असम के बालाजी जिले में रहने वाले एक शिक्षक का जीवन अपने आप में एक ऐसी मिसाल है कि कैसे छोड़े हुए बच्चों की मदद करने के उनके मिशन ने बहुत से दिव्यांग बच्चों की जिंदगियों को बेहतर बनाने का काम किया है.इस साल के राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए चयनित कुमुद कलिता को शुरू में पड़ोसियों ने पागल कहा लेकिन इन बच्चों को घर व शिक्षा देने के उनके मिशन को आज समाज के अलग-अलग वर्गों द्वारा सराहा जा रहा है.
Met our nation's exemplary educators who have been honoured with the National Teachers' Awards. Their dedication to shaping young minds and their unwavering commitment to excellence in education is very inspiring. In their classrooms, they are scripting a brighter future for… pic.twitter.com/49zWk5eA29
— Narendra Modi (@narendramodi) September 4, 2023
पाठशाला उच्च माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक 59 वर्षीय कलिता विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए अनाथालय और देखभाल केंद्र चलाते हैं, जिसका नाम 'तपोबन' है.कलिता द्वारा दान की गई जमीन पर बने इस सेंटर में उनकी जीवन भर की कमाई लगी हुई है, जिसमें करीब 25 बच्चे रहते हैं और पास के इलाकों से विभिन्न अक्षमता वाले लगभग 90 अन्य बच्चे डे केयर सुविधा प्राप्त करते हैं.
Teachers play a key role in building our future and inspiring dreams. On #TeachersDay, we salute them for their unwavering dedication and great impact. Tributes to Dr. S. Radhakrishnan on his birth anniversary.
— Narendra Modi (@narendramodi) September 5, 2023
Here are highlights from the interaction with teachers yesterday… pic.twitter.com/F1Zmk4SSnf
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से पुरस्कार प्राप्त करने वाले कलिता ने नयी दिल्ली से फोन पर ‘पीटीआई-भाषा' को बताया, ''जब मैंने 'तपोबन' को बनाने की ठानी थी तो बहुत से लोगों ने पागल कहकर मेरा मजाक उड़ाया था. लेकिन अब मुझे हर वर्ग से मदद से मिल रही है. हमारे पास संरक्षक हैं, जो नियमित रूप से यहां आते हैं और हमारी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं.''
कलिता के दिमाग में परित्यक्त और विशेष जरूरतों वाले अनाथ बच्चों की मदद का विचार गुवाहाटी विश्वविद्यालय में अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान आया था और उसी दौरान वे ऐसे बच्चों की मदद करने वाले संगठन के संपर्क में आए.
उन्होंने कहा, ''लोग शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों की मदद तो करना चाहते हैं लेकिन उन्हें अपनाने से कतराते हैं. इललिए मैंने उनके लिए अपनी तरफ से कुछ करने का प्रयास किया.''
कलिता और उनकी पत्नी ने पहले बच्चे के रूप में मस्तिष्क पक्षाघात से पीड़ित दो साल की बच्ची को अपनाया था, जिसे 2009 में गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर की सीढ़ियों पर कोई छोड़ गया था.
कलिता ने कहा कि तपोबन से 13 बच्चों को वैध रूप से विभिन्न लोगों द्वारा गोद लिया गया है, जिसमें से एक बच्चे को उसके गोद लेने वाले परिजन अपने साथ यूरोप ले गए हैं.
संस्थान से जुड़े स्थानीय निवासी हिरेन कलिता ने बताया, ''तपोबन में रहकर पढ़ाई कर रहे बच्चे पिछले कुछ वर्षों से मैट्रिक परीक्षाओं में शामिल हो रहे हैं. उनमें से कुछ ने सफलतापूर्वक परीक्षाओं को उत्तीर्ण भी किया है.''
उन्होंने कहा, ''इलाके के नागरिक होने के नाते हमें कलिता जो भी कर रहे हैं उस पर गर्व हैं और हम भी अपनी ओर से सहयोग दे रहे हैं.''
तपोबन में सभी प्रकार की देखभाल की जाती है, जिसमें शुरुआती हस्तक्षेप, फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, ब्रेल शिक्षा और संगीत व योग में प्रशिक्षण शामिल है.
कलिता को अलग-अलग पुरस्कार के रूप में काफी प्रशंसा भी मिली है, जिसमें असम के मुख्यमंत्री की ओर से बेस्ट कम्युनिटी एक्शन अवार्ड, रोटरी वोकेशनल एक्सिलेंस अवार्ड, सुशिब्रत रॉयचौधरी मेमोरियल पुरस्कार, राज्य स्तरीय सर्वश्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा चिल्ड्रन चैंपियन पुरस्कार शामिल हैं.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं