
- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले नेताओं का दल बदलना तेज़ हो गया है, जिससे राजनीतिक हलचल बढ़ी है.
- मटिहानी के पूर्व विधायक बोगो सिंह JDU छोड़कर RJD में शामिल हो चुके हैं. वो मटिहानी से ताल ठोकेंगे.
- BJP के कई पूर्व विधायक तेजस्वी यादव के संपर्क में हैं. उनके भी राजद में शामिल होने की चर्चा में हैं.
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज़ हो गई है. चुनावी मौसम का असर अब साफ दिखने लगा है. राजनीतिक गलियारों में सबसे ज़्यादा चर्चा इस बात की है कि नेता अब रंग बदलने लगे हैं. यानी एक दल से दूसरे दल में जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है. यह परंपरा हर चुनाव में देखने को मिलती है, लेकिन इस बार इसकी रफ्तार पहले से कहीं ज़्यादा है. शुरुआत बेगूसराय की राजनीति से. यहां के कद्दावर नेता और मटिहानी के पूर्व विधायक बोगो सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का दामन थाम लिया है.
मटिहानी के 4 बार के विधायक JDU छोड़ RJD में शामिल
बोगो सिंह का क्षेत्रीय प्रभाव बड़ा माना जाता है और उनके RJD में जाने से पार्टी को संगठनात्मक मज़बूती मिलेगी. बोगो सिंह ने साल 2005 में हुए दोनों विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीतकर राजनीतिक हलचल मचाई थी. इसके बाद वे जदयू से 2010 और 2015 में विजयी हुए. 2020 में लोजपा के राजकुमार सिंह से उन्हें नजदीकी हार मिली.

लेकिन अब राजकुमार सिंह जदयू में शामिल हो चुके हैं. ऐसे में इस बार चुनाव से पहले बोगो सिंह राजद में शामिल हो चुके हैं. मतलब साफ है कि मटिहानी में बोगो सिंह आरजेडी से चुनावी मैदान में उतरेंगे.
कैमूर में BJP के दो पूर्व विधायक RJD में शामिल
बोगो सिंह के अलावा भी तेजस्वी यादव के साथ बीजेपी के कई पूर्व विधायकों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. जिसमें कैमूर के चैनपुर के पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री बृज किशोर बिन्द और मोहनियां के पूर्व विधायक निरंजन राम हैं. इन दोनों ने भी बीजेपी को अलविदा कहकर तेजस्वी के नेतृत्व में आरजेडी का दामन थाम लिया है.

कैमूर में भाजपा के दो पूर्व विधायक तेजस्वी यादव के साथ.
हाल के दिनों में अन्य पार्टियों से पाला बदलने वाले नेता
- डॉ. अच्युतानंद ने 30 जून को लोजपा (रामविलास) से इस्तीफा देकर कांग्रेस जॉइन कर लिया. वह महनार से चुनाव लड़ना चाहते हैं और उन्हें आशंका थी कि राम सिंह की मौजूदगी में उन्हें टिकट नहीं मिलेगा.
- डॉ रेणु कुशवाहा, पूर्व मंत्री, पहले जदयू, फिर भाजपा और लोजपा में रहीं. अब वे राजद के साथ हैं, जहां उन्हें उम्मीद है कि नई राजनीति में उन्हें जगह मिलेगी.
- रामचंद्र सदा, जो 2010 में विधायक थे, टिकट कटने के बाद लोजपा चले गए थे. अब फिर जदयू में वापस लौट आए हैं.
- विनोद कुमार सिंह, जदयू एमएलसी रह चुके नेता, अब कांग्रेस के टिकट पर फुलपरास से चुनाव लड़ना चाहते हैं.
- डॉ अशोक राम, कांग्रेस से छह बार विधायक और पूर्व मंत्री, अब जदयू में. हालांकि वह जिस सीट (कुशेश्वरस्थान) से लड़ना चाहते हैं, वह पहले से जदयू के कब्जे में है.
- डॉ रविंद्र चरण यादव, पूर्व मंत्री, 4 अगस्त को बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए हैं.
तेजस्वी यादव का दावा JDU का खात्मा तय
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नेताओं का दल बदलना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. लेकिन इसमें एक फर्क है जो नेता भाजपा की विचारधारा और उनकी सांस्कृतिक सोच से ताल्लुक रखते हैं, वे वहीं जाएंगे. जबकि सामाजिक न्याय और समता की विचारधारा वाले लोग राजद और महागठबंधन से जुड़ेंगे. तेजस्वी का कहना है कि नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जदयू अब ढलान पर है और आने वाले दिनों में उसका खात्मा तय है.
तेजस्वी का यह बयान सिर्फ एक टिप्पणी नहीं बल्कि चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. वे लगातार इस नैरेटिव को मज़बूत करने में लगे हैं कि नीतीश कुमार अब जनता के बीच भरोसे की राजनीति नहीं बचा पाएंगे.

