
- बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के अंदरूनी मतभेद और दस सीटों पर आपसी मुकाबले एनडीए को लाभ पहुंचा रहे हैं
- महागठबंधन के दलों के बीच सीट बंटवारे और प्रत्याशी चयन को लेकर सहमति न होने से गठबंधन कमजोर दिख रहा
- महागठबंधन की महा-गलतियां, बिहार में इंडिया ब्लॉक की बढ़ीं मुश्किलें, होने जा रहे 10 आत्मघाती मुकाबले?
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान महागठबंधन के दलों के नाटकीय हालात में, पहले एकजुट होकर एनडीए के खिलाफ लड़ने का दावा करने वाला 'ग्रेट इंडिया ब्लॉक' अब गड़बड़ी और भ्रम के एक हास्यास्पद तमाशे में तब्दील हो गया है. चुनाव के पहले चरण के करीब आते ही माहौल एनडीए के खिलाफ कड़े मुकाबले का नहीं बल्कि ऐसे 'फ्रेंडली फाइट्स' का बन गया जो इस गठबंधन की नींव को ही कमजोर कर रहे हैं. इस राजनीतिक भूलभुलैया में कोई चीज निश्चित है, तो वो यह है कि इंडिया ब्लॉक में मौजूद इस अव्यवस्था से फायदा एनडीए को होने वाला है.
महागठबंधन में 10 फ्रेंडली मुकाबले- बनेंगे आत्मघाती
यहां एक विरोधाभास है- जहां आरजेडी, कांग्रेस और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता इन फ्रेंडली मुकाबलों की बात कर रहे हैं, तो वे दरअसल अनजाने में अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं. दस सीटों पर मुकाबले से मिलकर लड़ने की बात सिर्फ कहने भर की रह जाती है, जबकि जमीनी हकीकत में ये मुकाबला आपसी टकराव में बदल गया है जहां इसके साथी घटक दल आपस में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है. वैशाली, तारापुर, कुटुंबा जैसी सीटों पर आरजेडी के प्रत्याशी कांग्रेस और वीआईपी उम्मीदवारों से आमने-सामने हैं, और इस आपसी अंदरूनी लड़ाई को एनडीए मजे से देख रहा है.
बछवाड़ा सीट की बात करें, जिसे चुनावी विश्लेषकों की भाषा में एक मार्जिनल सीट या स्विंग सीट कहा जाता है — यहां 2020 में जीत का अंतर केवल 484 वोटों का था (सीपीआई के अवधेश सिंह बीजेपी के सुरेंद्र मेहता से इतने अंतर से हारे थे) - अब यहां से कांग्रेस ने शिव प्रकाश गरीब दास को टिकट दिया है, जो पिछली बार बतौर निर्दलीय तीसरे पायदान पर रहे थे. तो आश्चर्य ये होता है कि जब यहां ऐसे फ्रेंडली मुकाबले हो रहे हैं तब महागठबंधन जीत का सपना कैसे देख सकता है?
महागठबंधन की ढहती दीवार: मजबूती से बिखराव की ओर
प्रत्याशियों के नामों की घोषणा को लेकर जो भ्रम और देरी है, उसने हालात को और भी उलझा दिया है. जहां कांग्रेस ने अपने 48 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है, वहीं गठबंधन के बाकी दल अब तक पूरी तैयारी नहीं कर पाए हैं. यह आपसी तालमेल की कमी यह दिखाती और साफ बताती है कि यह गठबंधन अंदर से कितना कमजोर है — जबकि इसे शुरू में एक मजबूत विपक्ष माना जा रहा था. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और बाकी नेता लगातार बैठकों और बातचीत में लगे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. सीट बंटवारे पर साफ सहमति न होना इस बात का बड़ा सबूत है कि गठबंधन में भारी गड़बड़ी है. इसी बीच वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने चुनाव से हाथ खींचने की घोषणा करते हुए कहा है कि वे अपनी पार्टी के प्रत्याशी को ही अपना समर्थन देंगे. क्रूर सच्चाई ये है कि मुकेश सहनी अपनी राजनीतिक जिंदगी में एक भी चुनाव अब तक नहीं जीत सके हैं, जबकि वे मल्लाह-सहनी-निशाद बहुल सीट पर भी उतर चुके हैं. ऐसे समय में जब, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने पूरे बिहार में 16 दिवसीय वोटर अधिकार रैली और पांच दिवसीय बिहार अधिकार रैली या तो पैदल या मोटरसाइकिल पर की. लेकिन मुकेश सहनी का चुनावी अभियान उनके परंपरागत वीआईपी अंदाज हेलीकॉप्टर से ही होता आया है जबकि उनका प्रेस कॉन्फ्रेंस पांच सितारा होटलो में होता है. एक ओर प्रशांत किशोर बिहार की पूरी जमीन पैदल ही नापने और मतदाताओं से बड़े स्तर पर सीधे संपर्क बनाने पर आमादा हैं तो दूसरी तरफ मुकेश सहनी चुनावी सौदेबाजी में व्यस्त हैं और जमीनी स्तर पर जनसंपर्क नहीं करते.
