यह ख़बर 11 जून, 2014 को प्रकाशित हुई थी

जब कोसीजिन ने लालबहादुर शास्त्री को कहा ‘सुपर कम्युनिस्ट’

नई दिल्ली:

दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 1966 में ताशकंद के दौरे के दौरान अपने तत्कालीन सोवियत संघ के समकक्ष एलेक्सी कोसीजिन से तोहफे में मिले कोट को अपने एक कर्मचारी को दे दिया था, जिसपर एलेक्सी ने उन्हें ‘सुपर कम्युनिस्ट’ कहा था। इसी दौरे के दौरान शास्त्रीजी का निधन हो गया था।

भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री के बारे में इस तरह के कई वाकयों का जिक्र उनके बेटे और सह-लेखक अनिल शास्त्री और लेखक पवन चौधरी ने किताब ‘लाल बहादुर शस्त्री : लेसंस इन लीडरशिप’ में किया है।

किताब में कहा गया है कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान से जिस दिन शास्त्री 3 जनवरी 1966 को भेंट करने वाले थे उस दिन कड़ाके की ठंड थी और वह उस दिन भी अपना खादी ऊन का कोट ही पहने हुए थे।

किताब के मुताबिक, कोसीजिन को लगा कि जो कोट शास्त्री पहने हुए हैं वह मध्य एशिया में इस बर्फीले सर्द मौसम के लिए उतना गर्म नहीं है और वह उन्हें एक रूसी ओवरकोट देना चाहते थे पर उधेड़बुन में थे कि किस तरह उन्हें इसकी पेशकश करें।

लेखकों का कहना है, आखिरकार एक समारोह में यह उम्मीद करते हुए कोसीजिन ने प्रधानमंत्री को तोहफे के तौर पर रूसी कोट भेंट किया कि वह ताशकंद में इसे पहनेंगे। अगली सुबह उन्होंने देखा कि शास्त्रीजी अभी भी खादी उन का कोट ही पहने हुए हैं, जो वह दिल्ली से लाए हुए थे। हिचकिचाते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री से पूछा कि जो कोट उन्हें भेंट दिया गया क्या वह उन्हें पसंद आया। उन्होंने लिखा है, शास्त्रीजी ने हां में जवाब देते हुए कहा वाकई यह काफी गर्म और मेरे लिए काफी आरामदेह है। हालांकि, मैंने उसे अपने एक कर्मचारी को दे दिया है, जो इस कंपकंपाती ठंड में पहनने के लिए बढ़िया ऊनी कोट नहीं लाए थे। ठंडे देशों की अपनी यात्राओं के दौरान मैं जरूर आपकी भेंट का इस्तेमाल करूंगा।

कोसीजिन ने शास्त्री और खान के सम्मान में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान इस वाकये का जिक्र किया। उन्होंने कहा, हम कम्युनिस्ट हैं पर प्रधानमंत्री शास्त्री सुपर कम्युनिस्ट हैं। विजडम विलेज पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में शास्त्रीजी के बचपन, युवावस्था से लेकर राजनीतिक जीवन तक की कई रोचक कहानियां हैं। हर वाकये का जिक्र उनके बेटे अनिल ने किया है। ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ शीषर्क वाले अध्याय में लेखकों ने उल्लेख किया है कि शास्त्रीजी जब गृहमंत्री थे उस दौरान उनके बेटे नई दिल्ली में सेंट कोलंबिया स्कूल में पढ़ते थे। एक दिन बेटों ने अपने पिता से शिकायत की कि सरकारी अधिकारियों के बच्चे कार से आते हैं, जबकि वे तांगे से स्कूल जाते हैं।

शास्त्रीजी ने उनसे कहा कि कार से स्कूल पहुंचाने की सुविधा उन्हें तब तक ही मिल सकेगी जब तक वह गृहमंत्री रहेंगे और बाद के दिनों में फिर से तांगा पर जाने में उन्हें बुरा लगेगा। बच्चों को अपने पिता के सिद्धांत का अहसास हुआ और उन्होंने तांगा से ही जाने का निर्णय किया। किताब में उन पहलुओं का भी जिक्र है कि 1965 के युद्ध जैसे संकट के समय में शास्त्री प्रशासन और राजनीति के मुद्दों से कैसे निपटे।

एक अन्य अध्याय में अनिल ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि टीटीके नाम से मशहूर तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी के इस्तीफे से उनके पिता कैसे निपटे थे।

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उन्होंने लिखा है, मुझे याद है कि मेरे पिता ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष कामराज से टेलीफोन पर बात की जो उस समय चेन्नई में थे और उन्हें बताया कि उन्होंने टीटीके का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और सचींद्र चौधरी को नया वित्त मंत्री नियुक्त किया है। मेरे निकट संबंधी कौशल कुमार उस कमरे में मौजूद थे और अचरज में पड़ गए कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष शास्त्रीजी से इस बात के लिए नाराज होंगे कि ऐसा निर्णय से पहले उनसे विचार-विमर्श क्यों नहीं किया गया। शास्त्रीजी ने उनसे नम्रता और दृढता से कहा, प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है कि कैबिनेट में किसे रखा जाना चाहिए और किसे नहीं और वह अपना विशेषाधिकार किसी तरह से गंवाना नहीं चाहते। पंडित नेहरू ने मुझे प्रधानमंत्री पद का अधिकार और शक्तियां दी हैं, जिन्हें मैं कम नहीं होने दूंगा।