25 वर्षीय पायल 12वीं करने के बाद से ही बच्चों को पढ़ा रही हैं. तस्वीर: प्रतीकात्मक
रायपुर:
बच्चों की पढ़ाई में लापरवाही बरतने वाले शिक्षकों और अभिभावकों के सामने छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की बेटी ने मिसाल पेश की है. मुफ्त में बच्चों को पढ़ाने वाली पायल शर्मा केवल इसलिए शादी के अगले दिन ससुराल से लौट आई, क्योंकि उसे बच्चों की परीक्षा की तैयारी करनी थी. इस कहानी में एक और अच्छी बात यह है कि पायल के इस फैसले में उसके ससुराल वाले साथ खड़े हैं. पायल और उसके ससुराल वालों की इस सोच की पूरे इलाके में चर्चा हो रही है.
बिना पैसे लिए बच्चों को पढ़ाती है पायल
दुर्ग जिले के पुलगांव की रहने वाली पायल को बचपन से ही बच्चों को पढ़ाने का शौक था. उसके पिता विनोद ने बताया कि 12वीं करने के बाद ही पायल ने गांव के बच्चों और महिलाओं को घर पर पढ़ाना शुरू कर दिया था. वह इसके एवज में उनसे कोई पैसे नहीं लेती है. उसी दौरान पायल को पता चला कि गांव के स्कूल में गणित और कॉमर्स के शिक्षक नहीं हैं. पायल ने वहां की प्रिंसिपल ज्योत्सना चंद्रवंशी से बात की तो उन्होंने उसे पढ़ाने की इजाजत दे दी.
2010 से पायल बिना कोई पैसे लिए इस स्कूल के बच्चों को गणित और कॉमर्स पढ़ा रही हैं. वह 9वीं से 12वीं तक के बच्चों को पढ़ाती हैं. पिता विनोद ने बताया कि हाल ही में स्कूल प्रशासन ने पायल को पढ़ाने से मना कर दिया था. छात्र-छात्राओं की मांग पर वर्तमान प्रिंसिपल पुष्पा रानी ठाकुर को झुकना पड़ा और पायल स्कूल से जुड़ी रहीं.
हल्दी चढ़ने के बाद भी जाती रही स्कूल
घर में जब पायल की शादी की तैयारी चल रही थी तो वह रस्मों से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देती रहीं. रस्म के मुताबिक लड़की को शादी की हल्दी लग जाने के बाद वह घर से बाहर नहीं निकलती हैं. पायल ने इन बातों को दरकिनार कर स्कूल जाकर बच्चों को पढ़ाना जारी रखा.
पांच फरवरी को शादी होने के बाद पायल को ससुराल में रस्में निभानी थी. पायल ने ससुराल वालों को बताया कि राज्य में 9वीं और 11वीं की वार्षिक परीक्षाएं शुरू होने वाली है. 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं तो पिछले सप्ताह से ही शुरू हैं. ऐसे में वह अपने स्कूल के बच्चों की परीक्षा की तैयारी बीच में नहीं छोड़ सकती. सुसर हरीशचंद्र को बहू पायल की ये बात काफी अच्छी लगी. उन्होंने तुरंत उसे मायके लौटने की इजाजत दे दी.
हरीशचंद्र कहते हैं कि उन्हें अपनी बहू पर गर्व है. वे कहते हैं कि समाज में शिक्षा की अलख जगाने के लिए उनकी बहू की तरह के शिक्षकों की जरूरत है.
बिना पैसे लिए बच्चों को पढ़ाती है पायल
दुर्ग जिले के पुलगांव की रहने वाली पायल को बचपन से ही बच्चों को पढ़ाने का शौक था. उसके पिता विनोद ने बताया कि 12वीं करने के बाद ही पायल ने गांव के बच्चों और महिलाओं को घर पर पढ़ाना शुरू कर दिया था. वह इसके एवज में उनसे कोई पैसे नहीं लेती है. उसी दौरान पायल को पता चला कि गांव के स्कूल में गणित और कॉमर्स के शिक्षक नहीं हैं. पायल ने वहां की प्रिंसिपल ज्योत्सना चंद्रवंशी से बात की तो उन्होंने उसे पढ़ाने की इजाजत दे दी.
2010 से पायल बिना कोई पैसे लिए इस स्कूल के बच्चों को गणित और कॉमर्स पढ़ा रही हैं. वह 9वीं से 12वीं तक के बच्चों को पढ़ाती हैं. पिता विनोद ने बताया कि हाल ही में स्कूल प्रशासन ने पायल को पढ़ाने से मना कर दिया था. छात्र-छात्राओं की मांग पर वर्तमान प्रिंसिपल पुष्पा रानी ठाकुर को झुकना पड़ा और पायल स्कूल से जुड़ी रहीं.
हल्दी चढ़ने के बाद भी जाती रही स्कूल
घर में जब पायल की शादी की तैयारी चल रही थी तो वह रस्मों से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देती रहीं. रस्म के मुताबिक लड़की को शादी की हल्दी लग जाने के बाद वह घर से बाहर नहीं निकलती हैं. पायल ने इन बातों को दरकिनार कर स्कूल जाकर बच्चों को पढ़ाना जारी रखा.
पांच फरवरी को शादी होने के बाद पायल को ससुराल में रस्में निभानी थी. पायल ने ससुराल वालों को बताया कि राज्य में 9वीं और 11वीं की वार्षिक परीक्षाएं शुरू होने वाली है. 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं तो पिछले सप्ताह से ही शुरू हैं. ऐसे में वह अपने स्कूल के बच्चों की परीक्षा की तैयारी बीच में नहीं छोड़ सकती. सुसर हरीशचंद्र को बहू पायल की ये बात काफी अच्छी लगी. उन्होंने तुरंत उसे मायके लौटने की इजाजत दे दी.
हरीशचंद्र कहते हैं कि उन्हें अपनी बहू पर गर्व है. वे कहते हैं कि समाज में शिक्षा की अलख जगाने के लिए उनकी बहू की तरह के शिक्षकों की जरूरत है.
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