नई दिल्ली:
बीजेपी-जेडीयू का 17 वर्ष पुराना गठबंधन खत्म होना राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए जोरदार झटका है। 2004 में गठबंधन के सत्ता से बाहर होने के बाद इसके कई सहयोगियों ने साथ छोड़ दिया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए के संस्थापक सदस्यों में रहे, जिन्होंने बीजेपी में नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद गठबंधन तोड़ने की पटकथा लिखी।
वर्ष 1996 में समता पार्टी एनडीए में शामिल हुई थी, जिसके मुख्य नेता नीतीश और जॉर्ज फर्नांडिस थे। समता पार्टी के नेता बाद में जेडीयू में शामिल हो गए थे। एनडीए की सरकार में फर्नांडिस रक्षामंत्री थे, जबकि नीतीश कुमार को रेलवे का प्रभार दिया गया था। रविवार को एनडीए का संयोजक पद छोड़ने वाले शरद यादव को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उड्डयन मंत्रालय का प्रभार दिया गया था। फर्नांडिस तब एनडीए के संयोजक हुआ करते थे और सरकार के नीति नियंताओं में शामिल थे।
दिलचस्प बात है कि नीतीश ने गोधरा बाद के दंगों की आलोचना नहीं की थी और एनडीए सरकार में बने रहे। 2003 में उन्होंने नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी और कहा था कि भविष्य में वह राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। हालांकि लोजपा के अध्यक्ष रामविलास पासवान ने 2002 के गुजरात दंगों के बाद एनडीए कैबिनेट छोड़ दिया था।
इससे पहले वर्ष 2000 में नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन खंडित जनादेश और बहुमत साबित नहीं करने के कारण उन्हें सात दिनों के अंदर इस्तीफा देना पड़ा था। बीजेपी और जेडीयू ने 2004 का लोकसभा चुनाव गठबंधन के तौर पर लड़ा था और बिहार में उन्हें क्रमश: पांच और छह सीटें मिली थीं।
वर्ष 2005 में जेडीयू-बीजेपी ने बिहार में विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की और नीतीश मुख्यमंत्री बने। गठबंधन ने आरजेडी, लोजपा और कांग्रेस को 2010 के चुनावों में करारी शिकस्त दी। जेडीयू ने 115 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि बीजेपी को 91 सीटें मिलीं। गठबंधन ने 2009 के लोकसभा चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन किया और जेडीयू को जहां 20 सीटें मिलीं, वहीं बीजेपी को 12 सीटों पर जीत मिली।
बहरहाल पहले भी ऐसे क्षण आए जब गठबंधन में तनाव हुआ और कई लोगों ने संभावना जताई कि यह टूट सकता है। 2009 में बीजेपी विधायकों ने अपने नेता और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के खिलाफ ही बगावत कर दी थी। उन्होंने आरोप लगाए कि वह काफी विनम्र हैं और हमेशा नीतीश के इशारे पर नाचते हैं। उन्होंने मांग की कि गठबंधन तोड़ दिया जाना चाहिए, लेकिन केंद्रीय नेताओं ने उन्हें मना लिया और मामला शांत हो गया।
गठबंधन जून, 2010 में फिर खतरे में पड़ गया, जब पटना में बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई और स्थानीय अखबारों में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के एक ही मंच पर हाथ मिलाकर खड़े होने के विज्ञापन छपे। नीतीश कुमार तब तक मोदी और हिंदुत्व की उनकी छवि को लेकर आपत्ति जताने लगे थे और नाखुशी जताने के लिए बीजेपी नेताओं का रात्रिभोज रद्द कर दिया था।
पटना सम्मेलन में मोदी छाए रहे, जिससे नीतीश और नाराज हो गए। मोदी ने मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन के साथ ही एनडीए की सभाओं में भी हमेशा नीतीश से संपर्क के लिए कदम बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन नीतीश ने हमेशा अनिच्छा वाली मुस्कुराहट से जवाब दिया। जेडीयू-बीजेपी गठबंधन तभी से टूटता दिखाई देने लगा था, जब नीतीश बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से यह स्पष्ट करने को कहने लगे कि क्या मोदी उनकी तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए के संस्थापक सदस्यों में रहे, जिन्होंने बीजेपी में नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद गठबंधन तोड़ने की पटकथा लिखी।
