'पद्मावत' ग्रंथ के रचियता मलिक मोहम्मद जायसी के जन्मस्थान जायस कस्बे में उनका स्मारक बदहाल हो गया है.
अमेठी:
फिल्म 'पद्मावत' को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, लेकिन उस महान रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी के जन्मस्थान जायस कस्बे से किसी को कोई लेना-देना नहीं है जहां कृति पद्मावत की रचना की गई. जायसी की रचना पर भले ही दो सौ करोड़ की फिल्म बन गई लेकिन उनका यूपी में स्थित जन्मस्थल बदहाल है. जायस के लोग अब चाहते हैं कि फिल्म 'पद्मावती' के निर्माता संजय लीला भंसाली जायस कस्बे को रॉयल्टी दें. जायस वासी फिल्म 'पद्मावत' का विरोध करने वालों का जोरदार विरोध कर रहे हैं.
अमेठी से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर जायस कस्बा है. इसी कस्बे में कभी महान सूफी संत मलिक मोहम्मद जायसी का जन्म हुआ था. जायस का होने के नाते उन्होंने अपने नाम में टाइटिल 'जायसी' जोड़ा. इसी जायस में उन्होंने अपने काव्य साहित्य की रचना की. मलिक मोहम्मद जायसी ने करीब 14 किताबें लिखीं, जिसमें 'पद्मावत', 'अखरावट' और 'आखरी कलाम' चर्चित रही. लेकिन सबसे ज़्यादा चर्चा में आई उनकी 'पद्मावत' जिसकी वजह से वे आधुनिक काल में सर्वाधिक जाने गए. मलिक मोहम्मद जायसी की वजह से जायस कस्बा भी लोगों के लिए ख़ास बना. लिहाजा आज जायस का तकरीबन हर शख्स अपने नाम में 'जायसी' टाइटिल जोड़ता है. जायस आज कस्बे की शक्ल में बड़े विस्तार के साथ है. लेकिन कभी यह एक बड़े टीले पर बसा गांव होगा. आज भी इस टीले पर वह पुराना जायस गांव है. मलिक मोहम्मद जायसी के घर जाने के रास्ते में एक ऊंची चढ़ाई है, जिसके बीच में दो टूटी दीवारों का अवशेष बचाए एक चबूतरा सूफी संत का घर होने के साक्ष्य को बचाए हुए है. कुछ वर्ष पहले तत्कालीन सरकार जगी तो इस घर के पीछे की जगह में जायसी के नाम पर स्मारक बनाया. पत्थर पर आज की पीढ़ी के लिए उनका इतिहास लिखा. लेकिन इसके रखरखाव की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं की तो आज यह जर्जर अवस्था में पहुंच गया है. जायसी के इलाके के लोग उन्हें बड़ा पीर मानते हैं लिहाजा उनके नाम के इस स्मारक की दुर्दशा का उन्हें भी दुःख है.
यह भी पढ़ें : हंगामा क्यूं है बरपा - आखिर क्या है रानी 'पद्मावती' का असल किस्सा?
जायस के निवासी कवि और शायर फलक जायसी बड़े भारी मन से कहते हैं कि " ये कच्ची दीवारें जो आप देख रहें हैं, इसकी खस्ताहाली भी देख रहे हैं, उनके नाम पर बने इस स्मारक को भी देखिए कितना खस्ताहाल है, कोई सरकार इसे देखती नहीं. किसी की नजर इस पर नही जाती. लेकिन आज इन्हीं जायसी की 'पद्मावत' पर दो सौ करोड़ की फिल्म बनाई जाती है. देश भर में उसके नाम पर हंगामा हो रहा है, पर न फिल्म वालों को और न सरकार को इस जगह की सुध है. अगर सुध लेते तो कम से कम इसको देखने वाले अफसोस न करते." शायर फलक का यह दर्द पूरे जायस में है. और इसीलिए यहां के लोग अब अपने पीर की लिखी कृति 'पद्मावत' पर बनी फिल्म की आमदनी का एक हिस्सा रायल्टी में चाहते हैं, ताकि उनके स्थानों को ठीक किया जा सके.
मलिक मोहमद जायसी फाउंडेशन के अध्यक्ष शकील जायसी कहते हैं कि जायस वालों को रॉयल्टी का हक है. जायस के लोग जायसी जी के शोध संस्थान को, उनके घर को अच्छा देखना चाहते हैं. जिस तरह फिल्म में सेट लगते हैं. डायरेक्टर सेट लगवाता है. उसी तरह यहां के लोग इस जगह को खूबसूरत देखना चाहते हैं. लगे कि कोई तारीखी शख्स का ये इलाका है. इसके लिए ये लोग संजय लीला भंसाली से रायल्टी चाहते हैं. या खुद संजय लीला भंसाली उनकी दरगाह को, शोध संस्थान को, उनके घर को, जितना अच्छा सजाया-सवांरा जा सकता है-सजा संवार दें, रायल्टी न दें."
