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एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन में दिखा घमासान, क्या वाकई सफल रहा सम्मेलन?

बिहार में एनडीए का कार्यकर्ता सम्मेलन एक बड़ी राजनीतिक कवायद है, जिसका उद्देश्य कार्यकर्ताओं को जोड़ना और चुनावी माहौल में एकजुटता दिखाना है.

एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन में दिखा घमासान, क्या वाकई सफल रहा सम्मेलन?

बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल धीरे-धीरे गर्माता जा रहा है. सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने और जमीनी स्तर पर तालमेल मजबूत करने के लिए प्रदेश भर में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करने की शुरुआत की है. इस सम्मेलन का उद्देश्य था कार्यकर्ताओं के बीच एकजुटता का संदेश देना, चुनावी रणनीति पर चर्चा करना और गठबंधन की ताकत को जनता के सामने दिखाना. लेकिन सम्मेलन के दौरान जो दृश्य सामने आए, उन्होंने पूरे मकसद पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

सम्मेलन में नेताओं की नोकझोंक

कार्यकर्ता सम्मेलन का मंच विचार-विमर्श और भविष्य की रणनीति बनाने का केंद्र होना चाहिए था, लेकिन वहां एनडीए घटक दलों के नेताओं के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली. हालात इतने बिगड़े कि मंच पर ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया. दिलचस्प यह भी रहा कि सीट बंटवारे की औपचारिक घोषणा से पहले ही कई सीटों पर उम्मीदवारों के नाम सामने आने लगे, जिससे तनाव और बढ़ गया.

ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि जब मंच पर ही घटक दलों के नेता आपसी सामंजस्य बनाए रखने में असफल दिख रहे हैं, तो कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल और संगठन की मजबूती का संदेश कैसे जाएगा?

NDA कार्यकर्ता सम्मेलन में हुए विवाद पर सफाई देते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा कि, "यह कहना बिल्कुल गलत है कि कार्यकर्ता सम्मेलन में हर जगह नेताओं के बीच भिड़ंत हो रही है. ऐसा केवल एक जगह हुआ और उसमें भी जिन लोगों ने माहौल बिगाड़ा, वे विपक्षी दल के थे. वे जानबूझकर एनडीए की एकजुटता को तोड़ने के लिए ऐसे हालात पैदा करना चाहते थे."

दिलीप जायसवाल ने यह भी दावा किया कि पूरे राज्य में एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन सफलतापूर्वक चल रहा है और कार्यकर्ताओं में उत्साह देखने को मिल रहा है.

जेडीयू की सफाई

इसी मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने भी इसे महज अफवाह बताया. उन्होंने कहा कि, "एक जगह को छोड़ दीजिएगा, कहीं भी ऐसा नहीं हो रहा है. यह सब विपक्ष के फैलाए गए भ्रम हैं. पहली बार है कि एनडीए के सभी घटक दलों के नेता एक साथ मंच पर आ रहे हैं और कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे हैं. यह हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है और यह संदेश देता है कि गठबंधन मजबूत है."

विपक्ष का हमला

वहीं, विपक्ष ने इस मौके का फायदा उठाते हुए एनडीए पर जोरदार हमला बोला है. राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि, "एनडीए का कार्यकर्ता सम्मेलन कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बढ़ाने के लिए हो रहा है, लेकिन मंच पर ही नेताओं के बीच हाथापाई और लाठीचार्ज जैसी स्थिति बन गई. अभी तो चुनाव की तारीख भी घोषित नहीं हुई है और एनडीए में घमासान शुरू हो चुका है. चुनाव की घोषणा के बाद तो हालत और भी खराब होंगे और गठबंधन में सिर्फ फुटावल ही नजर आएगा.

सीट बंटवारे का विवाद

बिहार चुनाव में सबसे अहम मुद्दा हमेशा से सीट बंटवारा रहा है. गठबंधन दलों के बीच कौन-सी पार्टी कितनी सीटों पर लड़ेगी और किसका उम्मीदवार कहां से खड़ा होगा, इसको लेकर अक्सर खींचतान होती रहती है. इस बार भी स्थिति अलग नहीं है. कार्यकर्ता सम्मेलन में कई नेताओं ने अपने-अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के नाम पहले ही सार्वजनिक कर दिए, जिससे यह साफ हो गया कि गठबंधन के अंदर रणनीति पर अभी भी सहमति नहीं बनी है. यही वजह है कि कार्यकर्ताओं में भी असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है.

कार्यकर्ताओं में क्या संदेश गया?

एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन का असली मकसद था कि पार्टी के कार्यकर्ताओं तक एकता और उत्साह का संदेश पहुंचे. लेकिन मंच पर नेताओं की तनातनी और उम्मीदवारों के नामों की जल्दबाजी ने इस मकसद को धूमिल कर दिया. कार्यकर्ताओं के बीच यह सवाल उठने लगे हैं कि जब शीर्ष नेतृत्व ही एकमत नहीं है, तो कार्यकर्ताओं से तालमेल की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

चुनावी रणनीति पर असर

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एनडीए को अगर चुनाव में मजबूती से उतरना है तो सबसे पहले आंतरिक मतभेदों को दूर करना होगा. कार्यकर्ता सम्मेलन जैसे कार्यक्रम तभी सफल हो सकते हैं, जब मंच पर एकजुटता दिखे. मंच पर हो रही बहस और नोकझोंक सीधे-सीधे विपक्ष को मुद्दा दे रही है.

विपक्ष पहले से ही जनता के बीच यह संदेश फैलाने की कोशिश कर रहा है कि एनडीए अंदर से कमजोर है और चुनाव आते-आते यह गठबंधन टूट जाएगा. अगर एनडीए समय रहते रणनीतिक कदम नहीं उठाता, तो इसका असर सीधे-सीधे सीटों पर दिख सकता है.

बिहार में एनडीए का कार्यकर्ता सम्मेलन एक बड़ी राजनीतिक कवायद है, जिसका उद्देश्य कार्यकर्ताओं को जोड़ना और चुनावी माहौल में एकजुटता दिखाना है. लेकिन सम्मेलन के दौरान सामने आई खींचतान और समय से पहले उम्मीदवारों की घोषणा ने इसकी सफलता पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं.अब बड़ा सवाल यही है कि क्या एनडीए अपने अंदरूनी मतभेदों को दरकिनार कर चुनाव में एकजुट होकर उतर पाएगा या फिर विपक्ष के दावों की तरह यह सम्मेलन वाकई "फुटावल" की शुरुआत बन जाएगा?
 

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