बुलंदशहर के कसेरकलां गांव निवासी सेवानिवृत्त पोस्टमास्टर कादरी ने भी अपनी बीवी की याद में ‘ताजमहल’ का ढांचा बनवाया है. तस्वीर: पोस्टमास्टर कादरी की है.
भागलपुर:
वैलेंटाइन वीक में मुगल बादशाह शाहजहां और मुमताज की मोहब्बत के बारे में सभी याद करते हैं, लेकिन बिहार के भागलपुर का एक ऐसा ही किस्सा शायद ही आप जानते होंगे. यहां के डॉक्टर नजीर आलम अपनी बेगम हुस्न बानों से बेइंतहा मोहब्बत की मिसाल पेश कर रहे हैं. डॉक्टर नजीर ने जीवन भर की कमाई से घर के सामने बेगम का मकबरा बनवाया है. साथ ही इस मकबरे के बगल में खुद को दफन करने के लिए भी जगह छोड़ दी है. वे कहते हैं यही जगह उनकी लव स्टोरी का ताजमहल कहलाएगा.
दुनिया से पहले रुखस्त हो गईं बेगम
पेशे से होम्योपैथी डॉक्टर नजीर आलम बताते हैं कि करीब 57 साल पहले उनका निकाह हुस्न बानों से हुआ था. वे कहते हैं, 'हुस्न बानों में अलग ही बात थी, निकाह के अगले दिन से ही वह मुझे बखूबी समझने लगी थी.' शुरुआती दिनों में नजीर आलम को होम्योपैथी की प्रैक्टिस में खास कमाई नहीं होती थी. इसके बाद भी हुस्न बानो ने उनसे पैसे को लेकर कभी कोई बात नहीं करतीं. जब कभी डॉक्टर साहब खर्च को लेकर परेशान होते तो उनकी बेगम उन्हें इस तरह से समझाती की वे सारी टेंशन भूल जाते.
ये भी पढ़ें: आखिरकार सरकारी सहायता से पूरा होगा ‘ताजमहल’ का ख्वाब पाले बुजुर्ग का सपना
हज के दौरान मकबरा बनाने का किया वादा
डॉक्टर नजीर आलम चार साल पहले बेगम के साथ हज पर गए थे. वहां दोनों ने एक दूसरे को वचन दिया कि उनमें से जिसकी भी पहले मौत होगी वह अपने घर के आगे मकबरा बनवाएगा. साल 2015 में हुस्न बानो इस दुनिया से चल बसीं. नजीर साहब इस सदमें से काफी आहत हुए. हालांकि दुख की इस घड़ी में भी बेगम से किया वादा नहीं भूले और घर के आगे मकबरा बनाने का फैसला लिया.
मकबरे में लगा दी जिंदगी भर की कमाई
डॉक्टर नजीर ने बताया कि उनके पास जितनी भी जमा पूंजी थी, उसे उन्होंने मकबरे के निर्माण में लगा दिया. करीब 35 लाख रुपए से हुस्न बानो का मकबरा बनकर तैयार हो गया है, लेकिन इससे डॉक्टर नजीर की आर्थिक हालत बेहद खराब हो गई है. नजीर ने बताया कि पत्नी की याद में मकबरा बनाने के बाद अब 18 मार्च 2017 को मदरसे की शुरुआत की जाएगी. मदरसे में सिर्फ लड़कियों की पढ़ाई होगी. पढ़ाई डिजिटल तरीके से कराई जाएगी.
उम्र के इस पड़ाव में वे डॉक्टरी की प्रैक्टिस नहीं कर पाते हैं. हालांकि उन्होंने बच्चों की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी है. तीन बेटे और तीन बेटियों ने बैचलर इन होम्यो मेडिकल एंड सर्जरी (BMHS) की डिग्री हासिल कर ली है. बाकी दो बेटों की पढ़ाई ग्रेजुएशन तक ही पूरी हो पाई, इसलिए उनके लिए नजीर ने कारोबार शुरू करवा दिया.
उन्होंने बेटों से कह दिया है कि उनके पास अब कोई जमा पैसे नहीं हैं. वे कहते हैं कि जब शाम को मकबरे पर रोशनी होती है तो वे इसे देखकर सुख का अनुभव करते हैं. अब वे बस उस दिन के इंतजार में हैं जब उनकी मौत होगी और वे बेगम के बगल में दफनाए जाएंगे.
यूपी में भी हैं आज के 'शाहजहां'
बुलंदशहर के कसेरकलां गांव निवासी सेवानिवृत्त पोस्टमास्टर कादरी ने अपनी बीवी की याद में ‘ताजमहल’ का ढांचा बनवाया है, जिसके निर्माण में वह सेवानिवृत्ति के बाद मिली पूरी धनराशि के साथ-साथ जमीन बेचने से मिली रकम भी लगा चुके हैं.
