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This Article is From Oct 21, 2022

दिवाली पर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने फोड़ा 'नीतीश बम'...

प्रशांत किशोर का मानना है कि आगे आने वाले दिनों में नीतीश कुमार दोबारा बीजेपी के साथ चले जाएं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

दिवाली पर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने फोड़ा 'नीतीश बम'...
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार पर निशाना साधा
नई दिल्‍ली:

दीपावली के पहले  चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor)ने बिहार के सीएम और जेडीयू नेता नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पर निशाना साधा है. प्रशांत किशोर ने NDTV के साथ खास बातचीत में कहा, "भले ही नीतीश महागठबंधन में हैं, लेकिन वो अभी भी बीजेपी के संपर्क में हैं." इसके पीछे उन्‍होंने दलील दी है कि राज्यसभा में जो उप सभापति हैं हरिवंश, वे जेडीयू से आते हैं और अभी तक उनको (हरिवंश को) उप सभापति पद से जेडीयू ने नहीं हटाया है जबकि पार्टी, एनडीए से अलग हो चुकी है. प्रशांत किशोर का मानना है कि नीतीश ने हरिवंश के ज़रिए बीजेपी से एक रास्ता खुला रखा है और वे हरिवंश के ज़रिए लगातार बीजेपी के नेताओं के संपर्क में हैं. आगे आने वाले दिनों में नीतीश दोबारा बीजेपी के साथ चले जाएं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. प्रशांत किशोर के इस बयान पर जेडीयू के नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि PK, बीजेपी के एजेंट हैं. 

पीके ने अपने करियर की शुरूआत राहुल गांधी के साथ की, उसके बाद हेल्थ एक्टिविस्ट की तरह काम किया. वर्ष 2010 में वे गुजरात सरकार के पॉलिसी एडवाइजर बने.  प्रशांत किशोर वर्ष 2014 में मोदी के पॉलिटिकल मैनेजर बने और मोदी के प्रचार की ज़िम्मेदारी संभाली. ऐसा माना जाता है कि  2014 में बीजेपी जीती, उसके रणनीतिकार पीके थे. इन नेताओं के अनुसार, बाद में बीजेपी से प्रशांत किशोर का रिश्ता खत्म हुआ और कई पार्टियों की उन्होंने मदद की. पश्चिम बंगाल के चुनाव में वो ममता बनर्जी के रणनीतिकार बने. ममता का कद भी काफी बड़ा है, लोग कहते हैं कि पीके के रणनीती से जीत की हिस्सेदारी है.कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी उन्होंने मदद की. 2017 के विधानसभा चुनाव में कैप्‍टन अमरिंदर की अगुवाई में कांग्रेस पंजाब में जीती भी थी. प्रशांत इसके बाद जगनमोहन रेड्डी के पास गए और आंध्र प्रदेश में मदद की. एमके स्‍टालिन की भी उन्होंने तमिलनाड में मदद की, AAP की भी मदद की.

उनकी एक कंपनी है आईपैक हैं, इसके ज़रिए चुनाव के लिए रणनीति बनाते हैं और नेताओं को ये सलाह देते हैं कि क्या करना चाहिए? प्रशांत किशोर, कांग्रेस में आते आते रह गए. सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी ने उनकी मुलाकात हो गई थी.  कांग्रेस ने कहा था कि एक एम्‍पावर्ड ग्रुप होगा जिसको आप हेड करेंगे. लग रहा था कि पीके कांग्रेस में आएंगे लेकिन अंतिम समय में उनका रिश्ता कांग्रेस से टूट गया. पीके अपने बयानों के लिए काफी चर्चा में रहे हैं. जब ममता बनर्जी ने बंगाल चुनाव के बाद पीके को संभावना तलाशने के लिए गोवा भेजा था तो उन्‍होंने  बयान दिया कि लोग इस भ्रम में न रहें कि लोग पीएम से नाराज़ हैं और उन्हें सत्ता से हटा देंगे और बीजेपी 40 सालों से कहीं नहीं जाएगी. उन्‍होंने कहा था कि  30 पीसदी वोट किसी को मिल जाए तो वो सॉलिड नेशनल पार्टी बन जाता है. पीके ने ये भी कहा कि बाकी वोट इतने बिखरे हुए हैं] ये ही कांग्रेस के पतन का कारण है 

पीके का नीतीश पर बयान क्यों दिया गया? 
फिलहाल प्रशांत किशोर, जन स्वराज नाम से प्रोग्राम के तहत बिहार के गांव-गांव घूम रहे हैं. पिछले महीने उनकी नीतीश से मुलाकात हुई थी. ऐसे में यह बात शुरू गहुई थी कि क्‍या वे नीतीश के साथ आएंगे. 2015 में पीके, आरजेडी और जेडीयू को एक साथ लाने में कामयाब रहे थे. इस गठबंधन ने ये चुनाव जीता भी था लेकिन फिर लालू और नीतीश के रास्ते अलग-अलग हो गए. अब एक बार फिर अब नीतीश और तेजस्वी साथ आ गए हैं. बिहार के लोग इसके लिए पीके को याद करते हैं. लोगों का कहना है कि पीके एक राजनीतिक जीन की तलाश कर रहे हैं. जन स्वराज योजना के लिए और इसलिए वो इस तरह के बयान दे रहे हैं ताकि वे सुर्खियां बटोर सके. पिछले महीने नीतीश से मुलाकात के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला कि पीके को जेडीयू में लिया था नीतीश ने पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया था, उसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया. फिलहाल पीके के लिए जेडीयू में कोई जगह नहीं है. एक और बात है कि रणनीति जो पीके की फेल रही, वह 2017 का यूपी का चुनाव है. वे  राहुल गांधी और अखिलेश यादव को साथ लाए. 'खाट पॉलिटिक्‍स' शुरू की थी. लोग खाट लेकर रैली में जाते थे लेकिन रैली के बाद खाट टूट जाती था लेकिन वो एक्सपेरिमेंट पीके का विफल रहा. यूपी और उत्तराखंड में हार मिली.  

लोग कहते है कि प्रशांत किशोर वहीं सफल रहे जहां एक मजबूत लीडर उन्हें मिला हो.  मोदी हों, ममता हों, स्‍टालिन हों, जगन मोहन हों, अरविंद केजरीवाल हों या कैप्टन हों, वहां इनको सफलता मिली. इस ताजा बयान के बाद एक बार फिर पीके सुर्खियों मे हैं. 2024 से पहले पीके ने विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की थी. शरद पवार के साथ उनकी मुलाकात हुई, केसीआर से मिले थे. 2024 से पहले नेताओं को जमा करने की बात की थी लेकिन बात नहीं बनी. अभी पीके बिहार में हैं और जन स्वराज की यात्रा में हैं. शायद 2024 से पहले पीके को एक मजबूत राजनीतिक दल मिल जाए.

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