तस्वीर में बाएं मानबी बंदोपाध्याय
कोलकाता:
मानबी बंधोपाध्याय। यह नाम है देश की पहली ट्रांसजेंडर का, जिन्हें कॉलेज को प्रिंसिपल बनाया जा रहा है। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के एक महिला कॉलेज में प्रिंसिपल का पद संभालने जा रही मानबी ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए जो कुछ सहा, जो कुछ किया, चलिए आइए आज हम उनके संघर्ष की दास्तां आपसे शेयर करें, ताकि जीवन में चुनौतियों से जूझते समय आप भी बिखरें या डूबें नहीं।
कहती हैं मानबी, न जानें कितनी यातनाएं सहने के बाद अब मैं सम्मानजनक मुकाम पर पहुंच गई हूं। इस मुकाम तक आने के लिए मैंने तकलीफों के पहाड़ को पार किया है। मानबी बंधोपाध्याय 9 जून को प्रिंसिपल का पद संभालेंगी। इस समय वह विवेकानंद सतोवार्षिकी महाविद्यालय में बांग्ला की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। कॉलेज का प्रिंसिपल बनाए जाने का फैसला कॉलेज सर्विस कमिशन ने लिया है।
'मेरे साथ आखिर गड़बड़ क्या है.. ?'
वह कहती हैं कि एक ऐसा वक्त था जब वह खुद से पूछती थीं कि आखिर मेरे साथ गड़बड़ क्या है... मेरे शरीर का कतरा कतरा क्यों चिल्ला चिल्ला कर कहता है कि मैं एक महिला हूं।
पिता होते थे नाराज... बहनें देती थीं साथ
मानबी से पहले उनका नाम सोमनाथ था। घर में दो बहनें थीं और वह हमेशा खुद को लड़का ही महसूस करतीं। वह बताती हैं कि उन्हें लड़की होने का फील बचपन से ही आता था। घर में पिता को उनकी गतिविधियां बुरी लगतीं। वह चाहती थीं कि पढ़ें भी, और डांस क्लास सभी करें। जब पिता डपटते तब उनका साथ देतीं उनकी बहनें।
मिलीं साइकाइट्रिस्ट से..
मानबी को हमेशा ही लड़कियों से ज्यादा लडके आकर्षित करते और यह उन्हें खुद भी अजीब लगता। फिर वह खुद ही जाकर साइकाइट्रिस्ट से मिलीं। डॉक्टर ने उन्हें कहा कि अगर वह इस फीलिंग को ज्यादा समय तक कायम रखेंगी तो उन्हें आत्महत्या करनी पड़ सकती है।
2003 में करवाया जेंडर चेंज.. और मुश्किलों का दौर शुरू हुआ
मानबी ने 2003 में अपना जेंडर चेंज करवा लिया। लगभग पांच लाख रुपए के ऑपरेशन के बाद उन्होंने अपना नाम मानबी रख लिया जिसका बंगाली भाषा में मतलब होता है महिला। जेंडर चेंज करवाने के बाद उन्हें मारा-पीटा गया, रेप भी किया गया और उनके अपार्टमेंट को आग तक लगा दी गई। 1995 में उन्होंने ट्रांसजेंडरों के लिए पहली मैगजीन 'ओब-मानब' निकाली थी जिसका हिन्दी मतलब हुआ- उप मानव है।
पढ़ाई की पूरी..
मानबी ने हिम्मत नहीं हारी और पीएचडी पूरी कर ली। पोस्टिंग के दौरान उन्हें जबरदस्ती मेल रजिस्टर पर साइन करने के लिए बाध्य किया जाता। लोग किराए पर मकान नहीं देते। फिर उन्होंने एंडलेस बॉन्डेज नामक उपन्यास लिखा।
और, इस तरह आगे बढ़ने का जो रास्ता शुरू हुआ वह कॉन्फिडेंस के सहारे आगे बढ़ता ही गया। शायद यही वजह है कि आज वह महिला कॉलेज के प्रिंसिपल पद पर जाने वाली पहली ट्रांसजेंडर महिला हैं।
कहती हैं मानबी, न जानें कितनी यातनाएं सहने के बाद अब मैं सम्मानजनक मुकाम पर पहुंच गई हूं। इस मुकाम तक आने के लिए मैंने तकलीफों के पहाड़ को पार किया है। मानबी बंधोपाध्याय 9 जून को प्रिंसिपल का पद संभालेंगी। इस समय वह विवेकानंद सतोवार्षिकी महाविद्यालय में बांग्ला की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। कॉलेज का प्रिंसिपल बनाए जाने का फैसला कॉलेज सर्विस कमिशन ने लिया है।
'मेरे साथ आखिर गड़बड़ क्या है.. ?'
वह कहती हैं कि एक ऐसा वक्त था जब वह खुद से पूछती थीं कि आखिर मेरे साथ गड़बड़ क्या है... मेरे शरीर का कतरा कतरा क्यों चिल्ला चिल्ला कर कहता है कि मैं एक महिला हूं।
पिता होते थे नाराज... बहनें देती थीं साथ
मानबी से पहले उनका नाम सोमनाथ था। घर में दो बहनें थीं और वह हमेशा खुद को लड़का ही महसूस करतीं। वह बताती हैं कि उन्हें लड़की होने का फील बचपन से ही आता था। घर में पिता को उनकी गतिविधियां बुरी लगतीं। वह चाहती थीं कि पढ़ें भी, और डांस क्लास सभी करें। जब पिता डपटते तब उनका साथ देतीं उनकी बहनें।
मिलीं साइकाइट्रिस्ट से..
मानबी को हमेशा ही लड़कियों से ज्यादा लडके आकर्षित करते और यह उन्हें खुद भी अजीब लगता। फिर वह खुद ही जाकर साइकाइट्रिस्ट से मिलीं। डॉक्टर ने उन्हें कहा कि अगर वह इस फीलिंग को ज्यादा समय तक कायम रखेंगी तो उन्हें आत्महत्या करनी पड़ सकती है।
2003 में करवाया जेंडर चेंज.. और मुश्किलों का दौर शुरू हुआ
मानबी ने 2003 में अपना जेंडर चेंज करवा लिया। लगभग पांच लाख रुपए के ऑपरेशन के बाद उन्होंने अपना नाम मानबी रख लिया जिसका बंगाली भाषा में मतलब होता है महिला। जेंडर चेंज करवाने के बाद उन्हें मारा-पीटा गया, रेप भी किया गया और उनके अपार्टमेंट को आग तक लगा दी गई। 1995 में उन्होंने ट्रांसजेंडरों के लिए पहली मैगजीन 'ओब-मानब' निकाली थी जिसका हिन्दी मतलब हुआ- उप मानव है।
पढ़ाई की पूरी..
मानबी ने हिम्मत नहीं हारी और पीएचडी पूरी कर ली। पोस्टिंग के दौरान उन्हें जबरदस्ती मेल रजिस्टर पर साइन करने के लिए बाध्य किया जाता। लोग किराए पर मकान नहीं देते। फिर उन्होंने एंडलेस बॉन्डेज नामक उपन्यास लिखा।
और, इस तरह आगे बढ़ने का जो रास्ता शुरू हुआ वह कॉन्फिडेंस के सहारे आगे बढ़ता ही गया। शायद यही वजह है कि आज वह महिला कॉलेज के प्रिंसिपल पद पर जाने वाली पहली ट्रांसजेंडर महिला हैं।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं