
- बिहार में दोनों गठबंधनों के बीच कांटे की टक्कर है और मामूली वोट अंतर से सरकार बदल सकती है.
- 2020 में NDA को कुल 125 सीटें मिलीं जबकि महागठबंधन को 110, हालांकि दोनों का वोट शेयर लगभग बराबर था.
- 2025 में दोनों गठबंधन कमजोर इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए रणनीति बना रहे हैं.
Bihar Political Analysis: बिहार में चुनावी हलचल तेज है. जैसे-जैसे 2025 का महासंग्राम करीब आता जा रहा है, एनडीए और महागठबंधन अपने-अपने गढ़ों को मजबूत करने और विरोधी के कमजोर इलाकों में सेंध लगाने की रणनीति बना रहे हैं. पिछले चुनाव (2020) का आंकड़ा बताता है कि राज्य का राजनीतिक बैलेंस क्षेत्रवार काफी अलग-अलग रहा. रणनीति बनाने के लिए सभी दल 2020 के नतीजों की बारीकी से समीक्षा कर रहे हैं, क्योंकि उस चुनाव ने साफ कर दिया था कि बिहार की राजनीति अब कांटे की टक्कर में सिमट गई है और मामूली वोट अंतर भी सरकार बदल सकता है. यही वजह है कि इस बार भी दोनों खेमों की निगाहें उन इलाकों पर होंगी जहां पिछली बार का मुकाबला कांटे का रहा था.
ओवरऑल तस्वीर: बराबरी का मुकाबला
बिहार चुनाव 2020 के नतीजे पार्टियों के लिए सबक ये है कि यहां किसी भी दल या गठबंधन के लिए एकतरफा जीत की संभावना कम है. वोट-सीट का मामूली अंतर नतीजे बदल सकता है. 2020 में 243 सीटों वाले सदन में एनडीए को 125 और महागठबंधन (MGB) को 110 सीटें मिली थीं. वोट शेयर में भी दोनों गठबंधन लगभग बराबर रहे थे. ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार का चुनावी गणित सिर्फ लोकप्रियता पर नहीं, बल्कि वोट से सीट कन्वर्जन की दक्षता पर टिका है.
एनडीए के भीतर भाजपा 74 सीटें जीतकर नंबर-1 पार्टी बनी, जबकि जदयू 43 सीटों पर सिमट गई. उधर, राजद (75 सीटें) पूरे राज्य की सबसे बड़ी पार्टी रही, लेकिन कांग्रेस सिर्फ 19 सीटें ला पाई. यही महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी बनी.
मिथिलांचल से सीमांचल तक कौन कहां खड़ा?
2020 का नतीजा पूरे राज्य में कांटे की टक्कर वाला रहा. कुल 243 सीटों में एनडीए को 125 और महागठबंधन (MGB) को 110 सीटें मिलीं. लेकिन अगर इसी तस्वीर को क्षेत्रवार देखें तो कई दिलचस्प राजनीतिक संकेत सामने आते हैं. मिथिलांचल से सीमांचल तक समीकरण अलग दिखते हैं. मिथिलांचल में एनडीए मजबूत दिखता है, जबकि सीमांचल में महागठबंधन. हालांकि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पिछले चुनाव में सेंधमारी की थी, लेकिन तेजस्वी यादव का कहना है कि जीते हुए उम्मीदवार, उनकी ही पार्टी के पुराने नेता थे, जिन्हें राजद टिकट नहीं दे पाई थी. इसलिए वे पार्टी में लौट भी आए. इस बार उन्हें उतारने की तैयारी है. आइए, एक सरसरी निगाह डालते हैं कि सातों रीजन के सियासी गणित पर.
अंग प्रदेश: एनडीए की मजबूत पकड़, लेकिन आरजेडी ने दी टक्कर
अंग प्रदेश की 35 सीटों में से 18 सीटें 2020 में एनडीए के खाते में गईं. यहां एनडीए का वोट शेयर भी लगभग 39% रहा. हालांकि आरजेडी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की और उसका वोट शेयर भी 35% तक पहुंचा. कांग्रेस को भी इस इलाके में 5 सीटें मिली थीं. यानी यहां मुकाबला दोतरफा नहीं, बल्कि त्रिकोणीय रहा. 2025 में यह इलाका एनडीए के लिए मजबूत किला है, लेकिन आरजेडी के पास भी यहां पैठ बनाने का मौका है.
कोसी: यहां एनडीए आगे, मगर आरजेडी ने भी जमाया दम
कोसी की 20 सीटों पर 2020 में एनडीए ने 10 सीटें जीतीं, जबकि आरजेडी ने 7 सीटों पर कब्जा किया. वोट प्रतिशत में भी दोनों खेमों के बीच कड़ी टक्कर रही-एनडीए के 35% के मुकाबले आरजेडी को 36% वोट मिले. कांग्रेस और लोजपा को यहां खास सफलता नहीं मिली. यानी, कोसी ऐसा इलाका है जहां 2025 में एनडीए और आरजेडी के बीच सीधी भिड़ंत देखने को मिलेगी.

