
- नवादा के दो प्रमुख नेता राजबल्लभ प्रसाद और कौशल यादव ने हाल ही में अपने राजनीतिक दलों को बदलकर नई राह चुनी है.
- राजबल्लभ राजद से दूर होकर एनडीए के करीब आ गए हैं, जबकि कौशल यादव जदयू छोड़कर पुनः राजद में शामिल हो गए हैं.
- राजबल्लभ की पत्नी विभा देवी और विधायक प्रकाशवीर प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम में उनके साथ मंच पर मौजूद थे.
बिहार की नवादा राजनीति में दो बड़े चेहरों- राजबल्लभ प्रसाद और कौशल यादव ने अपने-अपने राजनीतिक दल बदलकर सियासी समीकरणों को नया मोड़ दे दिया है. वर्षों तक एक-दूसरे के खिलाफ खड़े रहे ये दोनों नेता अब नए राजनीतिक ठिकानों की ओर रुख कर चुके हैं. पूर्व राजद विधायक राजबल्लभ प्रसाद अब एनडीए के करीब दिख रहे हैं, जबकि पूर्व जदयू विधायक कौशल यादव ने राजद का दामन थाम लिया है. कौशल यादव 2005 से जदयू की राजनीति करते रहे, वहीं राजबल्लभ यादव 1995 से राजद से जुड़े रहे. दोनों नेताओं के बीच वर्षों तक सियासी टकराव रहा, लेकिन अब दोनों ने अपने-अपने पाले बदल लिए हैं.
राजबल्लभ की एनडीए में संभावित एंट्री
22 अगस्त को गया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में राजबल्लभ की विधायक पत्नी विभा देवी और सहयोगी विधायक प्रकाशवीर मंच पर मौजूद थे. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि राजबल्लभ किस दल में शामिल होंगे, लेकिन मंच पर उनकी मौजूदगी ने संकेत दे दिया कि वे अब राजद के विरोध की राजनीति में सक्रिय हैं.
कौशल यादव की राजद में वापसी
दूसरी ओर, नवादा में आयोजित एक कार्यक्रम में राजद नेता तेजस्वी यादव की मौजूदगी में कौशल यादव, उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव और पूर्व विधान पार्षद मित्र सलमान रागीव ने राजद की सदस्यता ग्रहण की. यह कौशल यादव की लगभग 20 साल बाद राजद में वापसी है. इससे पहले वे राजद के जिलाध्यक्ष रह चुके थे.
सियासी घर वापसी की कहानी
राजबल्लभ और कौशल यादव का यह दल परिवर्तन दरअसल सियासी 'घर वापसी' जैसा है. राजबल्लभ के बड़े भाई कृष्णा प्रसाद 1990 में बीजेपी से विधायक बने थे, बाद में जनता दल में शामिल हुए. राजबल्लभ ने 1995 में निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद राजद का समर्थन किया और तीन बार विधायक बने. उनकी पत्नी विभा देवी भी एक बार विधायक रह चुकी हैं.
कौशल यादव का राजनीतिक सफर कांग्रेस से शुरू हुआ, फिर राजद, उसके बाद जदयू और अब फिर राजद में वापसी हुई है. वे चार बार विधायक बने, दो बार निर्दलीय और दो बार जदयू से. उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव भी चार बार विधायक रह चुकी हैं.
सियासी समीकरणों में बदलाव
राजबल्लभ और कौशल यादव दो बार एक मंच पर आ चुके हैं. 2004 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव में जब जदयू महागठबंधन का हिस्सा था. लेकिन दोनों बार सियासी मतभेदों के कारण यह साथ ज्यादा समय तक नहीं टिक पाया. राजबल्लभ का वोट आधार मुख्य रूप से एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण रहा है, जबकि कौशल यादव का आधार ओबीसी, दलित और अगड़ी जातियों में रहा है. अब पाला बदलने के बाद दोनों नेताओं को नए सिरे से अपने वोटरों को साधने की चुनौती है.
पाला बदलने की वजहें
राजबल्लभ प्रसाद के राजद से दूरी की वजह 2024 का लोकसभा चुनाव रहा. आरोप है कि उन्होंने एनडीए उम्मीदवार विवेक ठाकुर को फायदा पहुंचाने के लिए अपने भाई विनोद यादव को निर्दलीय मैदान में उतारा. विधायक विभा देवी और प्रकाशवीर ने भी उनका समर्थन किया. इससे पार्टी नाराज हो गई और राजबल्लभ गुट को दरकिनार कर दिया गया.
उधर, कौशल यादव पर आरोप है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में एनडीए उम्मीदवार के बजाय राजद उम्मीदवार श्रवण कुशवाहा के पक्ष में काम किया. इसके बाद जदयू ने उन्हें किनारे कर दिया और उनके गुट को जिला कमेटी से बाहर कर दिया.
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