मुकेश सहनी ने पहले महागठबंधन छोड़ने का फैसला किया था क्योंकि उनकी मांगे बहुत अधिक और अस्वीकार्य थीं, जिन्हें आरजेडी नेतृत्व मानने को तैयार नहीं था. हालात इतने बिगड़ गए कि सीपीआई (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य को देर रात राहुल गांधी को फोन करना पड़ा, ताकि वे बीच-बचाव कर सकें और मुकेश सहनी को मनाया जा सके.
इंडिया ब्लॉक में स्पष्टता, दिशा और लक्ष्य पर असमंजस
मुकेश सहनी के नखरों के बाद अंतिम समय पर उन्हें मनाने की कोशिश इस गठबंधन के भीतर गहरी अस्थिरता की गवाही देती है. उनका ये कदम इंडिया ब्लॉक में मौजूद बड़ी समस्या का एक छोटा सा उदाहरण है- जहां स्पष्ट दिशा और योजना का अभाव साफ नजर आता है. मुकेश सहनी की बगैर चुनाव लड़े ही डिप्टी सीएम बनने की आकांक्षा ये बताती है कि अंदरूनी महत्वाकांक्षाओं ने इस गठबंधन को कमजोर कर दिया है. विडंबना तो यह है कि यह गठबंधन एकजुट प्रयास बनने के बजाय खुद अपने लिए संकट बन गया है. उधर सत्ताधारी एनडीए, अपनी स्पष्ट रणनीति और एकजुट संदेश के साथ, इस अव्यवस्था का पूरा लाभ उठा रहा है. हर बार जब कोई आरजेडी उम्मीदवार कांग्रेस या वीआईपी उम्मीदवार के खिलाफ खड़ा होता है तो उन विधानसभा सीटों पर एनडीए की जीत का पलड़ा और भारी हो जाता है. एनडीए का स्पष्ट कहना है कि विपक्ष बंटा हुआ है और और इंडिया ब्लॉक की एकता दिखाने की कोशिशें उनके अंदरूनी झगड़ों के सामने खोखली लगती है.
SIR चर्चा के 180 डिग्री पलटने से भ्रम का माहौल
चुनावी के आधिकारिक घोषणा से पहले महागठबंधन को राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी और दीपांकर भट्टाचार्य की 16 दिवसीय वोटर अधिकार रैली और तेजस्वी यादव के पांच दिवसीय बिहार अधिकार रैली ने जमीन पर हलचल मचा दी थी, लेकिन आज वही माहौल जो कभी उम्मीदों से भरा था, निराशा और भ्रम में बदलता नजर आ रहा है. यहां तक कि कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा लगातार रैलियां और सभाएं कर रहे हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी भी महागठबंधन के इस आंतरिक फूट को छिपा नहीं पा रहे. उनकी कोशिशें सराहनीय हैं लेकिन जमीनी हकीकत के आगे फीकी पड़ जाती हैं. नामांकन दाखिल करने के अंतिम वक्त में प्रत्याशियों की भागाभागी इस अंदरूनी अव्यवस्था की और भी स्पष्ट तस्वीर उजागर करती है. बिहार में इंडिया ब्लॉक अब विरोधाभासों का आइना बन गया है.
