- बिहार में NDA को बड़ी जीत मिली है. इसे सिर्फ आंकड़ों से नहीं देखना चाहिए, इसमें उम्मीद व पहचान की कहानी भी है.
- मोदी-नीतीश की जुगलबंदी एक बार फिर असरदार साबित हो रही है. बड़ी भूमिका महिला मतदाताओं की भी है.
- कुल मिलाकर यह मतदाताओं की प्रगति, सहभागिता और उनकी जिंदगी की सच्चाइयों को दिखाता जनादेश है.
देश के लोकतंत्र महापर्व में विधानसभा चुनाव का अलग ही रंग होता है. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए को बड़ी जीत मिली है. लेकिन इस जीत को सिर्फ आंकड़ों के आईने से नहीं देखना चाहिए, इसमें बिहार की उम्मीद और पहचान की कहानी भी छिपी है. ये सिर्फ नेताओं की जीत नहीं है, ये मतदाताओं की सोच समझ का संकेत भी है. नीतीश इस चुनाव के एक बड़े विजेता साबित हुए हैं क्योंकि उनकी सीटें करीब दोगुनी हो गई हैं.
नीतीश-मोदी की जुगलबंदी
इस जीत की अहमियत समझने के लिए हमें जरा पीछे देखना होगा. 2010 में एनडीए ने रिकॉर्ड 206 सीटें हासिल की थीं. जेडीयू को तब 115 सीटें और बीजेपी को 91 सीटें मिली थीं. अब एनडीए ने विकास और स्थिरता का वादा किया था. 2025 में एक बार फिर से 2010 की गूंज सुनाई दे रही है. मोदी-नीतीश की जुगलबंदी एक बार फिर असरदार साबित हो रही है.
इस जुगलबंदी की सबसे खास बात ये है कि ये हर मतदाता वर्ग को भाती है. इनका गठबंधन शहर और गांव दोनों को आकर्षित करता है. इनकी जुगलबंदी बिहार की राजनीति सुर को ऐसे साधती है कि ये सबका साथ-सबका विकास की आवाज बुलंद होती है.

असली विजेता महिला मतदाता
इन नतीजों को गहराई से देखेंगे तो पता चलेगा कि इसमें बड़ी भूमिका महिला मतदाताओं की है.
उनका अभूतपूर्व मतदान राजनीति में उनकी भागीदारी की एक नई कहानी सुनाती है. गांव से लेकर शहर तक बिहार में महिलाएं लंबे समय से हाशिए पर रही हैं, उनकी आवाज़ें अक्सर सियासी शोर में दब जाती हैं. लेकिन इस बार महिलाओं ने अपनी आवाज बुलंदी से पहुंचा दी है.
महिला मतदाताओं की इस लहर ने नीतीश लहर में एक अहम भूमिका निभाई. महिलाएं सिर्फ बूथों पर बल नहीं दिखाया है बल्कि आवाज बुलंद किया है कि वो अपनी स्थिति में बदलाव चाहती हैं. महिलाएं ने बता दिया है कि उन्होंने सिर्फ उम्मीदवारों के लिए नहीं बल्कि सड़क, बिजली, पानी और महिला सुरक्षा जैसी चीजों के लिए वोट किया है. एनडीए ने महिला केंद्रित नीतियां बनाईं, शराबबंदी और ज़मीनी स्तर पर महिलाओं की भागीदारी पर ज़ोर दिया. इस जनादेश में ये बातें दिख रही हैं. साफ दिख रहा है कि सभी जातियों और क्षेत्रों की महिला मतदाताओं ने नीतीश के नेतृत्व वाली सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में भारी मतदान किया है.
बिहार में नई राजनीति की शुरुआत
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे एनडीए की जीत से कहीं आगे तक फैले हैं. ये नतीजे बिहार में एक नई सियासत की शुरुआत है. यह बड़ी जीत न केवल एनडीए के प्रति निष्ठा का प्रतीक है, बल्कि बदलाव के बीच निरंतरता की मतदाताओं की चाहत को भी दर्शाती है—एक विरोधाभास जो मौजूदा भारतीय राजनीति को परिभाषित करता है।
महागठबंधन को बड़ा नुकसान हुआ है, लिहाजा अब विश्लेषण विपक्षी गठबंधनों के सामने आने वाली चुनौतियों का भी होगा. अकेली बीजेपी या जेडीयू पूरे महागठबंधन पर भार है. पहले नंबर की पार्टी आरजेडी तीसरे नंबर पर खिसक गई है. जनादेश से साफ है कि महागठबंधन के वादे और मतदाताओं की आकांक्षा मेल नहीं खाते.
जहां एनडीए का प्रचार अभियान बिहार के बेहतर भविष्य की उम्मीद जगा रहा था, वहीं महागठबंधन ने वोट चोरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और आर्थिक मंदी के नारे देकर निराशा और नकारात्मक प्रचार अभियान चलाया.
निष्कर्ष: उम्मीद और बदलाव के लिए वोट
कुल मिलाकर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 भारतीय लोकतंत्र की नब्ज को दिखाते हैं जिसमें जहाँ रणनीति, पहचान और उम्मीदों का असर चुनावी परिणामों को आकार देता है. एनडीए की व्यापक जीत केवल एक चुनावी जनादेश नहीं है; यह मतदाताओं की प्रगति, सहभागिता और उनकी जिंदगी की सच्चाइयों को दिखाता है.
अब एनडीए के सामने चुनौती होगी कि वो मतदाताओं की उम्मीदों को पूरा करे, ख़ासकर महिलाओं और कमजोर वर्गों के लोगों की सुने. बिहार चुनाव के नतीजे हमें याद दिलाते रहेंगे कि लोकतंत्र के मूल में उम्मीद, बदलाव और बेहतर कल की अनवरत खोज है.
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