- मुकेश सहनी स्वयं को 'सन ऑफ मल्लाह' कहते हैं और बिहार में उनकी जाति की आबादी लगभग 2.6 प्रतिशत है.
- बिहार चुनाव में मल्लाह जाति के वोट महागठबंधन के साथ रहने की संभावना अधिक है.
- पिछले विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी ने एनडीए के साथ मिलकर 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
मुकेश सहनी स्वयं को सन ऑफ मल्लाह कहते हैं, मतलब मल्लाह का बेटा. बिहार में कुल 2.6 % इनकी आबादी है. लेकिन इनको काउंटर करने के लिए इसी जाति से तिरहुत / ओल्ड मुजफ्फरपुर जिला से एनडीए ने भी बड़े नेताओं को अपने साथ रखा है. इस बार मुजफ्फरपुर के पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी को भी टिकट एनडीए ने दिया है और भी कुछ लोग हैं. बिहार में इस बार कोई लहर नहीं है, उस परिस्थिति में एक-एक वोट मायने रखता है. मुकेश सहनी के 2.6 % वोट उनको मिलेगा या कहीं और जाएगा... बिहार के चुनाव में यह फैशन है कि जब स्वयं की जाति विरोधी दल से खड़ी होती है, तब लोग अपने जातीय नेता की अपील को छोड़ अपने लोकल जाति को वोट करते हैं .
लेकिन अब यह मान के चलना चाहिए कि गंगा के तट पर थोड़ी घनी आबादी के साथ बसे मल्लाह जाति के लोग जहां उनके उम्मीदवार नहीं हैं. वो महागठबंधन के साथ ही रहेंगे. यह जाति अति पिछड़ा वर्ग से आती है. लेकिन मुकेश सहनी का असर सिवाय अपनी जाति कहीं और नहीं होगा. क्योंकि इन्होंने स्वयं को सन ऑफ़ मल्लाह कह के बाक़ी के जाति से अलग कर लिया है .
पिछले विधानसभा चुनाव में ये एनडीए के साथ रहकर 11 सीट लड़े और 4 पर विजय प्राप्त किए. बाक़ी के तीन वापस भाजपा में चले गए. छोटे दल के साथ यह बड़ी समस्या है. इसलिए मुकेश सहनी इस बार काफ़ी मोल भाव के बाद महागठबंधन में आए हैं ताकि उनके अपने वोटर को क्लियर संदेश जाए .
भाजपा ने केंद्र में मुजफ्फरपुर के सांसद डॉ राज भूषण निषाद को मंत्री बनाया है. कुछ असर इनका भी होगा. पूर्व सांसद और अभी तक के मल्लाह के सबसे बड़े नेता कैप्टेन निषाद के पुत्र अजय निषाद की पत्नी भी चुनावी मैदान में है. ये दोनों तिरहुत क्षेत्र में मुकेश सहनी को न्यूट्रल करने की कोशिश करेंगे.
वोट देना और अग्रेषण के साथ वोट देना, दोनों में काफ़ी अंतर है. मल्लाह महागठबंधन को वोट कर सकते हैं लेकिन अग्रेषण के साथ करेंगे तब ही तेजश्वी को मुकेश का फायदा मिलेगा वरना बहुत अंतर नहीं पड़ने वाला. पिछली बार महज 6 सीटों से तेजश्वी मुख्यमंत्री कुर्सी से दूर रहे तो इस बार वो एक एक वोट पर नजर रखना चाहते हैं. ताकि उनके हर क्षेत्र के कॉम्बिनेशन के साथ ज़्यादा से ज़्यादा विधायक चुनाव जीत सकें. लेकिन लहर विहीन चुनाव में एनडीए भी एक एक वोट पर नज़र रख रही है तो एक दूसरे को न्यूट्रल करने की स्थिति में अंतिम दिन वही फ़ैसला करेंगे जो चुनाव के पूर्व रात्रि तक न्यूट्रल रहते हैं . अब सारा खेल फ्लोटिंग वोट करेगा .
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