कुल मिलाकर मुहब्बत के इस मुजस्सिमे पर अब तक लगभग 17 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन उसे अंतिम रूप दिया जाना अभी बाकी है. कादरी के पास अब यह काम करा पाने के लिये रकम भी नहीं है. कादरी ने अपने गांव में बालिकाओं के लिये हाईस्कूल स्तर के एक विद्यालय की स्थापना का अनुरोध भी किया था.
दुनिया से पहले रुखस्त हो गईं बेगम
पेशे से होम्योपैथी डॉक्टर नजीर आलम बताते हैं कि करीब 57 साल पहले उनका निकाह हुस्न बानों से हुआ था. वे कहते हैं, 'हुस्न बानों में अलग ही बात थी, निकाह के अगले दिन से ही वह मुझे बखूबी समझने लगी थी.' शुरुआती दिनों में नजीर आलम को होम्योपैथी की प्रैक्टिस में खास कमाई नहीं होती थी. इसके बाद भी हुस्न बानो ने उनसे पैसे को लेकर कभी कोई बात नहीं करतीं. जब कभी डॉक्टर साहब खर्च को लेकर परेशान होते तो उनकी बेगम उन्हें इस तरह से समझाती की वे सारी टेंशन भूल जाते.
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हज के दौरान मकबरा बनाने का किया वादा
डॉक्टर नजीर आलम चार साल पहले बेगम के साथ हज पर गए थे. वहां दोनों ने एक दूसरे को वचन दिया कि उनमें से जिसकी भी पहले मौत होगी वह अपने घर के आगे मकबरा बनवाएगा. साल 2015 में हुस्न बानो इस दुनिया से चल बसीं. नजीर साहब इस सदमें से काफी आहत हुए. हालांकि दुख की इस घड़ी में भी बेगम से किया वादा नहीं भूले और घर के आगे मकबरा बनाने का फैसला लिया.
मकबरे में लगा दी जिंदगी भर की कमाई
डॉक्टर नजीर ने बताया कि उनके पास जितनी भी जमा पूंजी थी, उसे उन्होंने मकबरे के निर्माण में लगा दिया. करीब 35 लाख रुपए से हुस्न बानो का मकबरा बनकर तैयार हो गया है, लेकिन इससे डॉक्टर नजीर की आर्थिक हालत बेहद खराब हो गई है. नजीर ने बताया कि पत्नी की याद में मकबरा बनाने के बाद अब 18 मार्च 2017 को मदरसे की शुरुआत की जाएगी. मदरसे में सिर्फ लड़कियों की पढ़ाई होगी. पढ़ाई डिजिटल तरीके से कराई जाएगी.
उम्र के इस पड़ाव में वे डॉक्टरी की प्रैक्टिस नहीं कर पाते हैं. हालांकि उन्होंने बच्चों की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी है. तीन बेटे और तीन बेटियों ने बैचलर इन होम्यो मेडिकल एंड सर्जरी (BMHS) की डिग्री हासिल कर ली है. बाकी दो बेटों की पढ़ाई ग्रेजुएशन तक ही पूरी हो पाई, इसलिए उनके लिए नजीर ने कारोबार शुरू करवा दिया.
उन्होंने बेटों से कह दिया है कि उनके पास अब कोई जमा पैसे नहीं हैं. वे कहते हैं कि जब शाम को मकबरे पर रोशनी होती है तो वे इसे देखकर सुख का अनुभव करते हैं. अब वे बस उस दिन के इंतजार में हैं जब उनकी मौत होगी और वे बेगम के बगल में दफनाए जाएंगे.
यूपी में भी हैं आज के 'शाहजहां'
बुलंदशहर के कसेरकलां गांव निवासी सेवानिवृत्त पोस्टमास्टर कादरी ने अपनी बीवी की याद में ‘ताजमहल’ का ढांचा बनवाया है, जिसके निर्माण में वह सेवानिवृत्ति के बाद मिली पूरी धनराशि के साथ-साथ जमीन बेचने से मिली रकम भी लगा चुके हैं.
कुल मिलाकर मुहब्बत के इस मुजस्सिमे पर अब तक लगभग 17 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन उसे अंतिम रूप दिया जाना अभी बाकी है. कादरी के पास अब यह काम करा पाने के लिये रकम भी नहीं है. कादरी ने अपने गांव में बालिकाओं के लिये हाईस्कूल स्तर के एक विद्यालय की स्थापना का अनुरोध भी किया था.
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