उसने पिता को ‘बेटी को खिला के क्या करोगे' की सलाह देने वालों को भी सुना और खुद ‘तू क्या सहवाग के साथ ओपन करेगी' जैसे ताने भी सुने, लेकिन इससे हरमनप्रीत कौर (HarmanPreet Kaur) का हौसला कम नहीं हुआ. आज उसका बल्ला हर सवाल का जवाब दे रहा है तथा उसकी तुलना किसी और से नहीं बल्कि उसके आदर्श क्रिकेटर रहे वीरेंद्र सहवाग से की जा रही है. वह 20 जुलाई 2017 का दिन था जब इंग्लैंड के डर्बी में आस्ट्रेलिया की मजबूत टीम के खिलाफ हरमनप्रीत के बल्ले की धमक पूरे क्रिकेट जगत ने सुनी थी. इसके ठीक 477 दिन बाद Women T20 World Cup में गयाना के प्रोविडेन्स में उनके बल्ले से एक और धमाकेदार पारी निकली है जिस पर पूरा विश्व क्रिकेट गौरवान्वित महसूस कर रहा है. इस उपलब्धि के साथ ही हरमनप्रीत टी-20 अंतरराष्ट्रीय में शतक जड़ने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर बन गई है.
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यह वही हरमनप्रीत है जिसे कभी हाकी की स्टिक थमायी गयी थी और जिसे क्रिकेट सीखने के लिये घर से 30 किमी दूर जाना पड़ता था. बालीबॉल और बास्केटबाल के खिलाड़ी रहे हरमंदर सिंह भुल्लर चाहते थे कि बेटी हाकी खिलाड़ी बने. लेकिन हरमनप्रीत को तो बस क्रिकेट खेलना था और इसकी नींव उसी दिन पड़ गयी थी जब हरमनप्रीत का जन्म हुआ था.
वह आठ मार्च का दिन था जिसे दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाती है. वर्ष था 1989. पंजाब के मोगा में रहने वाले हरमंदर सिंह के घर पहली संतान आने वाली थी. उनको लगा बेटा ही होगा और वह लड़कों की बड़ी शर्ट खरीद लाये. संयोग देखिये कि उस शर्ट पर एक बल्लेबाज का चित्र बना हुआ था जो "ड्राइव" कर रहा था. हरमनप्रीत उस शर्ट पर लिखे ‘गुड बैटिंग' यानि ‘अच्छी बल्लेबाजी' शब्दों को अब पूरी तरह से चरितार्थ करके दुनिया भर में अपनी बल्लेबाजी का लोहा मनवा रही है.
हरमनप्रीत के लिये यहां तक पहुंचने की राह आसान नहीं रही. यह अलग बात है कि पिता हरमंदर और मां सतविंदर कौर ने हमेशा बेटी का साथ दिया. जब पिता ने देखा कि बेटी हाथ में हाकी की स्टिक लेकर क्रिकेट खेल रही है तो उनको भी लगने लगा कि उनकी बेटी क्रिकेट के लिये ही बनी है. लेकिन मोगा में कोई क्रिकेट अकादमी नहीं थी. हरमनप्रीत अपने छोटे भाई गुरजिंदर भुल्लर और उनके दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलती थी. उस दौर में महिला क्रिकेट खास लोकप्रिय नहीं था और इसलिए अक्सर हरमनप्रीत को उसके भाई के दोस्त चिढ़ाते थे, ‘‘हमारे पास तो विकल्प (पुरूष क्रिकेट) है, तू क्या सहवाग के साथ ओपन करेगी.''
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हरमनप्रीत के क्रिकेट प्रेम को तब पंख लगे जब ज्ञान ज्योति स्कूल अकादमी के कोच कमलदीश सिंह सोढ़ी की नजर पर उन पर पड़ी. लेकिन घर से 30 किमी दूर बेटी को भेजना और उसका पूरा खर्च उठाना जिला अदालत में क्लर्क पद पर कार्यरत हरमंदर सिंह के लिये आसान नहीं था। सोढ़ी ने इसका भी हल निकाला. हरमनप्रीत के लिये मुफ्त कोचिंग और ठहरने की व्यवस्था करके. यही वजह है कि सोढ़ी को हरमनप्रीत अपना गॉडफादर मानती है.
और आखिर में सात मार्च 2009 को हरमनप्रीत को बल्लेबाजी आलराउंडर के रूप में भारतीय टीम की तरफ से पहला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का मौका मिल गया. ऑफ स्पिन करने वाली यह खिलाड़ी जल्द ही टी-20 टीम की सदस्य भी बन गयी लेकिन 2013 तक अपनी खास पहचान नहीं बना पायी. इंग्लैंड के खिलाफ मुंबई में 2013 में उन्होंने नाबाद 107 रन की पारी खेली जिसकी विरोधी टीम की कप्तान चार्लोट एडवर्ड्स ने भी तारीफ की थी.
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इसके बाद हरमनप्रीत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्हें बचपन से केवल सहवाग को बल्लेबाजी करते हुए देखना पसंद था. सहवाग की तरह उनका भी मूलमंत्र है ‘गेंद देखो और हिट करो' लेकिन 2016 में जब उन्होंने अजिंक्य रहाणे को नेट्स पर बल्लेबाजी करते हुए देखा तो तब लगा कि ‘बल्लेबाजी के लिये धैर्य' भी जरूरी है. हरमनप्रीत हालांकि अब भी सहवाग के मूलमंत्र पर ही चलती है. आस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे विश्व कप 2017 के सेमीफाइनल में खेली गयी नाबाद 171 रन की पारी हो या न्यूजीलैंड के खिलाफ विश्व टी-20 में खेली गयी 103 रन की पारी, हरमनप्रीत को देखकर लगता है कि उनका लक्ष्य गेंद को सीमा पार पहुंचाना ही होता है.
अपने विस्फोटक तेवरों के कारण ही वह आस्ट्रेलिया के बिग बैश लीग और इंग्लैंड की किया सुपर लीग में खेलने वाली पहली भारतीय क्रिकेटर बनी. अब वह भारत की टी-20 टीम की कप्तान हैं और यही आक्रामकता उसकी कप्तानी में दिखती है. पूर्व क्रिकेटर और अब सीओए सदस्य डायना एडुल्जी की पहल और सचिन तेंदुलकर की सिफारिश पर रेलवे में नौकरी पाने वाली हरमनप्रीत का पिछले दो वर्षों के दौरान विवादों से भी वास्ता पड़ा. महिला टीम के कोच तुषार अरोठे ने पद से हटाये जाने के बाद हरमनप्रीत पर निशाना साधा और पंजाब पुलिस में नौकरी मिलने पर उनकी डिग्री को जाली बताया गया लेकिन यह 29 वर्षीय क्रिकेटर सीख गयी है कि मैदान से इतर की चीजें उसका ध्यान भंग नहीं कर सकती हैं.
(इनपुट-भाषा)
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