उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में इन दिनों एक अजीब लेकिन दिलचस्प नजारा देखने को मिल रहा है. कई इलाकों में घरों के बाहर लाल रंग के पानी से भरी प्लास्टिक बोतलें लटकी हुई नजर आ रही हैं. सोशल मीडिया पर इसका वीडियो वायरल होते ही लोगों में हड़कंप मच गया है. कोई इसे कुत्तों को भगाने का देसी जुगाड़ बता रहा है, तो कोई इसे सीधा-सीधा टोटका कह रहा है.
किन इलाकों में दिखीं लाल बोतलें
कानपुर के किदवई नगर, जूही, कोयला नगर, मंगला बिहार, बर्रा, विश्वबैंक, स्वरूप नगर, कर्नलगंज समेत कई रिहायशी इलाकों में लोग अपने घरों के बाहर लाल पानी से भरी बोतलें टांगते या रखते दिख रहे हैं. देखते ही देखते यह तरीका पूरे मोहल्लों में फैल गया है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह उपाय आवारा कुत्तों को घर के सामने मल-मूत्र करने से रोकता है. एक निवासी ने बताया, रोज सुबह कुत्तों की गंदगी से जूझना पड़ता था. पड़ोसी ने लाल रंग मिलाकर बोतल टांगने की सलाह दी. ट्राई किया तो काफी फर्क दिखा. इसी वजह से लोग इसे सस्ता, आसान और बिना नुकसान वाला उपाय मानकर तेजी से अपना रहे हैं.
देखें Video:
कानपुर में ये सब क्या हो रहा है? pic.twitter.com/be6id5QHfW
— आजाद भारत का आजाद नागरिक (@AnathNagrik) December 16, 2025
सिर्फ कानपुर नहीं, इन शहरों में भी दिखा ट्रेंड
यह चलन केवल कानपुर तक सीमित नहीं है. मध्य प्रदेश के सागर, इंदौर, महाराष्ट्र के पुणे, पश्चिम बंगाल के कोलकाता, यूपी के वाराणसी और गुजरात के राजकोट में भी लोग लाल, नीले या बैंगनी रंग की बोतलें टांगते नजर आए हैं. कुछ जगहों पर लोग बोतल में नील (ब्लूइंग पाउडर) या फूड कलर भी मिलाते हैं.
क्या सच में डर जाते हैं कुत्ते?
लोगों का दावा है कि धूप में बोतल से निकलने वाली रंगीन चमक या नील की गंध कुत्तों को डराती है. लेकिन पशु चिकित्सकों और विशेषज्ञों की राय इससे अलग है. विशेषज्ञों के अनुसार, कुत्ते लाल रंग को ठीक से देख ही नहीं पाते. उन्हें लाल रंग भूरा या ग्रे शेड में दिखता है. उनकी दृष्टि मुख्य रूप से नीले और पीले रंगों पर आधारित होती है.
पशु चिकित्सकों का कहना है कि यह उपाय वैज्ञानिक रूप से साबित नहीं है. कई बार यह सिर्फ मनोवैज्ञानिक प्रभाव (प्लेसिबो इफेक्ट) होता है, जिससे लोगों को लगता है कि उपाय काम कर रहा है.
कानपुर में स्ट्रीट डॉग्स की असली समस्या
कानपुर में आवारा कुत्तों की संख्या करीब 1.30 लाख बताई जा रही है. डॉग बाइट के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. नगर निगम द्वारा स्टेरलाइजेशन, वैक्सीनेशन, डॉग फीडिंग सेंटर जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर समस्या अब भी बरकरार है.
जब तक प्रशासन की ओर से ठोस समाधान नहीं आता, तब तक लोग लाल बोतल जैसे देसी उपायों पर भरोसा करते रहेंगे. यह टोटका है या सिर्फ संयोग इस पर बहस जारी है, लेकिन इतना तय है कि कानपुर की गलियों में लाल बोतलें अब एक आम नजारा बन चुकी हैं.
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