मार्क पिछले तीन सालों से वरिष्ठ नागरिकों के घर मुफ्त टिफिन पहुंचा रहे हैं
मुंबई:
मुंबई के बोरीवली इलाके में 98 साल की एंजेला फर्नांडिस अकेले रहती हैं। एक रिटायर्ड स्कूल टीचर एंजेला अपनी पेंशन से घर चलाती हैं लेकिन इस उम्र में खाना पकाना उनके लिए मुश्किल है। इसलिए यह ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर लेते हुए 58 साल के मार्क डी'सूज़ा फ्री टिफिन सर्विस के ज़रिए एंजेला का ख्याल रखते हैं।
फर्नांडिस कहती हैं 'जहां तक पैसों की बात है तो मैं अपने किसी भी बच्चे पर बोझ नहीं हूं। मैं अपनी पेंशन से काम चला लेती हूं इसलिए खर्चा करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है।'
मार्क ने तीन साल पहले यह टिफिन सर्विस शुरू की थी। फर्नांडिस जैसे 25 वरिष्ठ नागरिकों के लिए मार्क ने यह मुफ्त टिफिन सर्विस शुरू की है जिससे जुड़ी भावनाएं सिर्फ खाने तक सीमित नहीं है।
फर्नांडिस बताती हैं ऐसा लगता ही नहीं है कि वह आपको फ्री में खाना दे रहा है। वो इतना खुशी खुशी आता है ऐसा लगता है जैसे किसी पार्टी में आया हो।
टिफिन सर्विस के पीछे की सोच
मार्क ने अपने माता-पिता को काफी कम उम्र में खो दिया था। वह बताते हैं कि टिफिन सर्विस उनकी एक सोच थी जिसको अमली जामा पहनाने का काम उनकी पत्नी ने किया है। मार्क अपनी पत्नी के बारे में बताते हैं 'ट्यूशन से उसकी जो कमाई होती है उसमें से उसने मुझे 5 हज़ार रूपए देते हुए कहा कि तुम्हें जो कुछ भी शुरू करना है अभी करो।'
अब आलम यह है कि पूरा डी'सूज़ा परिवार ही इस काम में लग गया है - सब्ज़ी खरीदने से लेकर, सफाई करना, खाना पकाना और टिफिन बॉक्स पैक करना। चंद टिफिन से शुरू किया गया यह काम अब 25 लोगों के लिए टिफिन बनाता है और इनका रोज़ का कुल खर्चा 15 हज़ार रूपए बैठता है।
इतना आगे आने के बाद आज भी मार्क अपने हाथों से सबको टिफिन देना पसंद करते हैं।
बुढ़ापे के मायने
अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए मार्क ने कहा 'जब आप खुद उम्रदराज़ होने लगते हैं तब बुढ़ापे के मायने समझ आते हैं और किस तरह लोग खुद को चार दीवारों के बीच फंसा हुआ पाते हैं। जब मैं टिफिन बाटंता हूं तो वो लोग मुझे धन्यवाद देते हैं, आशीर्वाद देते हैं। यह दो शब्द मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं।'
एंजेला की तरह 85 साल की परडीटा डी'सूज़ा भी अपने पति और बेटे को खोने के बाद अकेले ही रहती हैं। मार्क का आना उनके दिन में भी उजाला भर देता है। परडीटा कहती हैं 'यह बड़ी राहत की बात है कि मुझे बाज़ार नहीं जाना पड़ता। रविवार के दिन टिफिन सबसे अच्छा होता है क्योंकि उस दिन फिश और मीट मिलता है।'
लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट, आभार और मीठे बोल ही मार्क के लिए सबसे बड़ा ईनाम है।
फर्नांडिस कहती हैं 'जहां तक पैसों की बात है तो मैं अपने किसी भी बच्चे पर बोझ नहीं हूं। मैं अपनी पेंशन से काम चला लेती हूं इसलिए खर्चा करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है।'
मार्क ने तीन साल पहले यह टिफिन सर्विस शुरू की थी। फर्नांडिस जैसे 25 वरिष्ठ नागरिकों के लिए मार्क ने यह मुफ्त टिफिन सर्विस शुरू की है जिससे जुड़ी भावनाएं सिर्फ खाने तक सीमित नहीं है।
फर्नांडिस बताती हैं ऐसा लगता ही नहीं है कि वह आपको फ्री में खाना दे रहा है। वो इतना खुशी खुशी आता है ऐसा लगता है जैसे किसी पार्टी में आया हो।
टिफिन सर्विस के पीछे की सोच
मार्क ने अपने माता-पिता को काफी कम उम्र में खो दिया था। वह बताते हैं कि टिफिन सर्विस उनकी एक सोच थी जिसको अमली जामा पहनाने का काम उनकी पत्नी ने किया है। मार्क अपनी पत्नी के बारे में बताते हैं 'ट्यूशन से उसकी जो कमाई होती है उसमें से उसने मुझे 5 हज़ार रूपए देते हुए कहा कि तुम्हें जो कुछ भी शुरू करना है अभी करो।'
अब आलम यह है कि पूरा डी'सूज़ा परिवार ही इस काम में लग गया है - सब्ज़ी खरीदने से लेकर, सफाई करना, खाना पकाना और टिफिन बॉक्स पैक करना। चंद टिफिन से शुरू किया गया यह काम अब 25 लोगों के लिए टिफिन बनाता है और इनका रोज़ का कुल खर्चा 15 हज़ार रूपए बैठता है।
इतना आगे आने के बाद आज भी मार्क अपने हाथों से सबको टिफिन देना पसंद करते हैं।
बुढ़ापे के मायने
अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए मार्क ने कहा 'जब आप खुद उम्रदराज़ होने लगते हैं तब बुढ़ापे के मायने समझ आते हैं और किस तरह लोग खुद को चार दीवारों के बीच फंसा हुआ पाते हैं। जब मैं टिफिन बाटंता हूं तो वो लोग मुझे धन्यवाद देते हैं, आशीर्वाद देते हैं। यह दो शब्द मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं।'
एंजेला की तरह 85 साल की परडीटा डी'सूज़ा भी अपने पति और बेटे को खोने के बाद अकेले ही रहती हैं। मार्क का आना उनके दिन में भी उजाला भर देता है। परडीटा कहती हैं 'यह बड़ी राहत की बात है कि मुझे बाज़ार नहीं जाना पड़ता। रविवार के दिन टिफिन सबसे अच्छा होता है क्योंकि उस दिन फिश और मीट मिलता है।'
लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट, आभार और मीठे बोल ही मार्क के लिए सबसे बड़ा ईनाम है।
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