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This Article is From Apr 02, 2015

वर्ल्‍ड ऑटिज्‍म डे : ज़रूरत है ऑटिज्‍म के पीड़ितों को दिल से स्वीकार करने की

कोलकाता : आज वर्ल्ड ऑटिज़्म डे है। यानी उन लोगों का दिन जिन्हें हम और आप कुछ अलग मानते हैं, लेकिन जो असल में हम-आप जैसे ही हैं- बेशक, अपनी तरह से। ऐसे लोगों को आप क़रीब से समझें और जानें, ये ज़रूरी है।



कोलकाता का रहने वाला 22 साल का अभिषेक सरकार बचपन से ही पेपर कटिंग्स कर ऐसी आकृतियां बनाता रहा है। साथ ही वो पेंटिंग भी करता है। फिलहाल कोलकाता में उसके काम की प्रदर्शनी चल रही है। पेटिंग्स देखकर कोई कह नहीं सकता कि अभिषेक को ऑटिज़्म है। अभिषेक की मां का कहना है कि ऐसे बच्चों को संवाद करने में दिक्कत होती है और कम्यूनिकेशन थैरेपी ज़रूरी है जो कि तस्वीरों और चीजों के ज़रिये हो सकती है।



ऑटिज़्म एक न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर है, जिसकी वजह से बच्चों को अपनी बात कहना और दूसरों को समझना मुश्किल हो जाता है। कई बार ये बीमारी काफी देरी से पहचान में आती है। इंद्राणी को तब पता चला, जब उनका बेटा नैनो तीन साल का हो गया। अचानक ज़िंदगी भारी लगने लगी। अब ये बेटा नैनो 22 साल का है।

इंद्राणी की तरह ही सुजाता बनर्जी और दिव्य शिखा वर्मा ने ऐक्शन फॉर ऑटिज़्म से जुड़ीं। इन्हें मालूम है कि अपने बच्चे के लिए सिर्फ ऑटिज़्म से ही नहीं, समाज की जकड़ी हुई मानसिकता से भी लड़ना होगा।



हमारे देश में ऐसे बच्चे एक करोड़ से ज़्यादा हैं। और दुनिया भर में हर 68वां आदमी इस समस्या से पीड़ित है। इसमें कोई शक नहीं कि ऑटिज्‍म एक चुनौती है, लेकिन ज़रूरत है ऑटिज्‍म के पीड़ितों को दिल से स्वीकार करने की। अगर इनका सही माहौल और सही देखभाल दी जाए तो इनकी ज़िंदगी की राह बेहद आसान हो जाएगी।

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