गठबंधन या भ्रमजाल? विरोधाभासों में उलझा इंडिया ब्लॉक
बिहार चुनाव के पहले चरण के नामांकन तय होने के साथ ही कभी एनडीए के लिए चुनौती बनने निकला महागठबंधन आज अपने विरोधाभासों में पूरी तरह उलझ चुका है. इसकी हर एक झलक दिखा रही है कि अंदरखाते अफरा-तफरी और टकराव छिपे हैं. जो मुकाबले दोस्ताना कहे जा रहे हैं, वो एकता दिखाने के बजाय उस फूट को उजागर कर रहे हैं, जो इस गठबंधन की महत्वाकांक्षाओं को पटरी से उतार सकती है. जहां राजनीति में स्पष्टता और स्थिरता अहम होती है, वहां इंडिया ब्लॉक की यह उलझन एक चेतावनी की कहानी बनकर सामने आई है. अब सवाल यह रह गया है कि क्या यह गठबंधन अपने अंदरूनी मतभेदों को पार कर एक एकजुट मोर्चा बन सकेगा? या फिर चौकस बैठा एनडीए इस मौके का फायदा उठाकर सत्ता पर अपनी पकड़ को और मज़बूत कर लेगा, जबकि इंडिया ब्लॉक खुद अपने ही उलझनों में फंसा रहेगा? जवाब शायद वोटों में नहीं, बल्कि इस अव्यवस्था से मिलने वाले सबक में छिपा है.
महागठबंधन में आपसी टक्कर वाली 10 सीटों की सूची
इंडिया ब्लॉक के कुछ प्रत्याशी अगर पीछे नहीं हटे तो महागठबंधन की यह अंदरूनी लड़ाई एनडीए के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है. यह सूची अभी और लंबी हो सकती है. दूसरे चरण के मतदान के लिए 121 विधानसभा सीटों पर नामांकन भरने की अंतिम तारीख सोमवार को है, जहां चुनाव 11 नवंबर को होने हैं.
वैशाली: आरजेडी ने अजय कुमार कुशवाहा, और कांग्रेस ने संजीव कुमार सिंह को उतारा है. 2020 में जेडीयू के सिद्धार्थ पटेल ने 69,780 वोटों से जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के संजीव सिंह 62,367 वोट लेकर दूसरे नंबर पर थे. जीत का अंतर सिर्फ 7,413 वोट था. आरजेडी के अजय कुशवाहा 33,351 वोट के साथ तीसरे नंबर पर थे. अब आरजेडी और कांग्रेस के टकराव से एनडीए के उम्मीदवार की जीत तय सी लगती है.
बछवाड़ा: सीपीआई के अवधेश कुमार राय बनाम कांग्रेस के शिव प्रकाश गरीब दास. 2020 में अवधेश राय 484 वोटों से बीजेपी के सुरेंद्र मेहता से हारे थे. शिव प्रकाश गरीब दास, तब निर्दलीय थे, और उन्हें 39,878 वोट मिले थे. अब कांग्रेस ने उन्हें टिकट दे दिया है, जिससे महागठबंधन का वोट दो हिस्सों में बंटेगा जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा.
गौड़ा बौराम (दरभंगा): वीआईपी के संतोष साहनी बनाम आरजेडी के अफजल अली खान. संतोष साहनी, वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी के भाई हैं. 2020 में अफजल अली खान आरजेडी से दूसरी स्थान पर थे जबकि वीआईपी की स्वर्णा सिंह 59,538 वोट लेकर जीती थीं. अब यह मुकाबला स्वर्णा सिंह के पति और बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में जा सकता है.
लालगंज: आरजेडी की शिवानी शुक्ला बनाम कांग्रेस के आदित्य राज. शिवानी शुक्ला तीन बार के विधायक रह चुके डॉ. विजय शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला की बेटी हैं. मुन्ना शुक्ला पर हत्या के मामले में जेल हो चुकी है, और 2024 में ब्रिज बिहारी मर्डर केस में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया था.
राजापाकर: सीपीआई के मोहित पासवान बनाम कांग्रेस की प्रतिभा कुमारी दास.
रोसरा (समस्तीपुर): सीपीआई के लक्ष्मण पासवान बनाम कांग्रेस के ब्रज किशोर के. रवि.
कहलगांव (परंपरागत कांग्रेस सीट): आरजेडी के रजनीश भारती बनाम कांग्रेस के प्रवीण सिंह कुशवाहा.
कुटुंबा: बिहार कांग्रेस प्रमुख राजेश राम बनाम आरजेडी के सुरेश पासवान.
बिहार शरीफ: सीपीआई के दीप प्रकाश यादव बनाम कांग्रेस के उमर खान.
तारापुर: आरजेडी के अरुण शाह बनाम वीआईपी के सकलदेव सिंह बिंद.
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