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बिहार जाति राजनीति से ऊपर नहीं उठ सकता, ऐसा कहने वालों को बिहारियों ने दिया तगड़ा जवाब

बिहार के वोटर ने बदलाव को वोट दिया है. PK ने जिसका आह्वान किया था वो वाला बदलाव नहीं. बिहार का वोटर सरकार नहीं बदलना चाहता.

बिहार जाति राजनीति से ऊपर नहीं उठ सकता, ऐसा कहने वालों को बिहारियों ने दिया तगड़ा जवाब
बिहार चुनाव में एनडीए ने रचा इतिहास
  • बिहार चुनाव 2025 में एनडीए गठबंधन ने महागठबंधन को भारी मतों से पराजित किया है और यादगार प्रदर्शन किया है
  • बिहार के मतदाताओं ने जाति आधारित राजनीति को नकारते हुए विकास और सुशासन को प्राथमिकता दी है
  • महागठबंधन के बीच तालमेल की कमी और विवादों के बावजूद एनडीए की जीत को मतदाताओं ने स्पष्ट जनादेश दिया है
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नई दिल्ली:

बिहारी मंगल ग्रह पर नहीं रहता. वो इसी दुनिया में जीता है. वो आपने आस-पास बदल रही दुनिया को देखता है, सोचता है, और तय करता है कि उसको क्या करना है. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उसने ऐसा ही एक फैसला कर दिया है. उसके इस फैसले से आज एनडीए गठबंधन यादगार प्रदर्शन की तरफ आगे बढ़ रहा है. 

जाति की राजनीति खारिज

ज्यादातर चुनावी पंडित कहते रहे कि बिहार में कुछ हो जाए जाति के आधार पर ही चुनाव होते हैं. वहां का वोटर जाति देखकर ही वोट देता है.  चुनाव नतीजों के जरिए बिहार के वोटर ने जमीन से कटे हुए ऐसे चुनावी पंडितों को करारा जवाब दे दिया है. यादवों की पार्टी मानी जानी वाली आरजेडी के नेतृत्व वाला महागठबंधन यादव बहुल 126 सीटों में सिर्फ 20 सीटें जीतता नजर आ रहा है. दूसरी तरफ एनडीए इनमें से 102 सीटों पर जीतता नजर आ रहा है. यहां तक कहा गया कि चूंकि पीके ब्राह्मण हैं तो एनडीए का वोट काटेंगे. वो भी नहीं हुआ. पीके शून्य पर सिमट गए. कथित सन ऑफ मल्लाह' मुकेश सहनी के जाल में भी बिहार का वोटर नहीं फंसा.

महागठबंधन की हार या एनडीए की जीत

एक्सपर्ट दूसरा विश्लेषण ये कर रहे हैं कि महागठबंधन में तालमेल नहीं था. कह रहे हैं कि ओवैसी को साथ क्यों नहीं रखा? जेएमएम को क्यों दूर जाने दिया? फ्रेंडली फाइट जैसी स्थिति क्यों आई? तेजस्वी को वक्त रहते सीएम का चेहरा क्यों नहीं घोषित किया? क्यों ऐन चुनाव प्रचार के बीच राहुल गांधी दिल्ली में जलेबी तल रहे थे? ये सारी दलीलें बिहार के मतदाता की बुद्धि को कमतर आंकती हैं.

जिस तरह के एकतरफा नतीजे आए हैं, उससे पता चलता है कि ये सारी चीजें महागठबंधन ठीक कर लेता तो भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. अकेली बीजेपी पूरे महागठबंधन पर भारी है. अकेली जेडीयू पूरे महागठबंधन पर भारी है. जाहिर सी बात है कि ये महागठबंधन की हार नहीं एनडीए की जीत है और बिहार के वोटर ने एकमुश्त उन्हें जनादेश दिया है. एनडीए ने पूरे चुनाव प्रचार में जंगलराज बनाम सुशासन को मुद्दा बनाया. तेजस्वी ने कहा कि आप पुरानी बातें क्यों करते हैं लेकिन जंगलराज की आशंका का कोई तगड़ा जवाब नहीं दे पाए.

दूसरी तरफ आप बिहार के किसी भी हिस्से में जाइए, हर धड़े के लोग मानते हैं कि नीतीश के राज में कानून-व्यवस्था बेहतर हुई है. तमाम चुनावी कवरेज में बिहारी रिपोर्टरों को वहां की नई सड़कें, प्लाईओवर और एयरपोर्ट दिखाते रहे. लेकिन टीवी के इडियन बॉक्स में चर्चा जाति और चुनावी जोड़तोड़ पर ही होती रही. बिहार के वोटर ने ऐसी चर्चाओं को भटका हुआ बता दिया है. देश में राजनीति की दशा और दिशा क्या है, ये भी बिहार का रिपोर्टर समझता है. उसे कुछ सियासी सच्चाइयों का सही-सही अंदाजा है. केंद्र में एनडीए तो राज्य में भी एनडीए उनके लिए फायदेमंद है. वो दिल्ली की आप सरकार का हश्र देख चुके हैं. 

तो बिहार का वोटर क्या कहना चाह रहा है?

बिहार के वोटर ने बदलाव को वोट दिया है. PK ने जिसका आह्वान किया था वो वाला बदलाव नहीं. बिहार का वोटर सरकार नहीं बदलना चाहता. अपनी जिंदगी बदलना चाहता है. महागठबंधन के बॉलर वाइड बॉल फेंक रहे थे. नो बॉल डाल रहे थे. मैच को निगेटिव खेल रहे थे. वोट चोरी, संविधान जुमले उन्हें कारगर लग रहे थे. उधर एनडीए ने 'अच्छे दिन' का वादा किया था. वोटर ने पॉजिटिव राजनीति का साथ दिया. 

महिलाओं का साफ संदेश

जब एनडीए की सरकार ने डेढ़ करोड़ महिलाओं को 10-10 हजार रुपये दिए तो कहा गया कि ये सीधे तौर पर रिश्वत है. फिर सवाल है कि बिहार की महिलाओं ने तेजस्वी के 30 हजार एकमुश्त देने के वादे पर भरोसा क्यों नहीं किया? एक तो नीतीश की महिलाओं के लिए योजनाओं का पूरा इतिहास है. दूसरा,तेजस्वी और नीतीश के कैश ट्रांसफर में फर्क ये है कि एक कैश ट्रांसफर की बात है और दूसरी तरफ जिंदगी ट्रांसफॉर्म करने की बात है. वादा है कि अभी 10 हजार लो और अगर कारोबार बढ़ा तो 50 हजार और 2 लाख और मिलेंगे. 

सोशल के जाल में नहीं फंसे

सोशल मीडिया देख कर ऐसा लगता था कि पीके की पार्टी विजिबल है. लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि ये शून्य में की गई कल्पना थी. बिहार के वोटर ने बता दिया है कि उन्हें सोशल के स्यापे में नहीं फंसा सकते. इन्हीं पीके ने कहा था कि सरकार बनी तो तुरंत शराबबंदी खत्म कर देंगे. जिस तरह का जनादेश उन्हें मिला है उससे महिलाओं ने उनके इस ऐलान को लेकर अपनी राय साफ कर दी है. दरअसल, बिहार का वोट किसी के पक्ष और विपक्ष से ज्यादा बेहतर जीवन के लिए है. पलायन के खिलाफ है. रोजगार के पक्ष में है. बिहार को तरक्की की सीढ़ियों में आखिरी पायदान से ऊपर उठाने की आरजू के लिए है.

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