यह ख़बर 15 जून, 2012 को प्रकाशित हुई थी

मनमोहन - प्रणब : कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर

खास बातें

  • ‘ कभी गाड़ी नाव पर तो कभी नाव गाड़ी पर ’ वाली कहावत राष्ट्रपति पद के यूपीए के उम्मीदवार चुने गये प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच चरितार्थ लगती है।
नई दिल्ली:

‘ कभी गाड़ी नाव पर तो कभी नाव गाड़ी पर ’ वाली कहावत राष्ट्रपति पद के यूपीए के उम्मीदवार चुने गए प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच चरितार्थ लगती है।

साठ के दशक में पश्चिम बंगाल से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले प्रणब मुखर्जी भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के तहत यूपीए-1 में विदेश और रक्षा मंत्री और फिर यूपीए-2 में वित्त मंत्री रहे  हों लेकिन यह भी सच्चाई है कि ‘ नौकरशाह ’ मनमोहन 1982 में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे और उस समय प्रणब देश के वित्त मंत्री थे।

अब राष्ट्रपति पद पर चुने जाने के बाद एक बार फिर प्रधानमंत्री के तहत काम करने वाले प्रणब देश के शीर्ष संवैधानिक पद पर होंगे।

उच्च सदन में 1969 में सदस्य बनने के बाद प्रणब 1975, 1981, 1993, और 1999 में फिर चुने गए। आपातकाल के दौरान वह वित्त राज्य मंत्री थे। 1973 से नौ वर्ष की अल्पावधि में प्रोन्नति प्राप्त कर वह इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री बने।

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प्रणब और मनमोहन के बीच अनोखी एकरूपता देखी गई। सिंह 1985-87 के बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे। 1991 से 1996 तक प्रणब ने भी इस पद को सुशोभित किया। उस समय सिंह  नरसिंह राव सरकार में वित्त मंत्री थे।