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"रिहाई की डील CM आवास से"... सुभाष यादव के बयान के बाद अब लालू यादव ने दिखाए तेवर, जानिए क्या चल रहा बिहार में 

Bihar Election: बिहार में चुनावी साल है तो गर्मी आने से पहले ही राजनीति गर्म हो गई है. नीतीश कुमार फिर यात्रा पर हैं तो लालू यादव सीधे बीजेपी को चुनौती दे रहे हैं.

Bihar Election:दिल्ली के नतीजों के बाद अब सारी नजरें बिहार पर टिकी हैं. महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद दिल्ली में जीत से BJP के हौसले बुलंद हैं. दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन की चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं. दिल्ली में कांग्रेस  और आम आदमी पार्टी ने अलग अलग चुनाव लड़ा. इसके बावजूद एकजुटता के हजार दावे किए जा रहे हैं. उस एकजुटता का टेस्ट अब बिहार में होगा. इन तमाम चुनौतियों के बीच लालू यादव दावा कर रहे हैं कि उनके रहते बीजेपी नहीं जीत सकती. इस बीच जंगलराज का जिन्न भी बाहर निकल गया है. 
 

सुभाष-लालू यादव ने क्या कहा

एक ओर नीतीश बाबू प्रगति यात्रा पर हैं तो दूसरी ओर लालू यादव (Lalu Yadav) के साले सुभाष यादव (Subhash Yadav) अपने जीजा की पोल खोल में लगे हैं. लालू यादव के साले सुभाष यादव ने आरोप लगाया है कि लालू-राबड़ी सरकार के जमाने में अपहृत लोगों की रिहाई की डील मुख्यमंत्री आवास में होती थी. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि लालू-राबड़ी शासन के पंद्रह वर्षों में उनके दो भाइयों साधु और सुभाष यादव के एक से एक कारनामे हमेशा चर्चा में रहते थे. तब सुभाष यादव लालू यादव के चहेते हुआ करते थे और अपहरण उद्योग उन दिनों की पहचान बन गया था, लेकिन अब वक्त बदल गया है. इसलिए RJD कह रही है कि सुभाष यादव BJP की भाषा बोल रहे हैं. कभी लालू के खासमखास रहे सुभाष से जंगल-राज की खास बात सामने आते ही सत्तारुढ़ गठबंधन ने विपक्ष पर तलवार खींच ली तो लालू यादव भी पुराने तेवर में दिखने लगे. लालू यादव दावा कर रहे हैं कि उनके रहते बीजेपी नहीं जीत सकती. इस बीच जंगलराज का जिन्न भी बाहर निकल गया है. 

विपक्ष कितना तैयार है?

लालू के दावों के बीच सवाल ये कि विपक्ष कितना तैयार है? दिल्ली चुनाव में INDIA गठबंधन बिखरा-बिखरा नजर आया और एकजुटता के दावे फुस्स हो गए. हालांकि, दिल्ली के नतीजों के बाद एक बार फिर दावे किए जा रहे हैं और नीतीश कुमार पर भी नजर टिका ली गई है. दिलचस्प ये कि बिहार में नीतीश कुमार के बेटे की सियासी एंट्री के कयासों के बीच कांग्रेस ने पोस्टर वार शुरू कर दिया है.

वैसे सबसे बड़ा सवाल ये है कि महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक जीत हासिल कर रही BJP को बिहार में मात देने के लिए विपक्ष कितना तैयार है? दिल्ली में हार के बाद बिहार में विपक्ष की चुनौती कितनी बड़ी है? क्या बिहार चुनाव में I.N.D.I.A ब्लॉक की एकजुटता दिखेगी? क्या दिल्ली हार के बाद INDIA ब्लॉक बिहार में NDA को कड़ी टक्कर दे पाएगा?  दिल्ली में जीत के बाद बिहार में बीजेपी JDU को कितनी अहमियत देगी?

नेता और एक्सपर्ट क्या कह रहे

वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह कहते हैं कि कांग्रेस एक समय तक बिहार में विकल्प रही है, लेकिन आज उसकी हालत खराब है. ऐसे में बिहार में विपक्ष के लिए राह बहुत आसान नहीं है. वहीं वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि रणनीतिकार कांग्रेस को गफलत में रखते हैं. पिछली बार कांग्रेस ने ज्यादा सीटें मांग ली थी. इस बार तालमेल बढ़िया होना चाहिए. हालांकि, विपक्ष के सामने चुनौती है, लेकिन मौका भी है. बीजेपी के प्रवक्ता गुरु प्रकाश ने बताया कि लालू यादव अपने परिवार से आगे कुछ नहीं सोचते. तेजस्वी यादव को कैसे मौका मिला. नीतीश कुमार के सामने वो कहां खड़े होते हैं. बिहार की जनता एनडीए के साथ है.

वहीं पप्पू यादव ने कहा कि सुभाष यादव के आरोपों पर जाने की अब जरूरत नहीं है. नीतीश कुमार की सरकार में भी कई तरह के माफिया काम कर रहे हैं.

कांग्रेस प्रवक्ता ज्योति कुमार सिंह ने कहा कि इस बार के चुनाव का मुख्य मुद्दा नीतीश कुमार होंगे. बीजेपी और जेडीयू आपस में ही झगड़ रहे हैं. बिहार में लगातार पुल गिरे हैं. व्यवस्था चरमरा गई है. RJD के मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि अब जनता बीमार बिहार नहीं, दौड़ता बिहार देखना चाहती है. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में ये हम कर के दिखाएंगे.  JDU के राजीव रंजन ने कहा कि हम बिहार में नौकरियों से लेकर बिहार सरकार के काम को लेकर जनता के पास जा रहे हैं.  बिहार के कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठाने वालों को अपना इतिहास याद कर लेना चाहिए.

जनता क्या सोच रही

अब नेता जो भी कहें, वोट तो जनता को देना है और वही मालिक है. तो अगर जनता को जिसका काम पसंद आएगा, वो उसी को गद्दी पर आसीन करेगी. अभी फिलहाल बिहार के विधानसभा चुनाव में लंबा समय है, लेकिन चुनावी साल होने के कारण बिहार में हलचल बढ़ गई है. नेता शहरों, कस्बों और गांवों में जाने लगे हैं. एक से बढ़कर एक वादे हो रहे हैं. जनता सोच रही है कि क्या सच में बिहार में ऐसा भी हो सकता है. पर मन नहीं बना पा रही. अभी सभी को तौल रही है. चुनाव तक फैसला कर पाएगी कि कौन उनके लिए सही काम करेगा.
 

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