- प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव में एक भी सीट जीतने में असफल रही और अधिकांश जमानत जब्त.
- किशोर ने बिहार चुनाव से पहले जद (यू) के लिए २५ सीटों से अधिक जीतने की संभावना को गलत बताया था.
- लोकसभा चुनाव में भाजपा के ३०० से अधिक सीट जीतने का किशोर का अनुमान भी गलत साबित हुआ था.
देश के कई राजनीतिक दलों की सफलता में भूमिका अदा करने वाले मशहूर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अपने पहले चुनाव में पूरी तरह नाकाम रहे और उन्हें एक भी सीट हासिल नहीं हुई. वैसे, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने कई बार यह कहा था कि उनकी जन सुराज पार्टी ‘अर्श' पर रहेगी या फर्श पर रहेगी. उनका यह बयान उनके लिए कड़वी हकीकत बन गया. बिहार विधानसभा चुनाव में किशोर ने दो बड़े दावे किए थे. उनका दावा था कि जन सुराज 'अर्श पर या फर्श पर' रहेगी.
गलत हुई भविष्यवाणी
वहीं, उन्होंने जद (यू) को लेकर भविष्यवाणी की थी कि नीतीश कुमार की पार्टी 25 सीटें से ज्यादा नहीं जीतेगी. किशोर की अपनी पार्टी के लिए राह बेहद कठिन साबित हुई. जन सुराज पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी. अधिकतर सीटों पर जन सुराज प्रत्याशियों की जमानत जब्त होती नजर आ रही है. बिहार में 47 वर्षीय किशोर ने करीब एक साल पहले बिहार भर में महीनों तक चली पदयात्रा के बाद अपनी पार्टी की शुरुआत बड़े जोर-शोर से की थी.
लोकसभा चुनावों में भी गलत अनुमान
हालांकि, किशोर को पिछले साल लोकसभा चुनाव में भाजपा के 300 पार जाने का गलत अनुमान लगाने के लिए आलोचना झेलनी पड़ी थी, लेकिन वह लगातार यह कहते रहे हैं कि भारत जैसे देश में, जहां बड़ी आबादी आजीविका के लिए संघर्ष करती है, वहां विपक्ष के लिए हमेशा स्थान रहेगा. चुनाव प्रबंधन एजेंसी ‘आई-पैक' संस्थापक का यह विश्लेषण कि 'विपक्ष नहीं, विपक्ष की पार्टियां कमजोर हैं', भारतीय राजनीति में उनकी समझ को दर्शाता है. किशोर की रणनीतिक क्षमता से नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, जगन मोहन रेड्डी, उद्धव ठाकरे और एम.के. स्टालिन जैसे नेता लाभान्वित हुए हैं. हालांकि, उनके सभी अभियान सफल नहीं रहे.
जब नीतीश ने बनाया कैबिनेट मंत्री
बिहार में महागठबंधन की करारी हार के बाद किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी के लिए अब भी राजनीति में संभावनाओं का नया मैदान खुला है. जन सुराज पार्टी किशोर का पहला राजनीतिक मंच नहीं है. चुनावी रणनीति में उनकी दक्षता से प्रभावित होकर नीतीश कुमार ने 2015 में सत्ता में लौटने के बाद उन्हें कैबिनेट मंत्री के बराबर दर्जे के साथ सलाहकार नियुक्त किया था. तीन साल बाद वह जद (यू) में शामिल हो गए थे.
संभाला ममता का चुनावी अभियान
वह पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने, जिससे यह अटकलें तेज हो गई थीं कि नीतीश कुमार उन्हें अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं. हालांकि, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर जद (यू) की अस्पष्ट स्थिति के खिलाफ मुखर होने पर एक साल के भीतर ही उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था. निष्कासन के बाद किशोर ने 'बात बिहार की' नाम से एक अभियान शुरू किया, जो शुरुआत में ही ठप पड़ गया. ममता बनर्जी के 2021 के चुनाव अभियान को सफलतापूर्वक संभालने के बाद उन्होंने कांग्रेस को 'पुनर्जीवित' करने की योजना भी पेश की, लेकिन यह प्रयास भी आगे नहीं बढ़ सका.
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