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बिहार का चुनावी समर: दूसरे चरण में मिथिलांचल से चंपारण तक महासंग्राम, समझें समीकरण

बिहार चुनाव में NDA का दावा है कि उसने बिहार में विकास का काम किया है. उनके प्रचार का नारा है “डबल इंजन की सरकार, विकास का भरोसा.” दूसरी ओर MGB का कहना है कि अब बदलाव का वक्त है. मंगलवार को बिहार में दूसरे और अंतिम चरण का मतदान है. समझें बिहार का सियासी समर.

बिहार का चुनावी समर: दूसरे चरण में मिथिलांचल से चंपारण तक महासंग्राम, समझें समीकरण
बिहार में कल दूसरे और अंतिम चरण का मतदान है. वोटों की गिनती 14 नवंबर को होगी.
पटना:

Bihar Assembly Elections 2025: पूरा बिहार इस समय चुनावी माहौल में डूबा हुआ है. हर गली, हर चौक-चौराहे पर राजनीति की बातें हैं. पहले चरण का मतदान खत्म हो चुका है, और अब दूसरे चरण की तैयारी पूरे जोश में चल रही है. इस बार का चुनाव सिर्फ नेताओं या पार्टियों की जंग नहीं है, बल्कि यह बिहार की जनता की उम्मीदों, उनके सवालों और उनके सपनों का चुनाव है. हर कोई जानना चाहता है कि इस बार कौन सरकार बनाएगा, कौन जनता का भरोसा जीतेगा और कौन सिर्फ वादों तक ही सीमित रह जाएगा.

दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर मतदान

दूसरे चरण में बिहार के 20 जिलों की 122 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. लगभग साढ़े तीन करोड़ लोग इस चरण में मतदान करेंगे. यह चरण इसलिए भी खास है क्योंकि यह बिहार के अलग-अलग हिस्सों को जोड़ता है, मिथिलांचल, चंपारण, सीमांचल और मगध. हर इलाके की अपनी कहानी और अपनी चिंता है.

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कहीं बेरोजगारी तो कहीं सड़क-अस्पताल की चर्चा

कहीं लोग बेरोज़गारी की बात कर रहे हैं, तो कहीं सड़क और अस्पताल की. कुछ जगहों पर लोग जाति के नाम पर वोट करने की सोच रहे हैं, तो कई लोग अब विकास और काम के नाम पर वोट देना चाहते हैं. यही इस चुनाव की सबसे बड़ी बात है कि अब बिहार का वोटर पहले से ज्यादा समझदार और जागरूक हो गया है.

दूसरे चरण के VIP फेस, जिनपर सबकी निगाहें

इस चरण में कई जाने-माने नेता मैदान में हैं. सुपौल से जदयू के बिजेंद्र प्रसाद यादव चुनाव लड़ रहे हैं, झंझारपुर से भाजपा के नीतीश मिश्र मैदान में हैं. चकाई से निर्दलीय सुमित कुमार सिंह, अमरपुर से जयंत राज और छातापुर से नीरज कुमार सिंह ‘बबलू' भी अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं.

बेतिया से भाजपा की रेणु देवी और धमदाहा से जदयू की लेशी सिंह महिला वोटरों से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं. हरसिद्धि से कृष्णनंदन पासवान (भाजपा) और चैनपुर से जमा खान (बसपा) अपने इलाके में पूरी मेहनत से प्रचार कर रहे हैं. हर उम्मीदवार के लिए यह चुनाव उनकी साख और जनता से उनके रिश्ते की परीक्षा है.

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करीब 32 सीटों पर एक ही जाति के उम्मीदवारों में भिड़ंत

राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से अहम रहे हैं, और इस बार भी यह बात पूरी तरह से नजर आ रही है. करीब 32 सीटों पर एक ही जाति के उम्मीदवार आपस में भिड़ रहे हैं. यादव बनाम यादव, मुस्लिम बनाम मुस्लिम जैसी टक्करें दिखा रही हैं कि दल अभी भी जातीय वोट बैंक पर भरोसा कर रहे हैं.

