विधानसभा चुनाव में वाराणसी की मूलभूत समस्याएं चुनावी मुद्दा नहीं बन पाई हैं.
वाराणसी:
उत्तर प्रदेश में हो रहा चुनाव अब अपने अंतिम दौर में है. इस अंतिम दौर में बनारस में वोटिंग होनी है. बनारस प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है लिहाजा सभी पार्टियों की निगाहें यहां की सीट पर लगी हैं. बीजेपी ने भी अपने गढ़ को बचाने के लिए सारी ताकत झोंक दी है. सभी नेता यहां बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं लेकिन इन वादों के बीच में बनारस अकेला किसी कोने में अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है. उसकी सुध किसी वादे में नजर नहीं आती. भाजपा के सभी बड़े मंत्री इन दिनों बनारस में ही कैम्प किए हुए हैं.
बनारस के एक सभागार में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी भाजपा के पक्ष में वोट की अपील करते हुए नजर आईं. स्मृति के अलावा भाजपा के लगभग सभी बड़े मंत्री इन दिनों बनारस में हैं. वे जगह-जगह सभा करके बीजेपी के शासन काल में हुए काम को जनता के बीच में बता रहे हैं. केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली व्यापारियों और उद्यमियों की मीटिंग कर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार उनके लिए कितनी लाभकारी योजनाएं लाई है.
बनारस की सरजमीं पर मंत्री बड़े-बड़े वादे तो कर रहे हैं पर बनारस की बदहाली अपनी जगह बदस्तूर है. बनारस की सड़कें जाम की समस्या से जूझ रही हैं. हर जगह कूड़े के अम्बार हैं. बनारस में हर दिन तकरीबन 600 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है. इसमें से 500 मीट्रिक टन कूड़े के निस्तारण का दावा किया जाता है लेकिन जमीन पर हर जगह गंदगी है. यही नहीं गंगा भी उतनी ही मैली है. गंगा के दरकते घाट अपनी कहानी अलग बयां कर रहे हैं. गंगा के लिए लड़ाई लड़ने वाले इस बात से बेहद निराश हैं कि यह समस्या मुद्दा नहीं बनती.
बनारस की समस्याओं की फेहरिस्त इतनी ही नहीं है. अपनी-अपनी पार्टी की हवा बनाने में नेता जुटे हैं पर खुद बनारस की हवा जहरीली हो चुकी है. बनारस की कई सड़कें धूल के गुबार के बीच बमुश्किल दिखाई पड़ती हैं. वायु प्रदूषण सूचक मशीन बताती है कि पीएम-2.5 कण 990, पीएम-10, 687.9 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक समय-समय पर पाया जाता है. कहने का मतलब यह है कि पूरे शहर की फिजां में धूल के कण जिंदगी को बेजार किए हुए हैं. यह बात बनारस के युवाओं को भी सालती है और वे भी कहते हैं कि चुनाव में यह बुनियादी मुद्दे गुम हैं.
साफ है कि बनारस प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के बाद भी अपनी बदहाली के लिए आंसू बहा रहा है. इसकी वजह राज्य और केंद्र सरकार दोनों हैं, जिनकी लड़ाई में बनारस बेबस है. चुनाव में दोनों ही सरकारें अपनी-अपनी पार्टी को जिताने के लिए बनारस में डेरा तो डाले हैं पर अफसोस ये है कि बनारस की इस दुर्दशा की चर्चा कोई नहीं कर रहा है.
बनारस के एक सभागार में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी भाजपा के पक्ष में वोट की अपील करते हुए नजर आईं. स्मृति के अलावा भाजपा के लगभग सभी बड़े मंत्री इन दिनों बनारस में हैं. वे जगह-जगह सभा करके बीजेपी के शासन काल में हुए काम को जनता के बीच में बता रहे हैं. केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली व्यापारियों और उद्यमियों की मीटिंग कर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार उनके लिए कितनी लाभकारी योजनाएं लाई है.
बनारस की सरजमीं पर मंत्री बड़े-बड़े वादे तो कर रहे हैं पर बनारस की बदहाली अपनी जगह बदस्तूर है. बनारस की सड़कें जाम की समस्या से जूझ रही हैं. हर जगह कूड़े के अम्बार हैं. बनारस में हर दिन तकरीबन 600 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है. इसमें से 500 मीट्रिक टन कूड़े के निस्तारण का दावा किया जाता है लेकिन जमीन पर हर जगह गंदगी है. यही नहीं गंगा भी उतनी ही मैली है. गंगा के दरकते घाट अपनी कहानी अलग बयां कर रहे हैं. गंगा के लिए लड़ाई लड़ने वाले इस बात से बेहद निराश हैं कि यह समस्या मुद्दा नहीं बनती.
बनारस की समस्याओं की फेहरिस्त इतनी ही नहीं है. अपनी-अपनी पार्टी की हवा बनाने में नेता जुटे हैं पर खुद बनारस की हवा जहरीली हो चुकी है. बनारस की कई सड़कें धूल के गुबार के बीच बमुश्किल दिखाई पड़ती हैं. वायु प्रदूषण सूचक मशीन बताती है कि पीएम-2.5 कण 990, पीएम-10, 687.9 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक समय-समय पर पाया जाता है. कहने का मतलब यह है कि पूरे शहर की फिजां में धूल के कण जिंदगी को बेजार किए हुए हैं. यह बात बनारस के युवाओं को भी सालती है और वे भी कहते हैं कि चुनाव में यह बुनियादी मुद्दे गुम हैं.
साफ है कि बनारस प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के बाद भी अपनी बदहाली के लिए आंसू बहा रहा है. इसकी वजह राज्य और केंद्र सरकार दोनों हैं, जिनकी लड़ाई में बनारस बेबस है. चुनाव में दोनों ही सरकारें अपनी-अपनी पार्टी को जिताने के लिए बनारस में डेरा तो डाले हैं पर अफसोस ये है कि बनारस की इस दुर्दशा की चर्चा कोई नहीं कर रहा है.
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