
- बिहार चुनाव के करीब आते ही कांग्रेस और एनडीए दोनों ओबीसी और ईबीसी वर्ग को साधने की रणनीति बना रहे हैं
- नीतीश कुमार ने अखबारों में विज्ञापन देकर अपने शासनकाल में ओबीसी और ईबीसी के लिए किए गए कार्यों को उजागर किया
- CWC की बैठक में राहुल गांधी के नेतृत्व में खासकर ओबीसी और ईबीसी वोटरों को आकर्षित करने की तैयारी है
जैसे-जैसे बिहार चुनाव नजदीक आता जा रहा है राज्य की राजनीति में वोटों की लामबंदी की कोशिश तेज होती जा रही है. राज्य में पहली बार कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक हो रही है. मकसद साफ है राहुल गांधी की यात्रा के बाद कांग्रेस को लग रहा है कि बिहार में उसका ग्राफ बढ़ सकता है. दूसरी तरफ पिछले 20 साल से राज्य की सत्ता में काबिज नीतीश कुमार ने भी अखबारों में विज्ञापन के जरिए एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है.
बिहार का सियासी माहौल और वोटों की लड़ाई
राहुल गांधी की बैठक से पहले ही नीतीश सरकार ने आज राज्य के सभी अखबारों में एक विज्ञापन दिया है. इस विज्ञापन के जरिए जेडीयू नेतृत्व पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग को साधने की कोशिश करती दिख रही है. पिछले 20 सालों में जो नीतीश की खूंटा गाड़ राजनीति में ये वर्ग काफी अहम रहे हैं. राहुल गांधी भी अपनी यात्रा के दौरान इसी वर्ग को साधने की कोशिश की है. पर नीतीश राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. उन्होंने आज के अखबारों में विज्ञापन के जरिए खुद को ओबीसी और ईबीसी का रहनुमा साबित करने की कोशिश की है.
क्या है अखबारों के विज्ञापन में?
नीतीश कुमार सरकार ने अपने विज्ञापन में पिछले 20 सालों में ओबीसी और ईबीसी के लिए काम किए है उसका जिक्र किया है. पंचायत में आरक्षण से लेकर कई सरकारी योजनाओं का जिक्र किया है. दरअसल, बिहार में सत्ता की चाबी ओबीसी और ईबीसी के हाथों में ही मानी जाती है. लोकसभा में चुनाव के दौरान भी ये वर्ग करीब-करीब एनडीए के साथ रहा था. इसलिए नीतीश ने विज्ञापन देकर नया दांव चला है.
कांग्रेस की भी 36% पर नजर
राहुल गांधी ने बिहार में अपनी यात्रा के दौरान राज्य के ओबीसी और ईबीसी वोटरों को जमकर साधा है. कांग्रेस को पता है कि अगर राज्य में उसे अकेले दम पर आगे बढ़ना है तो इस दो वर्ग को साधना बेहद जरूरी है. अभी ये वर्ग नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए का साथ जुड़ा है. अगर कांग्रेस वोट बैंक में कुछ भी हिस्सा अपने पाले में लाने में कामयाब हो गया तो उसके लिए राज्य में मौका बन सकता है. राज्य में कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक के मायने भी यही निकाले जा रहा है. हालांकि, कांग्रेस इसे टोटके के लिए भी इस्तेमाल कर रही है. लेकिन इस बड़ी बैठक के जरिए कांग्रेस उन छिटके वोटरों को भी संदेश देने की कोशिश करेगी जो कभी उसकी सबसे बड़ी ताकत थे. राज्य में करीब 36 फीसदी आबादी ईबीसी की है जबकि करीब 27 फीसदी आबादी ओबीसी बिरादरी की है. यानी थोड़ा सा वोट स्विंग कांग्रेस के हाथ में लड्डू थमा सकती है.
रोचक होने वाला है बिहार का चुनाव
इस बार का बिहार चुनाव काफी रोचक रहने वाला है. कांग्रेस राज्य में एक मजबूत प्लेयर बनने की कोशिश में है. वहीं बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (आर) वाला एनडीए गठबंधन इस बार किसी कीमत पर कोई चूक नहीं होने देना चाहता है. दूसरी तरफ तेजस्वी भी अकेले दम पर राज्य में आरजेडी की मजबूत पैठ को और बढ़ाना चाहते हैं. नीतीश ने आज विज्ञापन वाला दांव खेला है, राहुल गांधी भी वोटों की सेंधमारी के लिए जरूर कोई ट्रिक आजमाएंगे वहीं तेजस्वी अपने वोट बैंक को बढ़ाने की कवायद करेंगे. तो बिहार पर नजर रखिए. राज्य में काफी रोचक होने वाला है.*
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