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This Article is From Oct 29, 2018

मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 : पिछले 15 साल से राज्‍य में है एक ही मुस्लिम विधायक

भोपाल उत्तर से कांग्रेस के इकलौते विधायक हैं 66 साल के आरिफ अक़ील, इनकी दूसरी पहचान, 230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में 15 सालों से इकलौते मुस्लिम विधायक की भी है.

मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 : पिछले 15 साल से राज्‍य में है एक ही मुस्लिम विधायक
कांग्रेस विधायक आरिफ अकील (फाइल फोटो)
भोपाल: मध्यप्रदेश में सभी दल सबका साथ, सबका विकास की बात करते हैं, लेकिन मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने में बीजेपी तो कंजूसी बरतती ही है, कांग्रेस भी इस मामले में कोई खास दरियादिली नहीं दिखाती. हालात ये हैं कि पिछले चुनाव में 5 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने वाली कांग्रेस इसमें भी कटौती कर सकती है. भोपाल उत्तर से कांग्रेस के इकलौते विधायक हैं 66 साल के आरिफ अक़ील, इनकी दूसरी पहचान, 230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में 15 सालों से इकलौते मुस्लिम विधायक की भी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश में मुसलमानों की आबादी 47.74 लाख है, यानी कुल आबादी का 6.5 फीसद जो कुल 5,03,94,086 वोटरों का लगभग 10 फीसद हैं. ये आबादी पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ और भोपाल संभाग में 40 सीटों पर दखल रखते हैं.

शाजापुर, मंडला, नीमच, महिदपुर, मंदसौर, इंदौर-5, नसरुल्लागंज, इछावर, आष्टा जैसी सीटों में तो मुसलमानों की आबादी लगभग 20 फीसद है. बावजूद इसके बीजेपी ने मुस्लिम नेताओं को टिकट देने के मामले में हमेशा से कंजूसी की है. पिछले पांच विधानसभा चुनावों में सिर्फ दो मुस्लिम उम्मदवारों को मैदान में उतारा गया. जबकि कांग्रेस ने 2013 में 5 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे.

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दोनों पार्टियों की इस मामले में दलीलें एक जैसी, जिताऊ उम्मीदवार. कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना ने कहा 'हमने भागीदारी दी लेकिन हार गये, बीजेपी को फायदा हुआ, निश्चित तौर पर अख्लियत के लोग हमारे साथ हैं लेकिन जीतना भी तो चाहिये.' वहीं बीजेपी नेता और वक्फ बोर्ड के चेयरमैन शौक़त मोहम्मद खान ने कहा, 'पिछली बार भी दिया गया था, हमारी पार्टी से मुस्लिम विधायक भी रहे हैं, मंत्री भी... हमारी पार्टी के पैमाने अलग हैं. जो सर्वे और जीत को सुनिश्चित करते हैं उन्हें जरूर टिकट दिया जाता है.'

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मध्यप्रदेश में 1962 में सबसे ज्यादा सात मुस्लिम विधायक बने थे. उसके बाद पिछले 15 सालों से यानी 2003: 1, 2008: 1 और 2013 में भी 1 मुस्लिम विधायक को चुना गया. ये समझना मुश्किल नहीं है कि क्यों चाहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हों या बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, मध्यप्रदेश आकर टेंपल रन में जुटते हैं. आखिर जोर उम्मीदवारों की जीत पर जो है.

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राजनीति में पहले सोशल इंजीनियरिंग की बात होती थी लेकिन अब सिर्फ एक ही पैमान है जिताऊ उम्मीदवार शायद यही वजह है कि सियासत के सांप्रदयीकरण को लेकर लच्छेदार बातें करने के बावजूद मुस्लमानों को उनकी नुमाइंदगी के अनुरूप टिकट ना देने का फॉर्मूला बीजेपी भी अपनाती है, कांग्रेस भी.

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