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This Article is From Sep 17, 2018

आरक्षण के मुद्दे पर राजद नेता शिवानंद तिवारी ने नीतीश सरकार से पूछा- सवर्ण आयोग से कितनों का भला हुआ

गरीब सवर्णों को आरक्षण की मांग नीतीश सरकार ने की खारिज को राजद नेता शिवानंद तिवारी ने साधा निशाना.

आरक्षण के मुद्दे पर राजद नेता शिवानंद तिवारी ने नीतीश सरकार से पूछा- सवर्ण आयोग से कितनों का भला हुआ
राजद नेता शिवानंद तिवारी की फाइल फोटो.
नई दिल्ली: बिहार में सवर्णों को लुभाने के लिए जदयू ने आर्थिक आधार पर आरक्षण की कवायद शुरू की थी. इसके लिए नीतीश सरकार ने सवर्ण आयोग गठित करने का दांव भी खेला . मगर रविवार को हुई जनता दल यूनाइटेड की बैठक से खबर आई कि आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने की बात खारिज हो गई है. माना जा रहा है कि एससी-एसटी और ओबीसी मतदाताओं की नाराजगी की आशंकाओं को देखते हुए जदयू ने गरीब सवर्णों को आरक्षण देने पर के मुद्दे पर आगे बढ़ने से पैर खींच लिए. हालांकि पार्टी नेता इसके पीछे संवैधानिक कारणों को जिम्मेदार बताते हैं. अब इस मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष के बीच सियासी निशानेबाजी भी शुरू हो गई है. राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने नीतीश सरकार पर निशाना साधा हुआ है. उन्होंने बताया है कि विरोध के बावजूद सवर्ण आयोग बनाने के बाद कितने सवर्णों का भला हुआ, यह सरकार को बताना होगा. तिवारी ने दावा किया कि अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित सवर्ण आयोग के कामकाज पर करीब 12 करोड़ रुपये खर्च हुए. 

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राष्‍ट्रीय जनता दल के उपाध्‍यक्ष और बिहार के वरिष्‍ठ नेता शि‍वानंद तिवारीने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर सवर्णों को आरक्षण देने की कवायद शुरू करने और फिर मांग को खारिज करने पर नीतीश सरकार को घेरा है. उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर कुछ यूं टिप्पणी की है-
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जद यू ने सरकारी नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की सवर्णों की मांग को ख़ारिज कर दिया है. उनका कहना है कि आर्थिक आधार पर सरकारी सेवा में आरक्षण संविधान सम्मत नहीं है. इस संदर्भ में हम जदयू से और विशेष रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जानना चाहते हैं कि आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर इस निर्णय पर आप कब पहुंचे. क्योंकि 2010-11 में नीतीश जी ने ही आर्थिक आधार पर सवर्णों की मदद के लिए ‘सवर्ण आयोग’ के गठन की घोषणा की थी. मुख्यमंत्री आवास पर हुई वरीय साथियों की बैठक में संवैधानिक प्रावधान का ही हवाला देकर आयोग पर मैंने एतराज़ उठाया था. उस समय नीतीश जी को मेरा एतराज़ नागवार लगा था.


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इसके बावजूद 2011 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में सवर्ण आयोग का गठन हुआ. वह आयोग 2015-16 तक कार्यरत रहा. एक जानकारी के मुताबिक़ आयोग पर सरकार ने लगभग बारह करोड़ रू. ख़र्च किया. लेकिन ग़रीब सवर्णों के कल्याण के लिए आयोग ने क्या अनुशंसा की, उन अनुशंसाओं पर सरकार ने क्या कार्रवाई की और कितने सवर्णों का उससे भला हुआ, इसकी जानकारी बिहार की जनता को आजतक नहीं मिली है. हम मुख्यमंत्री जी से मांग करते हैं कि बिहार की जनता को इस संदर्भ में अवगत कराने की ‘कृपा’ करें.

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