
- बिहार में 2205 में पहली बार एक ही वर्ष में दो बार विधानसभा चुनाव आयोजित किए गए थे.
- 2003 में जनता दल यूनाइटेड के गठन से पहले कई पार्टियों का विलय हुआ था जो 2005 में चुनौती बने.
- फरवरी 2005 के चुनाव में राजद को 75 सीटें मिलीं जबकि जदयू और भाजपा ने क्रमशः 55 और 37 सीटें जीतीं
बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत तेज हो चुकी है. सभी दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुटी है. राज्य में 20 साल से नीतीश कुमार सत्ता के केंद्र में हैं. उससे पहले 15 साल लालू यादव केंद्र में थे. बात इस 35 साल से पहले की करें तो तब जनता दल और उससे भी पहले कांग्रेस का राज था. इस बार के चुनाव में बिहार की जनता किसे अपना नेता चुनती है ये तो आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन फिलहाल हम आपको बिहार के चुनावी इतिहास के उस साल की कहानी बता रहे है, जब एक ही साल में राज्य में दो बार विधानसभा के चुनाव हुए और 15 साल से चला आ रहा लालू राज खत्म हुआ.
2005 में हुए दो बार चुनाव
साल 2005 में ऐसा पहली बार हुआ था जब बिहार में एक ही साल के अंदर दो बार विधानसभा चुनाव कराने पड़े. दरअसल 2005 के चुनाव से दो साल पहले 2003 में जनता दल के शरद यादव गुट, लोक शक्ति पार्टी और जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार की समता पार्टी ने मिलकर जनता दल (यूनाइटेड) का गठन किया था. जो 2005 में लालू के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरे.

फरवरी 2005 में हुए चुनावों में राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद ने 215 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से उसे 75 सीटें मिल पाईं. वहीं, जदयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ 55 सीटें जीतीं और भाजपा 103 में से 37 सीटें लेकर आई. कभी बिहार में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस इन चुनावों में 84 में से 10 सीटें ही जीत पाई थी.
इन चुनावों में 122 सीटों का स्पष्ट बहुमत ना मिल पाने के कारण कोई भी सरकार नहीं बन पाई और कुछ महीनों के राष्ट्रपति शासन के बाद अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए.

दूसरे विधानसभा चुनावों में जदयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा था. भाजपा ने 102 में से 55 सीटें हासिल की थीं. वहीं, राजद ने 175 सीटों पर चुनाव लड़कर 54 सीटें जीतीं, लोजपा को 203 में से 10 सीटें मिलीं और कांग्रेस 51 में से नौ सीटें ही जीत पाई. साल 2000 में ही लोजपा का गठन हुआ था. इन चुनावों में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी.
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