तो वे सालों भी अंडे के आयटम का ठेला लगाते हैं, लेकिन ठंड के दस्तक देते ही बिक्री में इजाफा होना शुरू हो गया है. उन्होंने बताया कि आधे नवंबर के बाद से ही रोजाना 20 से 25 कार्टून अंडा बिकना शुरू हो गया है.
अब देर से आती और जल्द चली जाती है ठंड
पहले बच्चों को पढ़ाया जाता था कि साल में चार ऋतुएं होती है. गर्मी, जाड़ा, बसंत और बरसात. प्रत्येक ऋतु की अवधि तीन-तीन माह की बतायी जाती थी. लेकिन बीते डेढ़-दो दशक से ऋतुओं के आने और जाने में बड़ा बदलाव हो गया है. एक तो इसकी अवधि तीन माह की नहीं रही, दूसरी ठंड की अवधि लगातार सिमटती जा रही है. 80 वर्षीय शिवशंकर झा कहते हैं कि पर्यावरण असंतुलित होने के कारण गर्मी की अवधि में लगातार विस्तार होता जा रहा है और ठंड की अवधि घटती जा रही है. 70 वर्षीय सुभाष चंद्र खां ने बताया कि पहले अक्टूबर माह से ही ठंड का आगमन हो जाता था. स्वेटर, रजाई-कंबल निकल जाते थे, लेकिन अब आधे नवंबर के बाद ठंड का एहसास ही शुरू होता है. वहीं ध्रुव कुमार केशरी ने कहा कि अब ठंड मुश्किल से एक से डेढ़ महीने का रहने लगा है. शीतलहर की अवधि भी बमुश्किल 10 से 12 दिनों की होने लगी है. यह सिर्फ भारत की ही नहीं, वैश्विक चिंता का विषय है. पर्यावरण संतुलन के लिए विश्वस्तर पर अभियान चलाने की जरूरत है.
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