चांद पर मिला सल्फर, क्या वहां पर जीवन संभव है? ISRO गुत्थी सुलझाने का प्रयास कर रहा है

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘प्रज्ञान’ रोवर पर लगे ‘अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोप’ (एपीएक्सएस) उपकरण ने भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में गंधक और कुछ अन्य तत्वों की मौजूदगी की पुष्टि की है.

चांद पर मिला सल्फर, क्या वहां पर जीवन संभव है? ISRO गुत्थी सुलझाने का प्रयास कर रहा है

अभी तक जो केवल सैद्धांतिक रूप से ज्ञात था उसकी अब दो बार पुष्टि हो चुकी है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘चंद्रयान-3' मिशन ने परीक्षणों के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में गंधक (सल्फर) की मौजूदगी को प्रमाणित किया है. यह ऐसी पहली ऐतिहासिक खोज है जो चंद्रमा की उत्पत्ति का सुराग दे सकती है और अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए भी इसका गहरा महत्व है.

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘प्रज्ञान' रोवर पर लगे ‘अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोप' (एपीएक्सएस) उपकरण ने भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में गंधक और कुछ अन्य तत्वों की मौजूदगी की पुष्टि की है. इससे पहले, मंगलवार को इसरो ने घोषणा की थी कि ‘लेजर-इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस) उपकरण ने चांद के संबंधित क्षेत्र में गंधक और अन्य तत्वों की मौजूदगी का पता लगाया है.

इसरो ने यह भी कहा कि उम्मीदों के अनुरूप, एलआईबीएस उपकरण ने एल्युमीनियम, कैल्शियम, लौह, क्रोमियम, टाइटेनियम, मैंगनीज, सिलिकॉन और ऑक्सीजन का पता लगाया है.

‘प्रज्ञान' रोवर के लिए सॉफ्टवेयर विकसित करने में शामिल रहे आकाश सिन्हा ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘चंद्रमा पर पाए जाने वाले तत्व केवल पृथक यौगिक नहीं हैं. वे ब्रह्मांडीय इतिहास का सुराग देने वाले ‘टाइम कैप्सूल' हैं. इस तरह के निष्कर्ष न केवल चंद्र संरचनाओं के बारे में हमारी समझ को नया आकार देते हैं, बल्कि चंद्र अन्वेषण और आवास के लिए संभावित संभावनाएं भी प्रदान करते हैं.''

शिव नादर इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस, दिल्ली-एनसीआर, के प्रोफेसर आकाश सिन्हा ने कहा, ‘‘एक प्रचलित सिद्धांत यह है कि गंधक बर्फ के रूप में जमा पानी के भीतर फंसा हो सकता है, जिसका अर्थ है कि हम एक बड़ी खोज के कगार पर हो सकते हैं: चंद्रमा पर बर्फ की भौतिक उपस्थिति.''

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के बिना तारीख वाले एक पुराने दस्तावेज़ में चंद्रमा की मिट्टी के साथ चंद्र ईंट या कंक्रीट बनाने के लिए गंधक के संभावित उपयोग का सुझाव दिया गया था. दिलचस्प बात यह है कि चीन ने इस विचार के अनुरूप स्थायी चंद्र प्रतिष्ठान के निर्माण के लिए इस दशक में चंद्रमा की मिट्टी से निर्मित ईंटों का परीक्षण करने की योजना बनाई है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि गंधक की मौजूदगी के रहस्योद्घाटन से चंद्रमा की संरचना और इसके ज्वालामुखीय अतीत का सुराग मिल सकता है.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत स्वायत्त संगठन विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक टी वी वेंकटेश्वरन ने कहा, ‘‘सतही गंधक ज्वालामुखीय गतिविधि से आता है, जो चंद्रमा के इतिहास में किसी बिंदु पर भारी ज्वालामुखी का संकेत देता है. हालाँकि, पहचान केवल एक ही स्थान से हुई है, इसलिए स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करने के लिए हमें अधिक डेटा की आवश्यकता है.'' सिन्हा ने कहा कि गंधक की खोज चंद्र भूविज्ञान की समझ में एक महत्वपूर्ण सफलता की द्योतक है.

उन्होंने कहा, 'गंधक की उपस्थिति, विशेष रूप से ऐसे क्षेत्र में जहां ज्वालामुखीय गतिविधि-गंधक का एक सामान्य स्रोत-उल्लेखनीय रूप से अनुपस्थित है, चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में दिलचस्प संभावनाएं खोलती है.'

ताराभौतिकी विशेषज्ञ संदीप चक्रवर्ती के अनुसार, चंद्रमा पर वास्तविक अध्ययन निश्चित रूप से क्षेत्र में गंधक की उपस्थिति की पुष्टि करते हैं, जो पिछले चंद्रयान-1 और चंदयान-2 के ऑर्बिटर के उपकरणों की क्षमताओं से परे एक उपलब्धि है.

कोलकाता में भारतीय अंतरिक्ष भौतिकी केंद्र के निदेशक चक्रवर्ती ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘संरचनाओं में प्रचुर मात्रा में हल्की धातुएँ जैसे एल्युमीनियम और प्रचुर मात्रा में गंधक एवं लौह तत्व दिखाई देता है. गंधक चंद्रमा पर फूटे ज्वालामुखियों से आया हो सकता है. टाइटेनियम और क्रोमियम जैसी भारी धातुओं के केवल निशान पाए गए हैं. ये अपेक्षा के अनुरूप हैं.''

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चक्रवर्ती ने कहा, 'चंद्रयान-3 द्वारा की गईं खोज चंद्र अन्वेषण के लिए व्यापक निहितार्थ रखती हैं. अंतरिक्ष यात्रा के आकर्षण से परे, इन तत्वों की उपस्थिति चंद्रमा के चरित्र की एक ज्वलंत तस्वीर पेश करती है.'



(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)