
- बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए के घटक दलों में सीट शेयरिंग को लेकर खींचतान देखने को मिल रही है.
- JDU नेता श्रवण कुमार ने पार्टी को बड़े भाई की भूमिका में बताया था, जिस पर उपेंद्र कुशवाहा ने आपत्ति जताई.
- उपेंद्र कुशवाहा कोइरी समाज से आते हैं और लोकसभा चुनाव में कुशवाहा मतदाता बंट गए थे.
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों में खींचतान (Bihar Assembly Election 2025) काफी बढ़ गई है. सीट शेयरिंग से पहले एनडीए के घटक दलों में भी आपसी खींचतान देखी जा रही है. सभी 5 दल अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की जुगत में हैं. बुधवार को नालंदा में जेडीयू के नेता और बिहार सरकार में मंत्री श्रवण कुमार ने कहा था कि जेडीयू इस चुनाव में बड़े भाई की भूमिका में रहेगा. इस पर पलटवार करते हुए राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कौन बड़ा भाई होगा यह जब तय होगा तब तय होगा. उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) जदयू को बड़ा भाई बताने पर काफी सहज नहीं दिखे थे.
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क्यों अहम हैं उपेंद्र कुशवाहा
उपेंद्र कुशवाहा जिस कोइरी समाज से आते हैं वह पारंपरिक रूप से एनडीए का वोटर माना जाता रहा है. लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में कुशवाहा मतदाताओं ने दोनों गठबंधन को वोट किया. महागठबंधन ने 6 कुशवाहा उम्मीदवारों को टिकट दिया था. इसके बाद कुशवाहा मतदाताओं का एक हिस्सा महागठबंधन की तरफ चला गया था. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा, ताकि कुशवाहा मतदाताओं को रिझाया जा सके.
पिछले विधानसभा चुनाव में NDA को हराई थीं कई सीटें
दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी (राष्ट्रीय लोक समता पार्टी) कई सीटों पर एनडीए के हार की वजह बनी थी. पिछले चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा ने तीसरा मोर्चा बनाया था. उनकी पार्टी 99 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इनमें से सिर्फ 5 सीटों पर उनके उम्मीदवार जमानत बचा पाए थे. चार सीटें एनडीए हार गई थी. उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के 13 उम्मीदवारों के हार का कारण बने.
पटना में उपेंद्र कुशवाहा का शक्ति प्रदर्शन
उपेंद्र कुशवाहा भी पाला बदलने के लिए जाने जाते हैं. साल 2010 में वे जेडीयू में थे. साल 2015 में उनकी पार्टी ने बीजेपी से मिलकर चुनाव लड़ा था और 2020 का विधानसभा चुनाव तीसरा मोर्चा बनाकर लड़े. इस बार चुनाव के ऐलान से पहले वे 5 सितंबर को पटना के मिलर स्कूल में रैली करने जा रहे हैं. इस रैली को शक्ति प्रदर्शन भी माना जा रहा है, ताकि सीटों के लिए अधिक दबाव बनाया जा सके.
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