मुंबई:
एनएसजी के जिन कमांडो को मुंबई को बचाना है। उनके अफसर उनसे कपड़े धुलवाते हैं। बीवियों की साड़ियां संभालने की ड्यूटी लगाते हैं। ये आरोप खुद एक कमांडो ने लगाए हैं। उसने सवाल पूछा है कि एक जवान को कमांडो बनाने में जब सरकार इतना पैसा खर्च करती है तो उसका इस्तेमाल किसी अफसर के घर की चाकरी में क्यों हो रहा है। एनएसजी के कमांडो ओमप्रकाश शुक्ला ने यह आरोप लगाते हुए डीजी को अर्जी भेजी है और देश के गृहमंत्री को भी पत्र लिखा है। मुंबई के हमले के हीरो एनएसजी कमांडो रहे हैं। हमले के बाद एनएसजी कमांडो की टुकड़ी को स्थाई तौर पर मुंबई में तैनात कर दिया गया है। ओम प्रकाश पहले अर्धसैनिक बल का हिस्सा थे। फिर एनएसजी के लिए चुने गए। ट्रैनिंग ली और मुंबई में ड्यूटी पर भेज दिए गए। लेकिन अब बड़े अफसर कमांडो को अर्दली बनाना चाहते हैं। अर्दली यानी अफसर के खाने-पीने से लेकर उसके कपड़े धोने और बूट पालिश तक का काम करनेवाला सहायक। लेकिन देश के लिए मर मिटने के लिए आए कमांडो को ये गंवारा नहीं। ओम प्रकाश ने तर्क है कि सरकार ने लाखों खर्च कर कमांडो बनाया क्या अफसरो बूट पॉलिश के लिए। एक कमांडो की तनख्वाह करीब 18 हज़ार होती है और वो आतंकियों का मुकाबला करने के लिये चुस्त दुरस्त होता है। ओमप्रकाश को अपने मेजर मोहम्मद इज़राइल के घर और ऑफिस में तैनात होने का आदेश मिला है। एनडीटीवी ने मेज़र साहब से भी इस मसले में बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कमांडो को पहचानने से ही इनकार कर दिया। ओमप्रकाश की दलील है कि वो जिस काम के लिए चुना ही नहीं गया वो क्यों करे। सेना और अर्धसैनिक बलों में जवानों के इस इस्तेमाल पर लगातार आवाजें उठती रही हैं लेकिन ओमप्रकाश अब आर-पार की लड़ाई करना चाहता है। अब शिकायत एनएसजी के डायेक्टर जनरल से की है। बड़ा सवाल क्या डिसीप्लीन के नाम पर मेजर कर्नल और बड़े अफसर जवानों से यूं ही बेगार कराते रहेंगे या फिर कोई कानून भी बनेगा जो इस बेगारी से इन्हें बचा सके।