कस्बे के अन्य लोग भी यहां की बदहाली से परेशान हैं. यहां कोई बड़ा अस्पताल है नहीं, ढंग के स्कूल भी नहीं हैं. बच्चों को पास के जिले रायबरेली जाना पड़ता है. लिहाजा जेहनूल आबदीन खान जायसी और समसाद खान जायसी जैसे लोग कहते हैं कि "उनके नाम पर कुछ भी नहीं है, स्कूल होना चाहिए. हम लोग रायबरेली पढ़ने जाते हैं. उनका जन्मस्थान भी अच्छी तरह से नहीं बना. लिहाजा जो मूवी बनी है उसकी रॉयल्टी जायसी जी के स्थान पर अस्पताल के नाम पर आए. और अगर नहीं मिली तो हम अपने इस हक के लिए कोर्ट जाएंगे.''
जायस के लोग सिर्फ इस फिल्म की रॉयल्टी ही नहीं मांग रहे हैं बल्कि 'पद्मावत' का विरोध करने वालों का भी वे पुरजोर विरोध कर रहे हैं. शायर फ़लक जायसी कहते हैं कि "बड़ा दुख होता है कि उनके 'पद्मावत' पर उंगली उठाई जा रही है. जायसी जी ने किसी तरह से अलाउद्दीन खिलजी को पेश किया और रानी पद्मावती को पेश किया. इसको मानकर चलिए कि ये एक काल्पनिक मामला है. इतना बड़ा शायर जिसके पीछे लगा हो सूफी संत जायसी वो किसी समुदाय विशेष को ठेस पहुंचाने की कोशिश नहीं करेगी. और फिल्में जोड़ने के लिए होती है, तोड़ने के लिए नहीं होती. विरोध करने वाले कोई भी न तो मलिक मोहम्मद जायसी को जानते हैं और न उनकी रचना 'पद्मावत' को.''
जायस से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर अमेठी जिले के रामनगर में जायसी की दरगाह है. वहां लोग इस पीर के पास अपनी मन्नतें मांगने और दुआ के लिए आते हैं. इस दरगाह का रखरखाव करने वाले सैयद मोइन से सूफी संत जायसी के बारे में पूछने पर वे फौरन रौ में बह जाते हैं और उनकी ही रचना पढ़कर पद्मावती के सौंदर्य का वर्णन करते हैं. "बाबा ने पद्मावती के बाल का वर्णन किया है कि बेन छोर छार जो बारा शरग पातार हुए अंधियारा, सुमिरवं आज एक करतारू जे जीव दिनू तीनू संसारू... लोग कहां जानेंगे कि मलिक मोहम्मद जायसी क्या हैं."
VIDEO : जायसी के काव्य पर आधारित है 'पद्मावत'
जिस 'पद्मावती' पर आज इतना हंगामा खड़ा है और जिस जगह इस रचना को रचा गया उस जायस गांव को लोग नहीं जानते. इतना ही नहीं इस रचना को रचने वाले का अपना इलाका ही बदहाल है. इसलिए जायस के लोग फिल्म की आमदनी का हिस्सा मांग रहे हैं जिससे जायस गांव दुनिया के नक्शे पर जाना जा सके.
अमेठी से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर जायस कस्बा है. इसी कस्बे में कभी महान सूफी संत मलिक मोहम्मद जायसी का जन्म हुआ था. जायस का होने के नाते उन्होंने अपने नाम में टाइटिल 'जायसी' जोड़ा. इसी जायस में उन्होंने अपने काव्य साहित्य की रचना की. मलिक मोहम्मद जायसी ने करीब 14 किताबें लिखीं, जिसमें 'पद्मावत', 'अखरावट' और 'आखरी कलाम' चर्चित रही. लेकिन सबसे ज़्यादा चर्चा में आई उनकी 'पद्मावत' जिसकी वजह से वे आधुनिक काल में सर्वाधिक जाने गए. मलिक मोहम्मद जायसी की वजह से जायस कस्बा भी लोगों के लिए ख़ास बना. लिहाजा आज जायस का तकरीबन हर शख्स अपने नाम में 'जायसी' टाइटिल जोड़ता है. जायस आज कस्बे की शक्ल में बड़े विस्तार के साथ है. लेकिन कभी यह एक बड़े टीले पर बसा गांव होगा. आज भी इस टीले पर वह पुराना जायस गांव है. मलिक मोहम्मद जायसी के घर जाने के रास्ते में एक ऊंची चढ़ाई है, जिसके बीच में दो टूटी दीवारों का अवशेष बचाए एक चबूतरा सूफी संत का घर होने के साक्ष्य को बचाए हुए है. कुछ वर्ष पहले तत्कालीन सरकार जगी तो इस घर के पीछे की जगह में जायसी के नाम पर स्मारक बनाया. पत्थर पर आज की पीढ़ी के लिए उनका इतिहास लिखा. लेकिन इसके रखरखाव की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं की तो आज यह जर्जर अवस्था में पहुंच गया है. जायसी के इलाके के लोग उन्हें बड़ा पीर मानते हैं लिहाजा उनके नाम के इस स्मारक की दुर्दशा का उन्हें भी दुःख है.
यह भी पढ़ें : हंगामा क्यूं है बरपा - आखिर क्या है रानी 'पद्मावती' का असल किस्सा?