मटिहानी में तेजस्वी की जनसभा में उमड़ी लोगों की भीड़.
JDU का पलटवार कोई फर्क नहीं पड़ता
जदयू की ओर से प्रवक्ता अभिषेक झा ने इस पूरे घटनाक्रम पर पलटवार किया. उनका कहना है कि किसी के आने या जाने से पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ता. चुनाव के पहले यह सामान्य प्रक्रिया है. उन्होंने दावा किया कि जनता दल यूनाइटेड का संगठन मज़बूत है और जनता नीतीश कुमार पर भरोसा करती है.
जदयू की यह प्रतिक्रिया उस दबाव को कम करने की कोशिश लगती है, जो नेताओं के पलायन से पैदा हो रहा है. पर सवाल यह है कि क्या वाकई नेताओं का जाना सिर्फ प्राकृतिक प्रक्रिया है या यह अंदरूनी असंतोष का नतीजा है?
BJP की सफाई- कोई फर्क नहीं पड़ेगा
भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने भी बयान दिया. उन्होंने कहा कि ऐसे लोग, जिनका पार्टी में कोई खास काम नहीं है, वही दूसरी पार्टी का दामन थामते हैं. भाजपा का संगठन इतना बड़ा और मज़बूत है कि कुछ नेताओं के जाने से पार्टी या चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ने वाला.
भाजपा की रणनीति साफ दिखती है. वह इस मुद्दे को हल्का करने की कोशिश कर रही है ताकि कार्यकर्ताओं में कोई नकारात्मक संदेश न जाए.
कांग्रेस की खुशी- सत्ता पक्ष से आएंगे बड़े नाम
कांग्रेस प्रवक्ता स्नेहाशीष वर्धन ने इस घटनाक्रम को लेकर बड़ा दावा किया है. उन्होंने कहा कि अभी तो शुरुआत है, आने वाले दिनों में सत्ता पक्ष से कई बड़े नेता महागठबंधन में शामिल होंगे. उनका कहना है कि क्योंकि सत्ता पक्ष को साफ दिख रहा है कि महागठबंधन की सरकार बनने वाली है, इसलिए वे धीरे-धीरे इधर का रुख करेंगे.
कांग्रेस का यह बयान महागठबंधन की ओर आत्मविश्वास को दर्शाता है. साथ ही, यह जनता के बीच यह संदेश देने की भी कोशिश है कि सत्ता बदलना अब तय है.
चुनाव से पहले दल-बदल का मतलब क्या?
बिहार की राजनीति में दल बदलने का सिलसिला नया नहीं है. हर चुनाव में ऐसे उदाहरण सामने आते हैं जब नेता पाला बदलकर दूसरे खेमे में चले जाते हैं. इसके पीछे कई वजहें होती हैं
- 1. टिकट की गारंटी: जिन नेताओं को अपनी पार्टी से टिकट मिलने की संभावना कम लगती है, वे विपक्षी खेमे में जाकर बेहतर मौका तलाशते हैं.
- 2. सत्ता समीकरण: चुनाव से पहले हवा किस तरफ बह रही है, इसका आकलन हर नेता करता है. जहां सत्ता की संभावना ज़्यादा लगती है, वहां जाने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है.
- 3. असंतोष और उपेक्षा: कई बार नेता अपनी पार्टी की नीतियों या नेतृत्व से असंतुष्ट होते हैं. ऐसे में वे दूसरी पार्टी में सम्मान और भूमिका तलाशते हैं.
- 4. क्षेत्रीय समीकरण: बिहार की राजनीति में जातीय और क्षेत्रीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं. नेता अक्सर इस आधार पर दल बदलते हैं.
किसको फायदा, किसको नुकसान?
अब बड़ा सवाल यह है कि नेताओं के इस रंग बदलने के खेल से फायदा किसे होगा और नुकसान किसे. राजद और महागठबंधन को इसका सीधा फायदा होता दिख रहा है. क्योंकि जो नेता सत्तारूढ़ दल से निकलकर आ रहे हैं, वे एक राजनीतिक संदेश दे रहे हैं कि सत्ता पक्ष में विश्वास कम हो रहा है.
- जदयू और भाजपा को नुकसान हो सकता है, खासकर वहां जहां से उनके स्थानीय नेता विपक्ष में चले जाते हैं. इससे जमीनी स्तर पर संगठन कमजोर पड़ सकता है.
- कांग्रेस को उम्मीद है कि जैसे-जैसे और नेता शामिल होंगे, उसकी ताकत बढ़ेगी और उसे विधानसभा चुनाव में पहले से बेहतर प्रदर्शन करने का मौका मिलेगा.
जनता का नजरिया क्या है?
आम मतदाता अक्सर इस तरह के घटनाक्रम को संदेह की नज़र से देखता है. जनता के बीच यह संदेश भी जाता है कि नेता विचारधारा से ज़्यादा सत्ता की राजनीति से प्रेरित होते हैं. हालांकि, अगर बड़े और प्रभावशाली नेता दल बदलते हैं, तो उसका असर स्थानीय स्तर पर वोटों के ट्रांसफर में दिख सकता है.
नतीजा चुनाव तय करेगा
फिलहाल बिहार की राजनीति में माहौल गर्म है. एक ओर सत्ता पक्ष दल बदल को स्वाभाविक बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे जमीन बदलने वाली राजनीति करार देकर माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है.
लेकिन बड़ा सवाल अभी भी वही है किसके पाले में कितना फायदा और किसके पाले में कितना नुकसान होगा? इसका जवाब जनता नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में देगी. तब तक राजनीतिक गलियारों में रंग बदलने का यह खेल और तेज़ होने वाला है.
कुल मिलाकर, बिहार की चुनावी जंग अब सिर्फ मुद्दों और वादों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भी देखने की होड़ है कि कौन सा नेता कब और किस पार्टी का दामन थामेगा. यही खेल आने वाले दिनों में सबसे बड़ा चुनावी गेम चेंजर साबित हो सकता है.
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