वर्ष 1996 में समता पार्टी एनडीए में शामिल हुई थी, जिसके मुख्य नेता नीतीश और जॉर्ज फर्नांडिस थे। समता पार्टी के नेता बाद में जेडीयू में शामिल हो गए थे। एनडीए की सरकार में फर्नांडिस रक्षामंत्री थे, जबकि नीतीश कुमार को रेलवे का प्रभार दिया गया था। रविवार को एनडीए का संयोजक पद छोड़ने वाले शरद यादव को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उड्डयन मंत्रालय का प्रभार दिया गया था। फर्नांडिस तब एनडीए के संयोजक हुआ करते थे और सरकार के नीति नियंताओं में शामिल थे।
दिलचस्प बात है कि नीतीश ने गोधरा बाद के दंगों की आलोचना नहीं की थी और एनडीए सरकार में बने रहे। 2003 में उन्होंने नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी और कहा था कि भविष्य में वह राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। हालांकि लोजपा के अध्यक्ष रामविलास पासवान ने 2002 के गुजरात दंगों के बाद एनडीए कैबिनेट छोड़ दिया था।
इससे पहले वर्ष 2000 में नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन खंडित जनादेश और बहुमत साबित नहीं करने के कारण उन्हें सात दिनों के अंदर इस्तीफा देना पड़ा था। बीजेपी और जेडीयू ने 2004 का लोकसभा चुनाव गठबंधन के तौर पर लड़ा था और बिहार में उन्हें क्रमश: पांच और छह सीटें मिली थीं।
वर्ष 2005 में जेडीयू-बीजेपी ने बिहार में विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की और नीतीश मुख्यमंत्री बने। गठबंधन ने आरजेडी, लोजपा और कांग्रेस को 2010 के चुनावों में करारी शिकस्त दी। जेडीयू ने 115 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि बीजेपी को 91 सीटें मिलीं। गठबंधन ने 2009 के लोकसभा चुनावों में भी अच्छा प्रदर्शन किया और जेडीयू को जहां 20 सीटें मिलीं, वहीं बीजेपी को 12 सीटों पर जीत मिली।
बहरहाल पहले भी ऐसे क्षण आए जब गठबंधन में तनाव हुआ और कई लोगों ने संभावना जताई कि यह टूट सकता है। 2009 में बीजेपी विधायकों ने अपने नेता और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के खिलाफ ही बगावत कर दी थी। उन्होंने आरोप लगाए कि वह काफी विनम्र हैं और हमेशा नीतीश के इशारे पर नाचते हैं। उन्होंने मांग की कि गठबंधन तोड़ दिया जाना चाहिए, लेकिन केंद्रीय नेताओं ने उन्हें मना लिया और मामला शांत हो गया।
गठबंधन जून, 2010 में फिर खतरे में पड़ गया, जब पटना में बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई और स्थानीय अखबारों में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के एक ही मंच पर हाथ मिलाकर खड़े होने के विज्ञापन छपे। नीतीश कुमार तब तक मोदी और हिंदुत्व की उनकी छवि को लेकर आपत्ति जताने लगे थे और नाखुशी जताने के लिए बीजेपी नेताओं का रात्रिभोज रद्द कर दिया था।
पटना सम्मेलन में मोदी छाए रहे, जिससे नीतीश और नाराज हो गए। मोदी ने मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन के साथ ही एनडीए की सभाओं में भी हमेशा नीतीश से संपर्क के लिए कदम बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन नीतीश ने हमेशा अनिच्छा वाली मुस्कुराहट से जवाब दिया। जेडीयू-बीजेपी गठबंधन तभी से टूटता दिखाई देने लगा था, जब नीतीश बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से यह स्पष्ट करने को कहने लगे कि क्या मोदी उनकी तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।
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