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This Article is From Feb 10, 2016

सियाचीन में बर्फ़ से निकाले गए हनुमंतप्‍पा के गांव के युवाओं में सेना में नौकरी का जज्‍बा

सियाचीन में बर्फ़ से निकाले गए हनुमंतप्‍पा के गांव के युवाओं में सेना में नौकरी का जज्‍बा
सेना में जाना चाहते हैं हनुमंतप्‍पा के गांव के युवा
बेंगलुरु: उत्तर कर्नाटक के शहर हुबली से तक़रीबन 17 किलोमीटर दूर बेटदूर गांव में दाखिल होते ही जो पहला घर दिखता है, वहां की हलचल से अहसास हो जाएगा कि इसी घर की तलाश में हम बेटदूर गांव आए हैं।

कर्नाटक के दूसरे गांवों की ही तरह यहां का वातावरण है। ज्‍वार, लाल मिर्च, कॉटन और काले चने की लहलहाती फसल से भरे खेत इस गांव के अर्थ तन्त्र की रूपरेखा सहज ही बताते हैं। हनुमंतप्‍पा के घर पहुंचने पर वहां उनके परिजन, हमदर्द और सहपाठी अजीब से दुविधा में घिरे मिले।

पहले सब मान चुके थे कि हनुमंतप्‍पा दूसरे सैनिकों की ही तरह वतन पर शहीद हो गए। लेकिन जैसे ही उनके ज़िंदा होने की खबर आई, मंदिरों के घंटे बज उठे।
 

लेकिन सुबह की पहली पौ के साथ उनकी ज़िन्दगी और मौत के बीच की जद्दोजेहद की कोशिश पर पसरी धुंध जैसे छंटी, एक बार फिर मायूसी छा गयी। लेकिन इस बार उम्मीद और दुआ उन्हें ढांढस बंधा रही है।

यहां हमें मिले मकदूम हुसैन जो कि हनुमंतप्‍पा के बचपन के साथी हैं। वो भी 14 साल सेना के मेडिकल कॉर्प्स में काम कर चुके हैं।

उन्होंने बताया कि इस गांव की नई पीढ़ी के 12 युवा सेना से जुड़े। इनमें से दो ने रिटायरमेंट ले ली। मकदूम हुसैन के मुताबिक सेना में नौकरी इस गांव में फख्र की बात मानी जाती है। वो हनुमंतप्‍पा के साथ हमेशा फौज से जुड़ने की बातें बचपन से किया करते थे। उन्हें अपने बचपन के दोस्त हनुमंतप्‍पा पर फख्र है। उनका पूरा परिवार हनुमंतप्‍पा की सलामती के लिए दुआ कर रहा है।

हनुमन्थप्पा चार भाई हैं। पिता इस दुनिया में नहीं रहे। उनके बड़े भाई का बेटा भी सेना में काम करता है। इनके साथ-साथ 2 एकड़ ज़मीन और दो गाएं इस परिवार के पास हैं जिससे भरण पोषण होता है।

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