जाति से ऊपर उठकर भी सोच रहे लोग

लेकिन इस बार एक बड़ा बदलाव भी देखने को मिल रहा है. बहुत सारे लोग अब जाति से ऊपर उठकर सोच रहे हैं. वे यह देखना चाहते हैं कि उनके इलाके में किसने काम किया, कौन सड़कों को बेहतर बना पाया, कौन रोजगार दिलाने में मदद कर पाया और कौन सिर्फ वादे करता रहा.

गांवों और कस्बों में चुनावी माहौल पूरे रंग में है. कहीं ढोल-नगाड़े बज रहे हैं, तो कहीं नेता खुले मैदानों में रैलियाँ कर रहे हैं. लोगों के घरों पर झंडे लगे हैं, गली-गली पोस्टर चिपके हैं और चौपालों पर गरम बहसें हो रही हैं.

चाय वाले ने कहा- हमारा मुद्दा साफ- रोजी-रोटी और गांव का विकास

अमरपुर के एक चायवाले रामेश्वर साह ने बहुत सच्ची बात कही, “हमारा मुद्दा साफ है रोज़ी-रोटी और गाँव का विकास. हमें वोट अगली पीढ़ी के लिए देना चाहिए, सिर्फ पाँच साल के लिए नहीं.” यह बात बताती है कि आम आदमी अब समझ चुका है कि चुनाव सिर्फ नेता या पार्टी के लिए नहीं होते, बल्कि अपने और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए होते हैं.

महिला वोटर ही नहीं, उम्मीदवार भी बढ़ें

महिला मतदाताओं की भूमिका इस बार बहुत अहम है. पिछले कुछ चुनावों की तुलना में इस बार महिलाएं ज्यादा संख्या में वोट डालने बाहर निकल रही हैं. वे अब घर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अपने अधिकार और भविष्य को लेकर जागरूक हैं. महिला उम्मीदवारों की संख्या भी बढ़ी है और राजनीतिक दल अब उन्हें अपनी रणनीति का अहम हिस्सा बना रहे हैं.

भाजपा की रेणु देवी और जदयू की लेशी सिंह जैसी नेता महिलाओं के मुद्दों को केंद्र में रखकर प्रचार कर रही हैं. गाँव-गाँव में महिलाओं की चर्चाएँ चल रही हैं, रसोई गैस, सुरक्षा, रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दे इस बार उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहे हैं.

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अब बात- दोनों बड़े गठबंधनों की

  1. एक तरफ एनडीए है, जिसमें भाजपा, जदयू, लोजपा(रा), हम और रालोमो शामिल हैं. इनके बीच सीटों का बंटवारा पहले से तय हो चुका है,भाजपा 52, जदयू 45, लोजपा (रा) 15, हम 6 और रालोमो 4 सीटों पर लड़ रही है.
  2. दूसरी तरफ महागठबंधन है, जिसमें राजद, कांग्रेस, वीआईपी और वाम दल शामिल हैं. राजद को 70, कांग्रेस को 37, वीआईपी को 8 और वाम दलों को कुल 11 सीटें दी गई हैं. दोनों गठबंधन अपने-अपने एजेंडे के साथ मैदान में हैं.

NDA का दावा- डबल इंजन की सरकार, विकास का भरोसा

NDA का दावा है कि उसने बिहार में विकास का काम किया है. उनके प्रचार का नारा है “डबल इंजन की सरकार, विकास का भरोसा.” BJP और JDU मिलकर यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके शासन में बिहार में सड़कें बनीं, बिजली पहुंची और योजनाएँ चलीं.

महागठबंधन का दावा- बिहार बदलाव के लिए तैयार

वहीं महागठबंधन का कहना है कि अब बदलाव का वक्त है. तेजस्वी यादव इस बार युवा और बेरोज़गारी को लेकर बड़ा अभियान चला रहे हैं. उनका कहना है कि नौजवानों को नौकरी और राज्य को नई सोच चाहिए. उनका नारा है “परिवर्तन की सरकार, सबके अधिकार.”

