अहमदाबाद:
आम तौर पर अहमदाबाद के ज्यादातर कॉलेजों में दिसंबर के महीने में मस्ती की बहार होती है. पूरा महीना अलग-अलग सांस्कृतिक महोत्सव या कल्चरल फेस्टीवल.. शॉर्ट में कहें तो कलफेस्ट चलते रहते हैं, लेकिन इस साल नोटबंदी की वजह से ऐसा माहौल बेहद कम देखने को मिल रहा है.
गुरुवार को सेंट जेवियर्स कॉलेज में पूरा दिन सांस्कृतिक महोत्सव चलता रहा, लेकिन ज्यादातर कॉलेजों ने अपने आयोजन या तो आगे बढ़ा दिए हैं या फिर रद्द कर दिए हैं. जेवियर्स कॉलेज भी बड़ी मुश्किल से कुछ पैसा जमा कर पाया. हालांकि इस साल उनका खर्च भी फंड की कमी से आधा रह गया है.
कॉलेज के सांस्कृतिक महोत्सव कमेटी के सदस्य चिंतन दलाल कहते हैं कि बहुत मुश्किल हुई. कई लोगों ने पहले हामी भरी थी, लेकिन नवंबर के महीने में नोटबंदी के बाद पैर पीछे खींच लिए. पुराने छात्रों औऱ अध्यापकों के साथ कॉलेज मैनेजमेंट ने मदद की, इसलिए ये हो पाया.
कई बड़े कॉलेजों में भी सांस्कृतिक महोत्सव के बिना छात्र निराश हैं, लेकिन मुश्किल से ही सही हो रहा है तो इसमें हिस्सा लेने वाले छात्रों के चेहरे खिले हुए हैं. उन्हें लगता है कि अगर ये आयोजन नहीं होता तो वो छात्र जिंदगी का एक बेहद अहम मौका गंवा देते.
फर्स्ट ईयर साल में पढ़ने वाले अंकित शासक कहते हैं कि 'उन्होंने स्कूल में बहुत सुना था कि कॉलेज की ज़िंदगी बेहद खूबसूरत होती है, लेकिन अगर ये आयोजन नहीं होता तो सिर्फ सुना ही रह जाता. देख नहीं पाते कि कितना मज़ा आता है'.
थर्ड ईयर में पढ़ने वाली मानसी बाबरिया कहती हैं कि वो पिछले दो सालों से अपनी टीम को जीता नहीं पाती थीं. इस साल वो डांस में अपनी टीम को चैंपियन बनवाना चाहती हैं. अगर इस साल महोत्सव नहीं होता तो जीवन भर इसे कोसती कि उन्हें मौका नहीं मिला. छोटे औऱ मझौले उद्योगों के साथ-साथ कॉलेजों में होने वाले छोटे-छोटे आयोजनों पर नोटबंदी का असर दिखने लगा है.
गुरुवार को सेंट जेवियर्स कॉलेज में पूरा दिन सांस्कृतिक महोत्सव चलता रहा, लेकिन ज्यादातर कॉलेजों ने अपने आयोजन या तो आगे बढ़ा दिए हैं या फिर रद्द कर दिए हैं. जेवियर्स कॉलेज भी बड़ी मुश्किल से कुछ पैसा जमा कर पाया. हालांकि इस साल उनका खर्च भी फंड की कमी से आधा रह गया है.
कॉलेज के सांस्कृतिक महोत्सव कमेटी के सदस्य चिंतन दलाल कहते हैं कि बहुत मुश्किल हुई. कई लोगों ने पहले हामी भरी थी, लेकिन नवंबर के महीने में नोटबंदी के बाद पैर पीछे खींच लिए. पुराने छात्रों औऱ अध्यापकों के साथ कॉलेज मैनेजमेंट ने मदद की, इसलिए ये हो पाया.
कई बड़े कॉलेजों में भी सांस्कृतिक महोत्सव के बिना छात्र निराश हैं, लेकिन मुश्किल से ही सही हो रहा है तो इसमें हिस्सा लेने वाले छात्रों के चेहरे खिले हुए हैं. उन्हें लगता है कि अगर ये आयोजन नहीं होता तो वो छात्र जिंदगी का एक बेहद अहम मौका गंवा देते.
फर्स्ट ईयर साल में पढ़ने वाले अंकित शासक कहते हैं कि 'उन्होंने स्कूल में बहुत सुना था कि कॉलेज की ज़िंदगी बेहद खूबसूरत होती है, लेकिन अगर ये आयोजन नहीं होता तो सिर्फ सुना ही रह जाता. देख नहीं पाते कि कितना मज़ा आता है'.
थर्ड ईयर में पढ़ने वाली मानसी बाबरिया कहती हैं कि वो पिछले दो सालों से अपनी टीम को जीता नहीं पाती थीं. इस साल वो डांस में अपनी टीम को चैंपियन बनवाना चाहती हैं. अगर इस साल महोत्सव नहीं होता तो जीवन भर इसे कोसती कि उन्हें मौका नहीं मिला. छोटे औऱ मझौले उद्योगों के साथ-साथ कॉलेजों में होने वाले छोटे-छोटे आयोजनों पर नोटबंदी का असर दिखने लगा है.
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