जायस के निवासी कवि और शायर फलक जायसी बड़े भारी मन से कहते हैं कि " ये कच्ची दीवारें जो आप देख रहें हैं, इसकी खस्ताहाली भी देख रहे हैं, उनके नाम पर बने इस स्मारक को भी देखिए कितना खस्ताहाल है, कोई सरकार इसे देखती नहीं. किसी की नजर इस पर नही जाती. लेकिन आज इन्हीं जायसी की 'पद्मावत' पर दो सौ करोड़ की फिल्म बनाई जाती है. देश भर में उसके नाम पर हंगामा हो रहा है, पर न फिल्म वालों को और न सरकार को इस जगह की सुध है. अगर सुध लेते तो कम से कम इसको देखने वाले अफसोस न करते." शायर फलक का यह दर्द पूरे जायस में है. और इसीलिए यहां के लोग अब अपने पीर की लिखी कृति 'पद्मावत' पर बनी फिल्म की आमदनी का एक हिस्सा रायल्टी में चाहते हैं, ताकि उनके स्थानों को ठीक किया जा सके.
मलिक मोहमद जायसी फाउंडेशन के अध्यक्ष शकील जायसी कहते हैं कि जायस वालों को रॉयल्टी का हक है. जायस के लोग जायसी जी के शोध संस्थान को, उनके घर को अच्छा देखना चाहते हैं. जिस तरह फिल्म में सेट लगते हैं. डायरेक्टर सेट लगवाता है. उसी तरह यहां के लोग इस जगह को खूबसूरत देखना चाहते हैं. लगे कि कोई तारीखी शख्स का ये इलाका है. इसके लिए ये लोग संजय लीला भंसाली से रायल्टी चाहते हैं. या खुद संजय लीला भंसाली उनकी दरगाह को, शोध संस्थान को, उनके घर को, जितना अच्छा सजाया-सवांरा जा सकता है-सजा संवार दें, रायल्टी न दें."
कस्बे के अन्य लोग भी यहां की बदहाली से परेशान हैं. यहां कोई बड़ा अस्पताल है नहीं, ढंग के स्कूल भी नहीं हैं. बच्चों को पास के जिले रायबरेली जाना पड़ता है. लिहाजा जेहनूल आबदीन खान जायसी और समसाद खान जायसी जैसे लोग कहते हैं कि "उनके नाम पर कुछ भी नहीं है, स्कूल होना चाहिए. हम लोग रायबरेली पढ़ने जाते हैं. उनका जन्मस्थान भी अच्छी तरह से नहीं बना. लिहाजा जो मूवी बनी है उसकी रॉयल्टी जायसी जी के स्थान पर अस्पताल के नाम पर आए. और अगर नहीं मिली तो हम अपने इस हक के लिए कोर्ट जाएंगे.''
जायस के लोग सिर्फ इस फिल्म की रॉयल्टी ही नहीं मांग रहे हैं बल्कि 'पद्मावत' का विरोध करने वालों का भी वे पुरजोर विरोध कर रहे हैं. शायर फ़लक जायसी कहते हैं कि "बड़ा दुख होता है कि उनके 'पद्मावत' पर उंगली उठाई जा रही है. जायसी जी ने किसी तरह से अलाउद्दीन खिलजी को पेश किया और रानी पद्मावती को पेश किया. इसको मानकर चलिए कि ये एक काल्पनिक मामला है. इतना बड़ा शायर जिसके पीछे लगा हो सूफी संत जायसी वो किसी समुदाय विशेष को ठेस पहुंचाने की कोशिश नहीं करेगी. और फिल्में जोड़ने के लिए होती है, तोड़ने के लिए नहीं होती. विरोध करने वाले कोई भी न तो मलिक मोहम्मद जायसी को जानते हैं और न उनकी रचना 'पद्मावत' को.''
जायस से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर अमेठी जिले के रामनगर में जायसी की दरगाह है. वहां लोग इस पीर के पास अपनी मन्नतें मांगने और दुआ के लिए आते हैं. इस दरगाह का रखरखाव करने वाले सैयद मोइन से सूफी संत जायसी के बारे में पूछने पर वे फौरन रौ में बह जाते हैं और उनकी ही रचना पढ़कर पद्मावती के सौंदर्य का वर्णन करते हैं. "बाबा ने पद्मावती के बाल का वर्णन किया है कि बेन छोर छार जो बारा शरग पातार हुए अंधियारा, सुमिरवं आज एक करतारू जे जीव दिनू तीनू संसारू... लोग कहां जानेंगे कि मलिक मोहम्मद जायसी क्या हैं."
VIDEO : जायसी के काव्य पर आधारित है 'पद्मावत'
जिस 'पद्मावती' पर आज इतना हंगामा खड़ा है और जिस जगह इस रचना को रचा गया उस जायस गांव को लोग नहीं जानते. इतना ही नहीं इस रचना को रचने वाले का अपना इलाका ही बदहाल है. इसलिए जायस के लोग फिल्म की आमदनी का हिस्सा मांग रहे हैं जिससे जायस गांव दुनिया के नक्शे पर जाना जा सके.