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क्या सीमांचल खोलेगा सत्ता का द्वार

सीमांचल का इलाका इस बार भी चुनावी चर्चा में है. अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों में मुस्लिम और यादव मतदाता बड़ी संख्या में हैं. यहाँ की सीटों पर हर पार्टी की नजर है. महागठबंधन इस क्षेत्र को अपनी मजबूती मानता है, जबकि एनडीए ने भी यहाँ पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीमांचल और मिथिलांचल में कई रैलियाँ की हैं, वहीं तेजस्वी यादव ने लगातार रोड शो और सभाओं से माहौल बनाए रखा है.

सोशल मीडिया की भूमिका भी बढ़ी

इस चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका भी काफी बढ़ गई है. अब प्रचार सिर्फ पोस्टर और रैली तक सीमित नहीं रहा. व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर भी लोग अपने पसंदीदा नेताओं के वीडियो और संदेश साझा कर रहे हैं. युवा वोटर, जो अब चुनाव का बड़ा वर्ग बन चुके हैं, ऑनलाइन अभियानों से काफी प्रभावित हैं. हर पार्टी कोशिश कर रही है कि वे युवाओं तक अपने वादे और योजनाएँ सही तरीके से पहुँचा सकें.

युवाओं में नौकरी और पढ़ाई को लेकर असंतोष

विकास, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य इस बार के मुख्य मुद्दे हैं. कोरोना महामारी के बाद से लोगों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का मुद्दा गहराई से जुड़ा हुआ है. युवाओं में नौकरी और पढ़ाई को लेकर असंतोष भी देखा जा रहा है. गाँवों में किसान बिजली, सिंचाई और न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी समस्याओं को लेकर सवाल उठा रहे हैं. इन मुद्दों को देखकर लगता है कि अब जनता वादों से आगे बढ़कर काम को देखना चाहती है.

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किसी नेता का चेहरा नहीं जनता की उम्मीदें सबसे बड़ा चेहरा

राजनीतिक दलों के बीच होड़ तेज है. एनडीए यह साबित करना चाहता है कि उसकी सरकार ने बिहार को विकास की राह पर डाला है, जबकि महागठबंधन यह दिखाना चाहता है कि आम आदमी की ज़िंदगी अब भी मुश्किलों में है और बदलाव जरूरी है. इस बार के चुनाव में किसी एक नेता का चेहरा नहीं, बल्कि जनता की उम्मीदें सबसे बड़ा चेहरा हैं.

इस बार किसे सत्ता देंगे बिहार के लोग

बिहार की गलियों में इस समय एक ही चर्चा है “क्या फिर वही सरकार लौटेगी या इस बार कुछ नया होगा?” हर वोटर इस सवाल का हिस्सा है. लोग अब सिर्फ पार्टी देखकर वोट नहीं डाल रहे, बल्कि सोच-समझकर फैसला ले रहे हैं कि किसे चुनना है. यह चुनाव बिहार के भविष्य की दिशा तय करेगा क्या यह “ट्रैक रिकॉर्ड की जीत” होगी या “परिवर्तन की लहर”?

11 नवंबर को मतदान, 14 को नतीजे

11 नवंबर को जब मतदान होगा, तब असली तस्वीर सामने आएगी. उसके बाद ही यह तय होगा कि बिहार की जनता ने किसे चुना पुराने वादों पर भरोसा किया या नए वादों को मौका दिया. लेकिन इतना तो तय है कि इस बार बिहार की जनता पहले से ज्यादा जागरूक है, और अब वह सिर्फ सुनना नहीं चाहती, बल्कि देखना चाहती है कि किसने सच में उसके लिए काम किया है. यही जागरूकता बिहार की सबसे बड़ी ताकत है, और यही इस चुनाव की असली कहानी भी.

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