मगध: महागठबंधन की बढ़त, एनडीए बड़ी तैयारी में
मगध क्षेत्र में 2020 का चुनाव महागठबंधन के पक्ष में गया. यहां उसने 30 सीटें जीतीं जबकि एनडीए को केवल 17 सीटें मिलीं. वोट प्रतिशत में भी आरजेडी (37.6%) ने एनडीए (34.5%) से बढ़त बनाई. कांग्रेस ने भी यहां 8 सीटें जीती थीं. यानी, मगध महागठबंधन का मजबूत गढ़ बनकर उभरा. 2025 में एनडीए की कोशिश होगी कि वह यहां अपनी जमीन फिर से मजबूत करे.
मिथिलांचल: एनडीए का किला, राजद-कांग्रेस कमजोर
मिथिलांचल की राजनीति 2020 में एनडीए के पक्ष में झुकी रही. 30 सीटें एनडीए ने जीतीं जबकि महागठबंधन को 15 सीटें मिलीं. वोट शेयर भी एनडीए के पक्ष में (38%) रहा. आरजेडी और कांग्रेस दोनों यहां अपेक्षाकृत कमजोर साबित हुए. इस इलाके में 2025 में भी एनडीए अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश करेगा.

सीमांचल: कांटे की टक्कर, वोट शेयर भी लगभग बराबर
सीमांचल की 32 सीटों पर मुकाबला बेहद रोचक रहा. महागठबंधन ने 13 सीटें जीतीं, जबकि एनडीए को 12 सीटें मिलीं. वोट शेयर भी लगभग बराबर रहा-एनडीए 29% और आरजेडी 33%. कांग्रेस को भी यहां 3 सीटों पर जीत मिली. यह इलाका मुस्लिम वोटरों के प्रभाव वाला माना जाता है, और इसलिए यहां का हर नतीजा पूरे बिहार की राजनीति को प्रभावित करता है.
शाहाबाद: वोट शेयर में मामूली अंतर फिर भी एनडीए की बढ़त
शाहाबाद इलाके में एनडीए ने 19 सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन को 11 सीटें मिलीं. वोट प्रतिशत में भी एनडीए (36%) ने आरजेडी (34%) को मामूली अंतर से पछाड़ा. कांग्रेस यहां कमजोर रही. यह इलाका बताता है कि किस तरह छोटे-से अंतर से चुनावी नतीजे बदल जाते हैं.

तिरहुत: एनडीए की निर्णायक बढ़त, फिर भी कड़ा मुकाबला
तिरहुत क्षेत्र की 70 सीटों में एनडीए ने 36 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि महागठबंधन को 28 सीटें मिलीं. वोट प्रतिशत में भी एनडीए 40% के साथ सबसे आगे रहा. हालांकि आरजेडी ने यहां 21 सीटें जीतीं, जिससे यह साफ है कि यहां भी मुकाबला एकतरफा नहीं बल्कि कड़ा है.
2025 की चुनौती, क्या है दोनों गठबंधन की तैयारी?
बिहार का चुनावी गणित बताता है कि कोई भी गठबंधन पूरे राज्य में सर्वेसर्वा नहीं है. कुछ इलाके एनडीए के गढ़ हैं , तो कुछ महागठबंधन के गढ़. वहीं, अंग और कोसी जैसे इलाके त्रिकोणीय और कांटे की टक्कर वाले हैं. यही वजह है कि 2025 में दोनों गठबंधन अपनी ऊर्जा उन इलाकों में लगाने की जुगत में हैं, जहां उनका पिछली बार प्रदर्शन कमजोर रहा था.
अब 2025 में दोनों गठबंधन की रणनीति साफ है. NDA अपने पारंपरिक गढ़ अंग, कोसीऔर शाहाबाद को बनाए रखने के साथ-साथ मगध और सीमांचल में सेंध लगाने की कोशिश करेगा. महागठबंधन तिरहुत और मिथिलांचल जैसे संतुलित इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है और कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन को कैसे संतुलित किया जाए, यह उसकी सबसे बड़ी चुनौती होगी.
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